Skip to content
Friday, May 9, 2025
  • Home
  • Privacy Policy
  • Contact us
  • Sitemap
  • youtube
  • twitter
  • telegram
  • Up-grades initiative
  • Haryana Board Exam Material 2023-24
  • CBSE Project file Decoration Ideas 2023-24
  • Haryana Board Result 2023
  • BSEH Class 12 Economics Most Important Questions Haryana Board

Economics Online Class

All in one website for Economics Notes and videos

  • Syllabus
  • 11th Economics Notes
    • Statistics Notes in Hindi
  • 12th Economics Notes
    • Micro Economics Notes in Hindi
    • Macro Economics Notes inHindi
  • Online Tests
    • Class 12 Micro Economics Online Tests
    • Class 12 Macro Economics Online tests
    • Class 11 Economics Online Tests
  • Live Class
  • Edusat Videos
    • Class 12 Economics all EduSat Videos
    • Class 11 Economics all Edusat videos
  • Exam Corner
    • SAT Exam Practice Set
  • News
X
You are here
Home > Class 11 >

Class 11 Economics Chapter 2-Collection of Data

  • Class 11
  • Statistics for Economics notes
by Eco_Admin - 07/05/202107/05/20210

Class 11 Economics Chapter 2-Collection of Data Notes in Hindi

आंकड़ों का संकलन

Collection of Data

बहुवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ है-आंकड़े या परिमाणात्मक सूचनाएं जिनसे कुछ अर्थपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। जैसे जनसंख्या संबंधी आंकड़े, रोजगार संबंधी आंकड़े आदि।

हम आंकड़ों का संकलन क्यों करते हैं?

किसी सामाजिक-आर्थिक समस्या को समझने, विश्लेषण करने और व्याख्या करने के लिए आंकड़ों का संकलन आवश्यक होता है। जब हम आंकड़ों का संकलन करके समस्या का विश्लेषण करते हैं तो हम उन समस्याओं के कारणों को समझने के साथ-साथ उनके संभव समाधान को भी खोजते हैं।

आंकड़ों के स्रोत

Sources of Data

आंकड़ों के दो स्रोत होते हैं- A) प्राथमिक स्रोत और B) द्वितीयक स्रोत।

A) प्राथमिक स्रोत

Primary Sources of Data

आंकड़ों के प्राथमिक स्रोत अभिप्राय उद्गम के स्रोत से आंकड़ों का संकलन है। अर्थात जब अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान के लिए स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है तो उसे जो आंकड़े प्राप्त होते हैं, वह प्राथमिक स्रोत से प्राप्त आंकड़े कहलाते हैं। उदाहरण के लिए किसी अनुसंधानकर्ता को एक गांव में साक्षरता की दर ज्ञात करनी है और वह स्वयं सूचना एकत्रित करता है तो यह आंकड़ों का प्राथमिक स्रोत कहलाता है। प्राथमिक स्रोत सांख्यिकी अध्ययन से संबंधित सीधी या प्रत्यक्ष मात्रात्मक सूचना प्रदान करते हैं।

B) द्वितीयक स्रोत

Secondary Sources of Data

आंकड़ों के संकलन के द्वितीयक स्रोत से अभिप्राय एक एजेंसी या संस्था से उपयुक्त सांख्यिकीय सूचना प्राप्त करने से है जिसके पास वह सूचना पहले से ही उपलब्ध है। उदाहरण के लिए अनुसंधानकर्ता एक गांव में साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए ग्राम पंचायत या सरपंच से सूचना एकत्रित करें तो यह आंकड़ों का द्वितीयक स्रोत स्त्रोत कहलाता है। द्वितीयक स्रोत सांख्यिकीय अध्ययन से संबंधित सीधी व प्रत्यक्ष मात्रात्मक सूचना नहीं प्रदान करते हैं। अनुसंधानकर्ता को उस सूचना पर ही निर्भर रहना पड़ता है जो पहले से ही उपलब्ध है या एकत्रित की जा चुकी है।

आंकड़ों के प्रकार

Types of Data

स्रोत के आधार पर आंकड़ों को दो प्रकारों में बांटा जा सकता है-

1-  प्राथमिक आंकड़े

2-  द्वितीयक आंकड़े।

1- प्राथमिक आंकड़े

Primary Data

प्राथमिक आंकड़े, वे आंकड़े हैं जो अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्य के अनुसार पहली बार आरंभ से अंत तक एकत्रित करता है।

वैसेल के अनुसार, “अनुसंधान की प्रक्रिया के अंतर्गत मौलिक रूप से जो आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं उन्हें प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।”

प्राथमिक आंकड़े मौलिक होते हैं। अनुसंधानकर्ता इन आंकड़ों को एकत्रित करने वाला पहला व्यक्ति होता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में एक गांव की साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए अनुसंधानकर्ता जब स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है तो इन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाएगा।

