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Class 12 Macro Economics Chapter 2-Some Basic Concepts of Macro Economics

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by Eco_Admin - 09/01/202209/01/20220
Macro-2-some-basic-concepts-of-macro-economics

Class 12 Macro Economics Chapter 2-Some Basic Concepts of Macro Economics notes in Hindi. Economics online class providing all Economics notes in Hindi medium and English medium.

अध्याय 2 – समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ मूल धारणाएँ

Some Basic Concepts Macro Economics

इस अध्याय में हम समष्टि अर्थशास्त्र से संबंधित कुछ मूल अवधारणाओं का अध्ययन करेंगे।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macro economics notes in Hindi)

1- वस्तुओं के प्रकार (Types of Goods)

A- अंतिम वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ- Final Goods and Intermediate Goods

i) अंतिम वस्तुयेँ (Final Goods)

अंतिम वस्तुओं से अभिप्राय उन वस्तुओं से होता है जो अंतिम-प्रयोगकर्ताओं द्वारा प्रयोग के लिए तैयार होती हैं। अर्थात ये वस्तुयेँ उत्पादन की सीमा रेखा पार कर चुकी हैं। सरल शब्दों में ये वस्तुयेँ उत्पादन प्रक्रिया के सभी चरणों को पर कर चुकी होती है और अंतिम प्रयोगकर्ता  के उपभोग के लिए तैयार होती हैं। अंतिम प्रयोगकर्ता दो प्रकार के होते हैं- a) उपभोक्ता b) उत्पादक।

उदाहरण के लिए उपभोक्ता कपड़ों, जूतों, पुस्तक इत्यादि के अंतिम प्रयोगकर्ता होते है। और उत्पादक प्लांट और मशीनरी के अंतिम प्रयोगकर्ता होते हैं। अतः इस आधार पर अंतिम वस्तुओं को a) अंतिम उपभोक्ता वस्तु और b) अंतिम उत्पादक वस्तुओं में वर्गीकारित किया जा सकता हैं।

उपभोक्ता अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं के अंतिम प्रयोगकर्ता होते हैं। उदाहरणतया एक गृहस्थ द्वारा प्रयोग किए गए जूते और बिस्किट। जबकि उत्पादक अंतिम उत्पादक वस्तुओं के अंतिम प्रयोगकर्ता होते हैं। उदाहरणतया एक किसान द्वारा उपयोग किया गया ट्रैक्टर।

एक उपभोक्ता द्वारा अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं पर किया गया व्यय उपभोग व्यय कहलाता है। इसी तरह एक उत्पादक द्वारा उत्पादक वस्तुओं पर किया गया व्यय निवेश व्यय कहलाता है। अतः

अंतिम वस्तुओं पर किया गया व्यय = उपभोग व्यय + निवेश व्यय

विशेष नोट: राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय केवल अंतिम वस्तुओं को भी सम्मिलित किया जाता है।

ii) मध्यवर्ती वस्तुएँ– Intermediate Goods

मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ कहलाती हैं जिन्होंने अभी तक उत्पादन की सीमा रेखा को पार नहीं किया है।  अभी इन वस्तुओं के मूल्य में और वृद्धि की जानी है और यह वस्तुएँ अंतिम प्रयोगकर्ता  द्वारा उपयोग के लिए तैयार नहीं हैं। ये वस्तुयेँ एक फर्म द्वारा किसी अन्य फर्म से कच्चे माल के रूप में खरीदी जाती हैं ताकि इनका रूप बदलकर, नया उत्पाद बनाकर या इनमें मूल्यवृद्धि करके इन्हें आगे बेचा जा सके। उदाहरण के लिए एक शर्ट निर्माता शर्ट बनाने के लिए कपड़ा, बटन, धागे इत्यादि मध्यवर्ती वस्तुयेँ खरीदता है और उन्हें शर्ट के रूप में परिवर्तित कर के बेचता है। इसी तरह एक बढ़ई के लिए लकड़ी, कील, फेविकोल इत्यादि मध्यवर्ती वस्तुयेँ होती हैं। बढ़ई द्वारा लकड़ी का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है और लकड़ी को कुर्सी के रूप में बदल कर उसके मूल्य में वृद्धि की जाती है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि मध्यवर्ती वस्तुयेँ उन वस्तुओं को कहते हैं जिन्हें एक फर्म अन्य फर्म से इसलिए खरीदती है ताकि इनकी पुनः बिक्री की जा सके या इन्हें कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जा सके। चूँकि मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य अंततः अंतिम वस्तुओं के मूल्य में विलीन हो जाता है, इसलिए राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को सम्मिलित नहीं किया जाता है, अन्यथा राष्ट्रीय उत्पाद के अनुमान में मूल्य की दोहरी गिनती हो जाएगी। उदाहरण के लिए जब एक बढ़ई ₹5000 लकड़ी खरीद कर इसे कुर्सियों में बदलकर ₹10000 में बेचता है तब कुर्सियों (अंतिम वस्तु) के मूल्य में लकड़ी (मध्यवर्ती वस्तु) का मूल्य शामिल होता है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

