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Class 11 Economics Chapter 1-Limitations of Statistics

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by Eco_Admin - 03/05/202107/05/20210

Class 11 Economics Chapter 1-Limitations of Statistics and Distrust of Statistics

Limitations of Statistics

सांख्यिकी के सीमाएं

आधुनिक युग में सांख्यिकी ने अध्ययन के सभी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है । परंतु इस शास्त्र की कुछ सीमाएं हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए । न्यूज़होम के अनुसार, “सांख्यिकी को अनुसंधान का एक मूल्यवान साधन समझना चाहिए । परंतु इसकी कुछ गंभीर सीमायें है जिन्हें दूर किया जाना संभव नहीं है ।”

सांख्यिकी की कुछ महत्वपूर्ण सीमाएं निम्नलिखित हैं-

1-केवल संख्यात्मक तत्वों का अध्ययन- 

सांख्यिकी केवल ऐसे तथ्यों का अध्ययन करती है जिन्हें संख्याओं में व्यक्त किया जा सकता है जैसे वजन, ऊंचाई, लंबाई, आयु आदि | इसके अंतर्गत गुणात्मक तथ्यों जैसे ईमानदारी, मित्रता, बुद्धिमता, देश-प्रेम आदि का अध्ययन नहीं किया जा सकता ।

2-केवल समूहों का अध्ययन- 

सांख्यिकी के अंतर्गत संख्यात्मक तथ्यों के समूह का अध्ययन किया जाता है । इसमें किसी एक इकाई का अध्ययन नहीं किया जा सकता । उदाहरण के लिए यदि राम की प्रतिमाह आय 10000 है तो इसका सांख्यिकी में अध्ययन नहीं किया जाएगा । परंतु यदि कहा जाए कि राम के आय 10000, श्याम की आय  15000 तथा मोहन की आय 12000 है तो हम इनकी आपस में तुलना कर सकते हैं तथा निष्कर्ष निकाल सकते हैं ।

3-आंकड़ों की एकरूपता या सजातीयता होना आवश्यक शर्त है- 

आंकड़ों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि जो आंकड़े एकत्रित किए जाए वह एक ही गुण को प्रकट करने वाले हो । भिन्न-भिन्न प्रकार के गुणों को प्रकट करने वाले आंकड़ों के परस्पर तुलना नहीं की जा सकती । उदाहरण के लिए कपड़े तथा अनाज के उत्पादन की, मात्रा के अनुसार तुलना करना संभव नहीं है । क्योंकि कपड़े को मीटर में तथा अनाज टन में व्यक्त किया जाता है । इसके विपरीत उत्पादन की मात्रा के बजाय उत्पादन के मूल्यों में तुलना संभव है ।

4-परिणाम केवल औसतन सत्य होते हैं- 

सांख्यिकी के नियम केवल औसत रूप से ही सत्य होते हैं । यह केवल प्रवृत्ति को ही प्रकट करते हैं । भौतिकी विज्ञान या रसायन शास्त्र की तरह सांख्यिकी के नियम पूर्ण रूप से सत्य नहीं होते । उदाहरण के लिए यदि कहा जाए कि भारत में प्रति व्यक्ति आय ₹32000 प्रति वर्ष है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति की आय ₹32000 है | कुछ व्यक्तियों की आय इससे अधिक हो सकती है तथा कुछ व्यक्तियों की इससे कम हो सकती है । यह कथन केवल एक औसत के रूप में ही सही है ।

5-बिना संदर्भ के निष्कर्ष गलत हो सकते हैं- 

सांख्यिकी निष्कर्षों को भली प्रकार से समझने के लिए यह आवश्यक है कि उन परिस्थितियों का भी अध्ययन किया जाए जिनमें निष्कर्ष निकाले गए हैं । अन्यथा वह असत्य सिद्ध हो सकते हैं । उदाहरण के लिए कपड़े के व्यवसाय में लगी एक फर्म का 3 वर्षों का लाभ क्रमशः ₹1000, ₹2000 तथा ₹3000 हैं । इसके विपरीत इसी तरह की एक दूसरी फर्म का 3 वर्षों का लाभ क्रमशः ₹3000, ₹2000 तथा ₹1000 है | दोनों का औसत लाभ ₹2000 होता है | इससे यदि परिणाम निकाला जाए कि दोनों व्यवसाय एक ही अवस्था में है तो यह गलत होगा । संदर्भ में देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि पहली फर्म का लाभ प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है  जबकि दूसरी फर्म का लाभ घटता जा रहा है ।

6-केवल विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग- 

सांख्यिकी का प्रयोग केवल उन व्यक्तियों द्वारा ही किया जाना चाहिए जिन्हें सांख्यिकी विधियों का विशेष ज्ञान है । साधारण व्यक्ति सांख्यिकी का प्रयोग नहीं कर सकते । वे गलत निष्कर्ष निकाल सकते हैं | अयोग्य मनुष्य के हाथ में आंकड़े, अयोग्य डॉक्टर के हाथ में दवाई के समान हैं जिनका दुरुपयोग बड़ी आसानी से अनजाने में हो सकता है । यूल तथा कैंडाल के शब्दों में, “अयोग्य मनुष्य के हाथ में सांख्यिकी विधियां सबसे भयानक हथियार हैं ।”