2- द्वितीयक आंकड़े

Secondary Data

द्वितीयक आंकड़े वे आंकड़े होते हैं जो पहले ही अन्य व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा एकत्रित किए जा चुके होते हैं और अनुसंधानकर्ता केवल उन्हें प्रयोग करता है।

वैसेल के अनुसार, “जो आंकड़े दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं उन्हें द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।”

जैसा कि ऊपर आंकड़ों के स्त्रोत में उदाहरण दिया गया था कि एक गांव की साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए अनुसंधानकर्ता यदि ग्राम पंचायत या सरपंच से सूचना एकत्रित करता है तो इस दशा में प्राप्त आंकड़े द्वितीयक आंकड़े कहलाते हैं। क्योंकि ग्राम पंचायत सरपंच के पास पहले से ही यह सूचना उपलब्ध है। और अनुसंधानकर्ता उन्हें अपने अनुसंधान हेतु उपयोग करता है। जो कि उसने स्वयं एकत्रित नहीं किए हैं।


प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अंतर

Difference between Primary and Secondary Data

प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-

1-मौलिकता में अंतर- 

प्राथमिक आंकड़े मौलिक होते हैं क्योंकि अनुसंधानकर्ता ने इन्हें स्वयं एकत्रित किया है। परंतु द्वितीयक आंकड़े किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। प्राथमिक आंकड़ों का प्रयोग कच्चे माल की तरह किया जाता है। जबकि द्वितीयक आंकड़े पहले से ही तैयार होते हैं इसलिए यह एक प्रकार की तैयार सामग्री होते हैं।

2-उद्देश्य की उपयुक्तता में अंतर- 

प्राथमिक आंकड़े एक निश्चित उद्देश्य के अनुकूल होते हैं। उनमें संशोधन की आवश्यकता नहीं होती इसके विपरीत द्वितीयक आंकड़े पहले ही किसी और उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। उनका प्रयोग द्वितीयक रूप में किसी दूसरे उद्देश्य की पूर्ति के लिए सावधानीपूर्वक प्रयोग किया जाना चाहिए।

3-संकलन लागत में अंतर- 

प्राथमिक आंकड़ों के संकलन में अपेक्षाकृत अधिक धन समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है। इनकी संकलन लागत अधिक होती है। इसके विपरीत द्वितीयक आंकड़ों को केवल प्रकाशित और अप्रकाशित साधनों से संकलित करना पड़ता है। इसलिए इनकी संकलन लागत बहुत कम होती है।

संक्षेप में, प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों में कोई मूलभूत अंतर नहीं है। एक अनुसंधानकर्ता किसी विशेष उद्देश्य के लिए जो आंकड़े मौलिक रूप से स्वयं एकत्रित करता है उसके लिए हुए प्राथमिक आंकड़े हैं। परंतु यदि उन्हीं आंकड़ों का को कोई दूसरा व्यक्ति अपने विशेष उद्देश्य के लिए प्रयोग करता है तो उसके लिए वे द्वितीयक आंकड़े बन जाएंगे।

सेक्रिस्ट ने ठीक ही कहा है कि, “प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों का अंतर केवल अवस्था का ही है जो आंकड़े एक पक्ष के लिए प्राथमिक है वह दूसरे के हाथ में द्वितीय है।”

प्राथमिक/आधारभूत आंकड़ों का संकलन कैसे होता है ? अथवा आंकड़ों के संकलन की विधियां

Modes of Data Collection

प्राथमिक आंकड़ों को इकट्ठा करने की मुख्य विधियां निम्नलिखित है-

  • A-प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान
  • B-अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान
  • C-स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति
  • D-प्रश्नावली के माध्यम से सूचना संग्रह
    • a)  डाक प्रश्नावली विधि
    • b)  गणकों को द्वारा अनुसूचियां भरना

A-प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान

Direct Personal Investigation

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान वह विधि है जिसमें अनुसंधानकर्ता स्वयं क्षेत्र में जाकर सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष तथा सीधा संपर्क स्थापित करता है और आंकड़े एकत्रित करता है। इस विधि की सफलता के लिए आवश्यक है कि अनुसंधानकर्ता को मेहनती, व्यवहार-कुशल, निष्पक्ष और धैर्यवान होना चाहिए। उसे सूचना देने वाले की भाषा रहन-सहन, रीति-रिवाज, संस्कृति आदि का भी ज्ञान होना चाहिए। उदाहरण के लिए गांव की साक्षरता की दर ज्ञात करने के लिए यदि अनुसंधानकर्ता गांव के प्रत्येक परिवार से मिलकर सूचना एकत्रित करता है तो यह प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान कहलाता है।

उपयुक्तता (Suitability)

यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है-

  • 1-जिनका क्षेत्र सीमित है।
  • 2-आंकड़ों की मौलिकता अधिक जरूरी है।
  • 3-जहां आंकड़ों को गुप्त रखना हो।
  • 4-जहां आंकड़ों की शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है।
  • 5-सूचना देने वालों से सीधा संपर्क करना आवश्यक हो।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के गुण