एक ही वस्तु मध्यवर्ती अथवा अंतिम वस्तु हो सकती है। The Same good may be final good or Intermediate good

एक ही वस्तु मध्यवर्ती अथवा अंतिम वस्तु हो सकती है। यह वस्तु के अंतिम उपयोग पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए हलवाई मिठाई बनाने के लिए दूध, चीनी इत्यादि का प्रयोग करता है, ये उसके लिए मध्यवर्ती वस्तु कहलायेंगी क्योंकि हलवाई द्वारा इनका प्रयोग कच्चे माल के रूप में और इसमें रूप-परिवर्तन करके इसमें मूल्यवृद्धि कर के इसे पुनः आगे बेचने के लिए किया गया है। किन्तु वही चीनी और दूध एक गृहस्थ द्वारा अपने घर में प्रयोग की जाती है तो ये उसके लिए अंतिम वस्तु होती हैं क्योंकि एक गृहस्थ इन्हें पुनः आगे नहीं बेचता है। इसी तरह एक विद्यार्थी द्वारा खरीद गया कागज अंतिम वस्तु होता है परंतु जब एक प्रकाशक पुस्तक बनाने के लिए कागज को खरीदता है तो वह उसके लिए मध्यवर्ती वस्तु बन जाती है।

अंतिम वस्तुओं और मध्यवर्ती वस्तुओं में अंतर Difference between final and Intermediate goods

 मध्यवर्ती वस्तुयेँअंतिम वस्तुयेँ
1एक लेखावर्ष में इन वस्तुओं का प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक लेखावर्ष में इन वस्तुओं का प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता है।
2फ़र्मों द्वारा लाभ प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं की पुनः बिक्री की जाती है।फ़र्मों द्वारा लाभ प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं की पुनः बिक्री की जाती है।
3ये वस्तुयेँ उत्पादन की सीमा रेखा के अंदर रहती हैं तथा अंतिम प्रयोगकर्ता के उपयोग के लिए तैयार नहीं होती है।ये वस्तुयेँ उत्पादन की सीमा रेखा के बाहर होती हैं तथा अंतिम प्रयोगकर्ता के उपयोग के लिए तैयार होती है।
4इन वस्तुओं में अभी मूल्यवृद्धि या इनका रूप-परिवर्तन किया जाना बाकी होता है।इन वस्तुओं में कोई मूल्यवृद्धि या इनका रूप-परिवर्तन किया जाना बाकी नहीं होता है।
5इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय के अनुमान में शामिल नहीं किया जाता है।इन वस्तुओं को राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय के अनुमान में शामिल किया जाता है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

B उपभोक्ता वस्तुयेँ तथा पूँजीगत वस्तुयेँ Consumer Goods and Capital Goods

अंतिम वस्तुओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

i) उपभोक्ता वस्तुयेँ अथवा उपभोग वस्तुयेँ Consumer goods or consumption Goods

उपभोक्ता वस्तुयेँ अथवा उपभोग वस्तुयेँ वे वस्तुयेँ होती हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हैं तथा इनका उपयोग किसी अन्य वस्तु के उत्पादन करने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। उदाहरण : एक गृहस्थ द्वारा प्रयोग किया गया दूध और ब्रेड।