7-दुरुपयोग संभव- 

सांख्यिकी द्वारा गलत बात को भी सही साबित किया जा सकता है। आंकड़ों के संबंध में यह कहा जाता है कि “समंक गीली मिट्टी के समान है जिनसे आप देवता या शैतान की मूर्ति जो चाहे बना सकते हैं ।” सांख्यिकी का दुरूपयोगउसकी सबसे बड़ी सीमा है |

Distrust of Statistics

सांख्यिकी की अविश्वसनीयता

कुछ लोग सांख्यिकी पर अविश्वास करते हैं । सांख्यिकी पर अविश्वास के संबंध में निम्न कथन कहे जाते हैं-

  • 1-  सांख्यिकी झूठ का इंद्रधनुष है ।
  • 2-  सांख्यिकी झूठ के तंतु है ।
  • 3-  सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध कर सकती है ।
  • 4-  सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकती ।
  • 5-  सांख्यिकी गीली मिट्टी के समान है जिससे आप देवता या शैतान जो भी इच्छा हो बना सकते हैं ।
  • 6-  डिजरायली नाम के अर्थशास्त्री ने तो यह तक कहा है, “झूठ के तीन प्रकार हैं – झूठ, सफेद झूठ तथा सांख्यिकी ।”

सांख्यिकी के प्रति अविश्वास होने का मुख्य कारण यह है कि अधिकतर लोग आंकड़ों पर सहज विश्वास कर लेते हैं। इसलिए कुछ व्यक्ति इस विश्वास का फायदा उठाने के लिए आंकड़ों का गलत प्रयोग करते हैं। वह गलत निष्कर्ष निकाल कर जनता को गुमराह करते हैं ।

Causes for Distrust of Statistics

सांख्यिकी के प्रति अविश्वसनीयता का कारण क्या है ?

1-  एक ही समस्या के संबंध में विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्राप्त होते हैं ।

2-  पूर्व निर्धारित निष्कर्षों को सिद्ध करने के लिए आंकड़ों को बदला जा सकता है ।

3-  सही आंकड़ों को भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है कि पढ़ने वाला संशय में पड़ जाए ।

4-  जब आंकड़ों का संकलन पक्षपातपूर्ण ढंग से किया जाता है तो परिणाम भी समान्यतः गलत निकलेंगे । इसके फलस्वरूप लोगों का इनमें विश्वास नहीं रह जाता ।

यदि उपरोक्त तर्कों को यदि हम ध्यान से देखेंगे तो हमें पता चलेगा कि आंकड़ों को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो इसमें सांख्यिकी की विषय-सामग्री का दोष नहीं है । यह दोष उन लोगों का है जो गलत आंकड़ों का संकलन करते हैं या उनसे गलत निष्कर्ष निकालते हैं । आंकड़े स्वयं कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकते | वे तो सांख्यिकीविद् के हाथ में औजार मात्र हैं । यदि सांख्यिकीविद् उनका गलत उपयोग करता है तो दोष उस सांख्यिकीविद् का है, आंकड़ों का कोई दोष नहीं है । 

उदाहरण के लिए एक योग्य चिकित्सक रोग के अनुसार दवा का प्रयोग करके रोग दूर कर सकता है | परंतु अयोग्य डॉक्टरों के हाथ में पड़कर वही दवा जहर का काम कर सकती है । इसमें दोष दवा का नहीं बल्कि अयोग्य चिकित्सक का है | इसी तरह गलत निष्कर्ष निकालने में आंकड़ों या सांख्यिकी का कोई दोष नहीं होता ।

वास्तव में आंकड़ों पर न तो बिना सोचे-समझे भरोसा कर लेना चाहिए और ना ही उन पर अविश्वास करना चाहिए । आंकड़ों का प्रयोग करते समय सतर्कता और सावधानी से काम लिया जाना चाहिए | किंग के अनुसार, “सांख्यिकी विज्ञान एक अत्यंत उपयोगी सेवक है परंतु इसका मूल्य केवल उन्हीं के लिए है जो इसका उचित उपयोग जानते हैं ।”

सांख्यिकी के प्रति अविश्वास कैसे दूर किया जाए ?

निम्न उपायों के को अपनाकर सांख्यिकी के प्रति अविश्वास दूर किया जा सकता है-

1-सांख्यिकी है सीमाओं की ओर ध्यान- सांख्यिकी का प्रयोग करते समय सांख्यिकी की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए जैसे आंकड़ों को एक रूप तथा सजातीय होना चाहिए ।

2-पक्षपात रहित- अनुसंधानकर्ता को पक्षपात रहित होना चाहिए | उसे केवल उचित आंकड़ों का प्रयोग करना चाहिए तथा उनसे बिना किसी पक्षपात के सही निष्कर्ष निकालने चाहिए ।

3-विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग- सांख्यिकी का प्रयोग केवल विशेषज्ञों द्वारा किया जाना चाहिए, जिससे गलतियों की संभावना कम हो जाएगी ।

यदि आपको उपरोक्त में कोई शंका या सवाल है तो आप हमें कमेंट कर सकते है |~Admin

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