  • 1-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़े मौलिक होते हैं।
  • 2-इस विधि से प्राप्त आंकड़ों में शुद्धता होती है क्योंकि अनुसंधानकर्ता स्वयं आंकड़ों को एकत्रित करता है।
  • 3-इस विधि द्वारा प्राप्त जानकारी पर पूर्ण रुप से विश्वास किया जा सकता है।
  • 4-इस विधि द्वारा मुख्य सूचना के अतिरिक्त और भी कई उपयोगी सूचनाएं प्राप्त हो जाती हैं।
  • 5-इस विधि द्वारा आंकड़ों में एकरूपता पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है क्योंकि आंकड़े एक ही व्यक्ति द्वारा संकलित किए जाते हैं।
  • 6- यह विधि लोचशील होती हैं। क्योंकि अनुसंधानकर्ता आवश्यकतानुसार प्रश्नों को कम या ज्यादा कर सकता है।

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान विधि के दोष

  • 1-यह विधि अनुसंधान के बड़े क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त है।
  • 2-इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात के कारण परिणामों के दोषपूर्ण होने का डर बना रहता है।
  • 3-इस विधि में धन अधिक खर्च होता है तथा श्रम भी अधिक करना पड़ता है।
  • 4-इस विधि में अनुसंधान सीमित क्षेत्र में ही किया जाता किया जाना संभव होता है। इसलिए प्राप्त परिणाम क्षेत्र की सारी विशेषताओं को प्रकट करने में असमर्थ होता है। इस कारण गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं।

B-अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान

Indirect Oral Method

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान वह विधि है जिसमें किसी समस्या से अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखने वाले व्यक्तियों से मौखिक पूछताछ द्वारा आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को साक्षी (Witness) कहा जाता है। उदाहरण के लिए मजदूरों की आर्थिक स्थिति के बारे में सूचना, मजदूरों से एकत्रित ने करके मिल-मालिकों या श्रम-संघों से मौखिक पूछताछ द्वारा प्राप्त की जाए।

उपयुक्तता

यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जिसमें-

  • 1-अनुसंधान क्षेत्र अधिक व्यापक हो।
  • 2-प्रत्यक्ष सूचना देने वालों से संपर्क संभव न हो।
  • 3-प्रत्येक सूचना देने वाले अज्ञानता के कारण सूचना देने में असमर्थ हूं।
  • 4-आंकड़े जटिल किस्म के हो एवं उनके लिए विशेषज्ञ की राय की जरूरत हो।
  • 5-इस विधि का प्रयोग अधिकतर सरकारी या गैर सरकारी समितियों या आयोगों द्वारा किया जाता है।


गुण

  • 1-यह प्रणाली विस्तृत क्षेत्र में लागू की जा सकती है।
  • 2-इस विधि में धन, समय और श्रम कम लगते हैं।
  • 3-इस विधि में विशेषज्ञों की राय तथा सुझाव प्राप्त हो सकते हैं।
  • 4-इस विधि में अनुसंधानकर्ता के व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव नहीं पड़ता।
  • 5-यह विधि सरल होती है तथा आंकड़ों को संकलित करने में अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती।

अवगुण

  • 1-इस विधि द्वारा एकत्रित आंकड़ों में उच्च-स्तर की शुद्धता नहीं होती क्योंकि सूचना देने वाले प्राय लापरवाही बरतते हैं।
  • 2-इस विधि में सूचना देने वाले के व्यवहार के पक्षपात में संभावना होती है।
  • 3-इस विधि में साक्ष्य देने वाले की लापरवाही, पक्षपात तथा अज्ञानता के कारण गलत सूचना देने के फलस्वरूप गलत परिणाम निकलने की संभावना होती है।

C-स्थानीय स्रोतों में संवाददाताओं से सूचना प्राप्ति

Information from Local Sources or Correspondents

इस विधि के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता विभिन्न स्थानों पर स्थानीय व्यक्ति या विशेष संवाददाता नियुक्त कर देता है| वे अपने-अपने तरीकों से सूचना एकत्रित करते हैं और अनुसंधानकर्ता को भेज देते हैं। उदाहरण के लिए समाचार पत्र इसी विधि द्वारा खबरें एकत्रित करते हैं।

उपयुक्तता

यह विधि ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जिसमें-

  • 1-आंकड़ों के निरंतर संकलन की आवश्यकता हो।
  • 2-आंकड़े एकत्रित करने का क्षेत्र व्यापक हो।
  • 3-आंकड़ों का प्रयोग पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन आदि द्वारा किया जाना हो।
  • 4-सूचनाओं की अत्यधिक शुद्धता की आवश्यकता ना हो।