उपभोक्ता वस्तुयेँ अंतिम उपभोग के लिए होती हैं और अंतिम वस्तुओं के रूप में अंतिम प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग की जाती हैं। उपभोक्ता वस्तुओं के अंतिम प्रयोगकर्ता निम्न होते हैं-

a) उपभोक्ता परिवार- अपनी आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए।

b) सरकार- एक कल्याणकारी एजेंसी के रूप में उदाहरण के लिए बाढ़-अकाल पीड़ितों को खाद्यान्न और कपड़े बाँटे जाते हैं।

c) गैर-सरकारी संगठन- जब वे अपने कर्मचारियों केलिए अथवा दान हेतु उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदते हैं।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

उपभोक्ता वस्तुओं का वर्गीकरण– Classification of Consumption Goods

a) टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुयेँ- Durable Consumer Goods

टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुयेँ वे वस्तुयेँ हैं जिनका उपयोग कई वर्षों तक किया जा सकता हैं। तथा इनका मूल्य अपेक्षाकृत अधिक होता है।  उदाहरण- कार, टीवी, स्कूटर, वाशिंग मशीन, कंप्युटर-लैपटॉप इत्यादि।

b) अर्ध-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुयेँ- Semi-Durable Consumer Goods

अर्ध-टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग एक वर्ष या उससे कुछ अधिक समय के लिए प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण- कपड़े, जूते, फर्नीचर, बिजली का सामान, इत्यादि।

c) गैर टिकाऊ अथवा एकल उपभोग उपभोक्ता वस्तुएँ- Non Durable or Single Use Consumer Goods

गैर टिकाऊ अथवा एक उपभोग उपभोक्ता वस्तुएँ वस्तुएँ होती हैं जिनका केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है। एक उपभोग के बाद उन वस्तुओं का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। उदाहरण के लिए भूख मिटाने के लिए हम जिस रोटी को खाते हैं एक बार उपयोग के बाद वह रोटी समाप्त हो जाएगी। हम उसका दोबारा उपभोग नहीं कर सकते। ऐसी वस्तुओं का सापेक्ष मूल्य कम होता है। भोजन दूध पेट्रोल गैस इत्यादि गैर टिकाऊ अथवा एकल उपभोग उपभोक्ता वस्तुओं के उदाहरण है।

d) सेवाएं Services

सेवाएं वे गैर भौतिक वस्तुएँ हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हैं। डॉक्टर, वकील, नौकर, अध्यापक आदि की सेवाएं इसके कुछ उदाहरण है।

ii) पूँजीगत वस्तुएँ- Capital Goods

अंतिम वस्तुओं के रूप में पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियाँ होती है। इन वस्तुओं जैसे प्लांट मशीनरी आदि का उत्पादन प्रक्रिया में बार-बार कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है। यद्यपि नट-बोल्ट अथवा कील इत्यादि को भी कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जाता है, परंतु ये पूँजीगत वस्तुएँ नहीं कहलाती हैं क्योंकि यह कम कीमत वाली वस्तुएँ हैं। अतः पूँजीगत वस्तुओं में उच्च मूल्य वाली स्थिर संपत्तियों को ही शामिल किया जाता है जिनका कई वर्षों तक उत्पादन की प्रक्रिया में प्रयोग किया जाता है और जिनका मूल्य उच्च होता है। संक्षेप में, पूँजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है और जिनका उच्च मूल्य होता है। यह उत्पादकों के स्थिर परिसंपत्तियों होती हैं। उदाहरण प्लांट तथा मशीनरी।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

सभी मशीनें पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती All machines are not Capital Goods

सभी मशीनें पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती है। उदाहरण के लिए एक दर्जी की दुकान में एक सिलाई की मशीन दर्जी की स्थिर संपत्ति है इसलिए यह एक पूँजीगत वस्तु है परंतु वही मशीन यदि एक उपभोक्ता परिवार के घर में है तो वह पूँजीगत वस्तु नहीं कहलाएगी। तब वह केवल एक टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु कहलाती है। इसी तरह एक कार पर्यटन कंपनी के पास हो तो वह पूँजीगत वस्तु बन जाती है, किंतु वही कार एक उपभोक्ता परिवार के पास है तो वह एक टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं कहलाएगी।