गुण

  • 1-इस विधि में समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है यह कम खर्चीली प्रणाली है।
  • 2-इस विधि का क्षेत्र विस्तृत होता है क्योंकि दूर-दूर के स्थानों से लगातार सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है।
  • 3-इस विधि द्वारा सूचना ही निरंतर प्राप्त होती रहती है।
  • 4-यह विधि विशेष परिस्थितियों में उपयोगी है। इसके द्वारा कृषि उत्पादकता, कीमत के सूचकांक आदि का अनुमान अधिक उचित ढंग से लगाया जा सकता है।

अवगुण

  • 1-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ों में मौलिकता नहीं रहती क्योंकि सूचना देने वाले के साथ व्यक्तिगत संपर्क नहीं होता।
  • 2-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ों में एकरूपता का अभाव पाया जाता है। क्योंकि आंकड़े विभिन्न संवाददाताओं द्वारा इकट्ठे किए जाते हैं और हर एक संवाददाता की कार्यप्रणाली भिन्न होती है।
  • 3-इस विधि में आंकड़ों के संकलन पर व्यक्तिगत पक्षपात का प्रभाव पड़ता है।
  • 4-इस विधि द्वारा प्राप्त सूचनाओं में शुद्धता की कमी होती है।5-इस विधि द्वारा सूचनाओं के प्राप्ति में देरी होने की संभावना रहती है।

D-प्रश्नावली एवं अनुसूचियों के माध्यम से सूचना संग्रह

Information through Questionnaires and Schedules

इस विधि में अनुसंधानकर्ता सबसे पहले अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रश्नों का समूह तैयार करता है अर्थात प्रश्नावली तैयार करता है। इस प्रश्नावली के आधार पर दो प्रकार से सूचनाएं एकत्रित की जा सकती है-

  • i) डाक प्रश्नावली विधि
  • ii) गणक विधि या अनुसूची विधि

i) डाक विधि (Mailing Method)

डाक विधि में प्रश्नावली सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास डाक द्वारा भेजी जाती है। प्रश्नावली के साथ एक पत्र भी भेजा जाता है जिसमें अनुसंधान के उद्देश्य स्पष्ट किए जाते हैं तथा सूचना देने वाले को यह विश्वास दिला जाता है कि उसके द्वारा भेजी गई सूचना गुप्त रखी जाएंगी। प्रश्नावली प्राप्त करने वाले व्यक्ति प्रश्नावली में प्रश्नों का उत्तर लिखकर उसे वापस अनुसंधानकर्ता के पास भेज देता है।

उपयुक्तता

इस विधि का प्रयोग सब उपयुक्त होता है-

  • 1-  जब अनुसंधान क्षेत्र काफी विस्तृत हो।
  • 2-  सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित हो।

गुण

  • 1-इस विधि में धन कम खर्च होता है। समय और परिश्रम की भी बचत होती है।
  • 2-इस विधि द्वारा संकलित आंकड़ें मौलिक होते हैं क्योंकि सूचना स्वयं सूचकों द्वारा दी जाती है।
  • 3-इस विधि द्वारा विस्तृत क्षेत्र में भी आंकड़े सरलता से एकत्रित किए जा सकते हैं।

अवगुण

  • 1-इस विधि का एक प्रमुख अवगुण यह है कि सूचना देने वाले अधिकतर व्यक्ति उदासीनता के कारण प्रश्नावली को वापिस ही नहीं भेजते और जो भर कर भेजते हैं उनमें से अनेक अपूर्ण होती है।
  • 2-इस विधि में लोचशीलता नहीं पाई जाती क्योंकि अपूर्ण सूचना प्राप्त होने पर अतिरिक्त प्रश्न पूछ पर सूचना एकत्रित नहीं की जा सकती।
  • 3-इस विधि का उपयोग सीमित है क्योंकि इसके अंतर्गत केवल शिक्षित व्यक्तियों से आंकड़े एकत्रित किए जा सकते है।
  • 4-यदि सूचकों में पक्षपात की भावना होगी तो अशुद्ध सूचनाएं उपलब्ध होने की संभावना रहती है।
  • 5-इस विधि द्वारा प्राप्त आंकड़ों में शुद्धता की मात्रा कम होती है। क्योंकि कई बार प्रश्नावली सावधानी से तैयार न होने या प्रश्नों की जटिलता के कारण उनके उत्तर गलत दे दिए जाते हैं।

ii) गणक विधि (Enumerator’s Method)

इस विधि में अनुसंधान के उद्देश्य को ध्यान में रखकर एक प्रश्नावली तैयार की जाती है। इन प्रश्नावलियों को लेकर सूचना देने वाले व्यक्तियों के पास गणक स्वयं जाते हैं। इस प्रकार के प्रश्नावली को जो गणक स्वयं सूचकों से प्रश्न पूछकर भरते हैं, उन्हें अनुसूचियां (Schedules) कहा जाता है |गणक (Enumerators) उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो आंकड़े संकलन में अनुसंधानकर्ता की मदद करते हैं। इन गणकों को अनुसूचियां भरवाने के संबंध में प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे वे सही प्रश्न पूछें तथा अनुसूचियों को शुद्धतापूर्वक भर सकें।

उदाहरण-भारत में प्रति 10 वर्ष के बाद होने वाली जनगणना में इसी विधि का प्रयोग किया जाता है।

उपयुक्तता

यह विधि ऐसे अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है-

  • 1-जिनका क्षेत्र विस्तृत है।
  • 2-जिनसे संबंधित गणक निपुण और निष्पक्ष व अनुभवी और व्यवहार कुशल हैं।
  • 3-गणकों को अपने क्षेत्र के सूचकों की भाषा, रीति-रिवाज और स्वभाव का भली-भांति परिचय है।

गुण

  • 1-इस विधि द्वारा काफी विस्तृत क्षेत्र से भी सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं। उन व्यक्तियों से भी सूचना प्राप्त हो सकती है जो निरक्षर हैं।
  • 2-इस विधि में शुद्धता पाई जाती है क्योंकि योग्य प्रशिक्षित तथा अनुभवी गणकों द्वारा प्रश्न पूछे जाते हैं और अनुसूचियां भरी जाती है।
  • 3-इस विधि में गणकों का सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क रहने के कारण जटिल प्रश्नों के भी शुद्ध और विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो सकते हैं।
  • 4-इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि कुछ गणक पक्ष में तो कुछ विपक्ष में होते हैं।
  • 5-इस विधि में पूर्णता पाई जाती है क्योंकि गणक द्वारा सभी प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही प्राप्त किए जाते हैं।

अवगुण

  • 1-यह विधि अनुसंधान की सबसे अधिक खर्चीली विधि है क्योंकि इसमें प्रशिक्षित गणकों का प्रयोग किया जाता है।
  • 2-इस विधि का एक मुख्य अवगुण यह है कि योग्य गणकों की कमी होती है। इसलिए सही आंकड़े एकत्रित करना कठिन हो जाता है।
  • 3-इस विधि में गणकों की नियुक्ति तथा प्रशिक्षण में अधिक समय लगता है। इसलिए आंकड़ों के संकलन में देरी हो जाती है।
  • 4-इस विधि द्वारा आंकड़े संकलित करने पर खर्च बहुत होता है| इसलिए यह विधि निजी अनुसंधानकर्ताओं के लिए अनुपयुक्त है| यह विधि सरकार के लिए अधिक उपयुक्त है।
  • 5-यदि गणक पक्षपातपूर्ण होते हैं तो आंकड़ों में शुद्धता नहीं रहेगी।


प्रश्नावली तथा अनुसूचियां का निर्माण तथा उनके गुण

प्रश्नावली तथा अनुसूचियां के निर्माण का प्राथमिक आंकड़ों के संकलन में एक विशेष महत्व है। प्रश्नावली तथा अनुसूचियों में बिल्कुल एक जैसे प्रश्न होते हैं| इन दोनों में केवल अंतर यह है कि प्रश्नावली में सभी सूचनायें सूचकों द्वारा लिखी जाती है। इसके विपरीत अनुसूचियां को गणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता है।

एक अच्छी प्रश्नावली के गुण

Qualities of a good Questionnaire

1-प्रश्नों की कम संख्या- प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या अनुसंधान के क्षेत्र के अनुसार होनी चाहिए| परंतु जहां तक संभव हो, इनकी संख्या कम से कम होनी चाहिए और प्रश्न अनुसंधान से संबंधित होने चाहिए।

2-सरलता- प्रश्नों की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए। प्रश्न छोटे होने चाहिए। प्रश्न लंबे तथा जटिल नहीं होने चाहिए। गणना करने संबंधी प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए।

3-प्रश्नों का उचित क्रम- प्रश्नों का एक उचित तथा तर्कपूर्ण क्रम होना चाहिए।

4-अनुचित प्रश्न नहीं होने चाहिए- प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जो सूचना देने वाले के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाए।

5-मतभेद रहित- प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर बिना किसी पक्षपात के दिया जा सके| इस प्रकार के प्रश्न भी नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें किसी प्रकार के मतभेद की संभावना हो।

6-गणना- इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिए जिनमें उत्तर देने वाले को किसी प्रकार की गणना करने पड़े| गणना का कार्य अनुसंधानकर्ता को स्वयं करना चाहिए।

7-पूर्व परीक्षण- प्रश्नावली को अंतिम रूप देने से पहले उसका एक परीक्षण कर लेना चाहिए| इसके लिए कुछ सूचकों से प्रयोग के रूप में प्रश्न पूछे जाने चाहिए। यदि उनके उत्तर में कोई कठिनाई महसूस की जाती है तो उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर दिया जाना चाहिए। इस परीक्षण को मार्गदर्शी सर्वेक्षण (Pilot Survey) कहते हैं।