इनमें अंतर करने के लिए यह जानना आवश्यक है कि उसका अंतिम प्रयोगकर्ता कौन है? यदि टिकाऊ वस्तु का अंतिम प्रयोगकर्ता एक उत्पादक है तो यह पूँजीगत वस्तु है जबकि यदि अंतिम प्रयोगकर्ता एक उपभोक्ता परिवार है तो यह एक टिकाऊ उपयोग उपभोक्ता वस्तु बन जाती है। अतः केवल उन्हीं टिकाऊ वस्तुओं को पूँजीगत वस्तुएँ कहा जाता है जिनका उत्पादक वस्तुओं के रूप में प्रयोग होता है ना कि उपभोक्ता वस्तुओं के रूप में।

सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती हैं किंतु सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं होती। All Capital goods are producer goods but all producer goods are not capital goods

उत्पादक वस्तुएँ उन सभी वस्तुओं को कहते हैं जिनका उपयोग उत्पादन की प्रक्रिया में किया जाता है अथवा उत्पादक वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती है जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। इन वस्तुओं में i) उत्पादकों की उच्च मूल्य वाली पूँजीगत परिसंपत्तियों और ii) कच्चे मालों दोनों को शामिल किया जाता  है। उत्पादकों की स्थिर संपत्ति के विपरीत कच्चे माल के रूप में प्रयोग की गई वस्तुएँ, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ नहीं होती हैं। यह एकल उपयोग उपभोक्ता वस्तुएँ होती हैं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में बार बार प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए एक कुर्सी बनाने के लिए एक उत्पादक अपनी मशीनरी तथा लकड़ी का प्रयोग करता है। लकड़ी से एक बार कुर्सी बनने के बाद उस लकड़ी का अन्य कुर्सी बनाने के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। जबकि मशीनरी का प्रयोग उत्पादन की प्रक्रिया में बार बार किया जा सकता है क्योंकि यह एक टिकाऊ उपयोग उत्पादक वस्तु है। अतः स्पष्ट है कि सभी पूँजीगत वस्तुएँ उत्पादक वस्तुएँ होती हैं परंतु सभी उत्पादक वस्तुएँ पूँजीगत वस्तुएँ नहीं कहलाती।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

2- निवेश की धारणा तथा प्रकार Concept of Investment and types

उत्पादन के कारकों के स्टॉक को पूँजी कहा जाता है। यह उन मानव-कृत वस्तुओं (Man-made Goods)  का स्टॉक होता है जिनका प्रयोग और अधिक उत्पादन के लिए किया जाता है। किसी उत्पादक के पास पूँजी का स्टॉक जितना अधिक होगा, उतनी ही उसकी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन करने की क्षमता अधिक होगी। उत्पादक सदैव यह प्रयत्न करता है कि उसके पूँजी स्टॉक में वृद्धि होती रहे जिससे उसके उत्पादन करने की क्षमता समय के साथ साथ बढ़ती रहे। एक वर्ष के दौरान पूँजी के स्टॉक में होने वाली वृद्धि को उस वर्ष का निवेश कहा जाता है-

            I= ΔK

यहाँ I=निवेश, ΔK=पूँजी का स्टॉक में परिवर्तन

अतः निवेश = वर्ष के दौरान पूँजी के स्टॉक में परिवर्तन

पूँजी के स्टॉक में परिवर्तन को पूँजी निर्माण भी कहा जाता है। अतः निवेश तथा पूँजी निर्माण शब्दों का प्रयोग एक दूसरे के स्थान पर किया जाता है। निवेश को पूँजी निर्माण की प्रक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे पूँजी के स्टॉक में वृद्धि होती है। संक्षेप में, निवेश पूँजी निर्माण की एक प्रक्रिया है अथवा पूँजी के स्टॉक में वृद्धि की एक प्रक्रिया है।

निवेश के प्रकार Types of Investment

निवेश के दो घटक होते हैं- i) स्थिर निवेश तथा ii) माल सूची निवेश

i) स्थिर निवेश Fixed Investment

स्थिर निवेश अभिप्राय एक लेखा वर्ष की अवधि में उत्पादकों के स्थिर परिसंपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि होना है। उत्पादकों द्वारा स्थिर परिसंपत्तियों अथवा पूँजीगत वस्तुओं जैसे प्लांट तथा मशीनरी आदि की खरीद पर किया गया खर्च स्थिर निवेश कहलाता है। उदाहरण के लिए एक वर्ष के आरंभ में उत्पादक के स्टॉक में 5  मशीनें थी। वर्ष के अंत में उसके पास 7 मशीनें हो जाती हैं तो वर्ष के दौरान उसके स्थिर परिसंपत्ति के स्टॉक में दो मशीनों की वृद्धि हो जाती है।