8-निर्देश- प्रश्नावली को भरने के लिए उसमें स्पष्ट तथा निश्चित निर्देश देने चाहिए।

9-सत्यता की जांच- प्रश्नावली में ऐसे भी प्रश्न पूछे जाने चाहिए जिनसे उत्तरों की सत्यता की परस्पर जांच की जा सके।

10-प्रश्नावली लौटाने की प्रार्थना- प्रश्नावली को भरकर वापिस लौटाने की प्रार्थना की जाने चाहिए तथा यह भी यकीन दिलाया जाना चाहिए कि सूचना गुप्त रखी जाएगी।

प्रश्नों की प्रकृति के उदाहरण

एक प्रश्नावली में निम्न प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं-

1-सामान्य विकल्प वाले प्रश्न-

इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर हां या नहीं सही अथवा गलत में दिया जा सकता है।

उदाहरण के लिए : क्या आपके पास कार है?             हाँ/नहीं

2-बहुविकल्पीय प्रश्न-

किसी विषय के संबंध में कई प्रकार के विकल्प होते हैं तो बहुविकल्पीय प्रश्न पूछने उचित होते हैं। इन प्रश्नों के कई संभवत प्रश्नावली में छपे होते हैं सूचना देने वाला उनमें से किसी एक पर निशान लगा देता है।

उदाहरण-आप घर से विद्यालय किस साधन में आते हैं?

a)पैदल                   2)बस द्वारा c)साइकिल द्वारा           4)मोटरसाइकिल द्वारा

3-विशिष्ट जानकारी देने वाले प्रश्न

इन प्रश्नों द्वारा केवल विशिष्ट जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

उदाहरण के लिए-आप कौन सी कक्षा में पढ़ते हैं? आपका मासिक जेब खर्च कितना है?

4-खुले प्रश्न

इन प्रश्नों के उत्तर देने में सूचक को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त होता है।

उदाहरण-भारत में शिक्षा का स्तर कैसे बढ़ाया जा सकता है? भारत में जनसंख्या नियंत्रण कैसे किया जा सकता है?

B-द्वितीयक आंकड़ों का संकलन

Collection of Secondary Data

द्वितीयक आंकड़ों को एकत्रित करने के दो मुख्य स्रोत हैं- प्रकाशित स्रोत तथा अप्रकाशित स्रोत।

i) प्रकाशित स्रोत

Published Sources of Secondary Data

प्रकाशित स्रोतों से अभिप्राय उन सरकारी विभागों, संस्थाओं या एजेंसियों से हैं जो निरंतर आंकड़े एकत्रित करते रहते हैं और एक निश्चित समय अंतराल जैसे दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक आधार पर आंकड़ों का प्रकाशित प्रकाशन करते रहते हैं।द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य प्रकाशित स्रोत निम्नलिखित हैं-

1-सरकारी प्रकाशन-भारत की केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के मंत्रालय तथा विभाग, विभिन्न विषयों से संबंधित आंकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। यह आंकड़े काफी उपयोगी तथा विश्वसनीय होते हैं। प्रमुख सरकारी प्रकाशन निम्नलिखित हैं।Statistical Abstract of India, Labour Gazette, Reserve Bank of India bulletin etc.

2-अर्ध-सरकारी प्रकाशन-सरकारी संस्था जैसे नगर पालिका, नगर निगम, जिला परिषद आदि भी कई मदों से संबंधित आंकड़े जैसे जन्म-मरण, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि प्रकाशित करती रहती हैं। यह आंकड़े भी विश्वसनीय तथा अनुसंधान के लिए उपयोगी होते हैं।

3-समितियों और आयोगों की रिपोर्ट-सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न समितियों तथा आयोगों की रिपोर्टों में महत्वपूर्ण आंकड़े संकलित होते हैं। उदाहरण के लिए वित्त आयोग, योजना आयोग आदि द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों से उपयोगी आंकड़े प्राप्त होते हैं।

4-व्यापारिक संघों के प्रकाशन-बड़े-बड़े व्यापारी संघ भी अपने अनुसंधान तथा संख्यिकी विभाग द्वारा एकत्रित आंकड़े प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए चीनी मिल संघ, चीनी के कारखानों से संबंधित आंकड़े प्रकाशित करता है।

5-अनुसंधान संस्थाओं के प्रकाशन-विभिन्न विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संस्थान अपने शोध कार्यों के परिणाम प्रकाशित करते रहते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय सांख्यिकीय संस्थान, व्यापक व्यवहारिक आर्थिक शोध की राष्ट्रीय परिषद आदि संस्थाएं कई प्रकार के उपयोगी आंकड़े प्रकाशित करते हैं।

6-पत्र पत्रिकाएं-कई समाचार पत्र जैसे इकोनामिक टाइम्स और पत्रिकाएं जैसे योजना, Facts for You आदि भी उपयोगी आंकड़े प्रकाशित करती हैं।

7-व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ताओं के प्रकाशन-व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता भी अपने अनुसंधान संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करके उनका प्रकाशन करवाते हैं।

8-अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि तथा विदेशी सरकारें भी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आंकड़े प्रकाशित करती हैं। इन्हें भी द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग किया जाता है।

ii) अप्रकाशित स्रोत

Unpublished Sources of Secondary Data

द्वितीयक आंकड़ों का अप्रकाशित स्रोत भी होता है। सरकार, विश्वविद्यालय, निजी संस्थाएं तथा व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता विभिन्न उद्देश्यों के लिए ऐसे आंकड़ों का संकलन करते रहते हैं। जिन्हें प्रकाशित नहीं कराया जाता है। इन अप्रकाशित संख्यात्मक सूचनाओं का प्रयोग द्वितीयक आंकड़ों के रूप में किया जा सकता है।

द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग के संबंध में सावधानियां

द्वितीयक आंकड़ों का संकलन दूसरे व्यक्तियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसलिए इनका प्रयोग करते समय काफी सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इनमें काफी कमियां हो सकती हैं।

कौनोर के अनुसार, “आंकड़े विशेष रूप से अन्य व्यक्तियों द्वारा एकत्रित आंकड़े प्रयोग करता के लिए अनेक त्रुटियों से पूर्ण होते हैं।”
अतः द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले निम्नलिखित तीन बातों का निश्चय कर लेना चाहिए-

  • i) क्या आंकड़े विश्वसनीय है?
  • ii) क्या आंकड़े वर्तमान उद्देश्य के लिए उपयोगी हैं?
  • iii) क्या आंकड़े पर्याप्त हैं?

द्वितीयक आंकड़ों की विश्वसनीयता, उपयुक्तता तथा पर्याप्तता की जांच करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-

1-संकलन संगठन की योग्यताएं

किसी भी व्यक्ति को द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले कुछ संगठन की योग्यता के बारे में जान लेना चाहिए जो प्रारंभिक रूप से आंकड़ों का संकलन करता है। आंकड़ों का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए। यदि आंकड़े योग्य, अनुभवी तथा पक्षपातहीन अन्वेषकों द्वारा एकत्रित किए गए हो।

2-उद्देश्य तथा क्षेत्र

यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि द्वितीयक आंकड़े जब प्राथमिक रूप से एकत्रित किए गए थे तो उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र क्या था? यदि उनका उद्देश्य तथा क्षेत्र वही है जिसके लिए अब द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग किया जाएगा तो ही यह आंकड़े उपयोगी सिद्ध होंगे और इन से निकाले गए निष्कर्ष सही होंगे।

3-संकलन विधि

द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करने से पहले यह भी ज्ञात कर लेना चाहिए कि द्वितीयक आंकड़ों को प्राथमिक रूप से संकलित करते समय जो विधि अपनाई गई थी, वह उपयुक्त तथा विश्वसनीय थी या नहीं| यदि यह विधि उपयुक्त थी तो इन आंकड़ों का द्वितीय रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

4-संकलन का समय तथा परिस्थितियां

अनुसंधानकर्ताओं को यह भी निश्चित कर लेना चाहिए कि उपलब्ध आंकड़े किस समय से संबंधित है तथा उन्हें किन परिस्थितियों में एकत्रित किया गया है। उदाहरण के लिए युद्ध के दौरान एकत्रित किए गए आंकड़े, शांति के दिनों में भी उपयुक्त हो यह आवश्यक नहीं है।

5-इकाई की परिभाषा

संकलित आंकड़ों को प्रयोग करने से पहले यह भी देख लेना चाहिए कि पूर्व अनुसंधान में आंकड़ों की इकाइयों का जिन अर्थों में प्रयोग किया गया है। यदि वे वर्तमान अनुसंधान में प्रयोग की जाने वाली इकाइयों के अर्थ में समान है तो ही उनका प्रयोग किया जाना उपयुक्त होगा।

6-शुद्धता

उपलब्ध आंकड़ों का द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग करने से पहले उनकी शुद्धता के स्तर की भी जांच कर लेनी चाहिए। यदि वर्तमान अनुसंधान के लिए शुद्धता का उच्च स्तर आवश्यक हो और उपलब्ध आंकड़ों के संकलन में केवल सामान्य शुद्धता का ध्यान रखा गया है तो ऐसे आंकड़े उपयुक्त नहीं होंगे।

संक्षेप में डॉ. बाउले ने ठीक ही कहा है कि, “प्रकाशित आंकड़ों को बिना उनके अर्थ व सीमाएँ जाने, जैसे का तैसा ग्रहण कर लेना कभी सुरक्षित नहीं है।”अतः द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय उपरोक्त सावधानियां बरतनी आवश्यक है।

भारत में द्वितीयक आंकड़ों के महत्वपूर्ण स्रोत :भारत की जनगणना तथा राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के रिपोर्ट एवं प्रकाशन

A)भारत की जनगणना

Census of India

भारत की जनगणना भारत सरकार का 10 वर्षीय प्रकाशन है| यह भारत के Registrar General and Census Commissioner द्वारा प्रकाशित किया जाता है। द्वितीयक आंकड़ों का यह एक व्यापक स्रोत है। इसका संबंध भारत में जनसंख्या के आकार तथा जनांकिकीय परिवर्तन के विभिन्न पक्षों से हैं। इसमें निम्नलिखित सूचनाएं शामिल होती हैं।

  1. भारत में संख्या का आकार वृद्धि दर तथा वितरण
  2. जनसंख्या प्रक्षेपण
  3. जनसंख्या घनत्व
  4. जनसंख्या की लिंग सरंचना
  5. साक्षरता की अवस्था

उपरोक्त लिखे सभी तथ्यों के लिए उपलब्ध सूचना संपूर्ण देश तथा देश के विभिन्न राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित होती है।

B) राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के रिपोर्ट एवं प्रकाशन Reports and Publications of NSSO

National Sample Survey Organisation-NSSO

भारत में द्वितीयक आंकड़ों का एक महत्वपूर्ण स्रोत NSSO की रिपोर्ट तथा प्रकाशन है। Misnistry of Statistics and Programme Implementation के अंतर्गत NSSO सरकारी संगठन है देश के ग्रामीण तथा शहरी भागों में होने वाली विभिन्न आर्थिक क्रियाओं से संबंधित संख्यिकी के सूचना यह संगठन नियमित रूप से सैंपल सर्वे करके एकत्रित करता है।NSSO के प्रकाशन एवं रिपोर्ट आर्थिक परिवर्तन के निम्नलिखित पैरामीटरों/तथ्यों की सांख्यिकीय सूचनाएं उपलब्ध कराता है-

  1. ·         भूमि तथा पशु जोत
  2. ·         भवन दशाएं तथा प्रवास झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों पर विशेष बल देते हुए
  3. ·         भारत में रोजगार तथा बेरोजगारी की स्थिति
  4. ·         भारत में उपभोक्ता व्यय।

निम्न संस्थाएं भारत में राष्ट्रीय स्तर पर सांख्यिकीय आंकड़े संगृहीत, संसाधित तथा सारणीबद्ध करते हैं।

  1. ·         राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन-NSSO
  2. ·         भारत का महापंजीयक-Registrar General of India
  3. ·         वाणिज्य सतर्कता एवं संख्यिकी महानिदेशालय (DGCIS)
  4. ·         श्रम ब्यूरो (Labour Bureau)

If you have any doubt or query regarding above notes, feel free to comment us. Team Economics Online Class is here for your help.~Admin

Share this:

Tagged Class 11 Economics Notes Statistics for economics
Eco_Admin
https://economicsonlineclass.com

Post navigation

Previous article
Class 11 Economics Chapter 1-Limitations of Statistics
Next article
Class 12 Macro Economics Notes in Hindi

Leave a ReplyCancel reply

Important Links

Haryana Edu MIS
Intra Haryana
HRMS Haryana
E-Salary Haryana

Up-grades initiative

Posted on 03/02/202403/02/20240

Haryana Board Exam Material 2023-24

Posted on 02/01/202402/01/20240

CBSE Project file Decoration Ideas 2023-24

Posted on 21/12/202321/12/20230

Categories

  • 11thEconomicsNotes
  • 12thEconomicsNotes
  • announcements
  • BSEH result
  • Class 11
  • class 12
  • Class 12 Answer Key
  • Economics Notes
  • economics online test
  • Edusat
  • Exams
  • Haryana board (BSEH)
  • hbse
  • Macro Economics
  • Macro Economics notes in Hindi
  • macro economics online test
  • Micro Economics
  • Micro Economics notes in English medium
  • micro economics online test mcq
  • MicroEconomics
  • news
  • Online test
  • onlinetest
  • Project File
  • Sample Paper
  • sat exam
  • Solution of Exams
  • Statistics for Economics notes
  • study material
  • syllabus
  • Uncategorized
  • videos

Tags

answer key Class 11 Economics Notes class 12 class 12 Economics Notes class 12 micro economics notes in class 12 Sample paper economics notes economics notes in English economics notes pdf download Economics online test mcq edusat exam material exams Haryana Board sample paper hindi macro economics macro economics notes in Hindi macro economics online test micro economics micro economics notes in English medium micro economics notes in Hindi micro economics online test mcq numeric solutions online test onlinetest project file ideas sat exam solution of board papers solution of exams solution of numerical Statistics for economics study material syllabus
© 2025
Powered by WordPress | Theme: AccessPress Mag
  • Home
  • Privacy Policy
  • Contact us
  • Sitemap
Top
Exit mobile version
%%footer%%