स्थिर निवेश=लेखा वर्ष के अंत में उत्पादकों के स्थिर परिसंपत्तियों का स्टॉक – लेखा वर्ष के आरंभ में उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियों का स्टॉक

स्थिर निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहा जाता है। इसका अर्थ है स्थिर परिसंपत्तियों के रूप में पूँजी के स्टॉक में वृद्धि है, जिसका कई वर्षों तक उत्पादन की प्रक्रिया में बार-बार उपयोग किया जाता है।

स्थिर निवेश का महत्व Significance of Fixed Investment

स्थिर निवेश से अभिप्राय उत्पादकों के स्थिर संपत्तियों के स्टॉक में वृद्धि से है। इसका अर्थ है कि प्लांट तथा मशीनरी की संख्या में वृद्धि है। इसकी वजह से उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होती है। जब प्लांट तथा मशीनरी की संख्या अथवा आकार बढ़ता है तो उत्पादक छोटे पैमाने के उत्पादन की अपेक्षा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने लगते हैं। उत्पादन के पैमाने में वृद्धि का अर्थ उत्पादन के स्तर में वृद्धि है। इस प्रकार  स्थिर पूँजी निर्माण अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर को बढ़ाता है। यह समृद्धि तथा विकास का सूचक होता है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

ii) माल-सूची निवेश Inventory Investments

किसी एक समय बिंदु पर उत्पादकों के पास उत्पादन का जो स्टॉक होता है उसमें i) तैयार वस्तुएँ (बिना बिकी वस्तुएँ) ii) अर्ध-तैयार वस्तुएँ (उत्पादन की प्रक्रिया में वस्तुएँ) तथा iii) कच्चा माल सम्मिलित होता है। इसे माल-सूची स्टॉक कहा जाता है। समय के साथ-साथ स्टॉक में परिवर्तन होता रहता है। वर्ष के दौरान माल-सूची स्टॉक में होने वाले परिवर्तन को उत्पादक का माल-सूची निवेश कहते हैं।

माल सूची निवेश = लेखा वर्ष के अंत में माल-सूची स्टॉक – लेखा वर्ष के आरंभ में माल-सूची स्टॉक

माल सूची निवेश का महत्व Significance of Inventory Investment

बाजार की अनिश्चितताओं का सामना करने के उद्देश्य से माल-सूची को बनाए रखा जाता है।  पूर्ति की कमी से निपटने के लिए कच्चे माल की माल-सूची आवश्यक होती है। तैयार वस्तुओं की माल-सूची बनाने का उद्देश्य मांग में होने वाली वृद्धि को पूरा करना होता है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

सकल निवेश, शुद्ध निवेश तथा मूल्यह्रास की धारणा Gross investment, Net Investment and Concept of Depreciation

वर्ष के दौरान स्थिर संपत्तियों अथवा माल-सूची स्टॉक को खरीदने के लिए किया गया व्यय सकल निवेश कहलाता है।

सकल निवेश = लेखा वर्ष के दौरान स्थिर संपत्तियों को खरीदने पर व्यय + लेखा वर्ष के दौरान माल सूची स्टॉक पर व्यय

सकल निवेश में किसी घिसी-पिटी परिसंपत्तियों के स्थान पर नई परिसंपत्तियों को खरीदने के लिए किया गया व्यय भी शामिल होता है। स्थिर संपत्तियों का अनेक वर्षों तक बार-बार उपयोग किया जाता है। किंतु उनके उपयोग की एक निश्चित जीवन-अवधि होती है।  इनकी टूट-फूट अथवा अप्रचलन अथवा आकस्मिक हानि  होने पर इनके पुनः स्थापन की आवश्यकता पड़ती है। स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्यह्रास (Depreciation) के कारण उनका पुनः स्थापन सकल निवेश का एक भाग होता है। किंतु इसके कारण पूँजी के विद्यमान स्टॉक में कोई शुद्ध वृद्धि नहीं होती है। इससे केवल विद्यमान पूँजी स्टॉक बना रहता है।

अतः सकल निवेश में से किसी स्थिर संपत्तियों के पुनः स्थापन पर किए गए व्यय को घटा दिया जाए तो हमें शुद्ध निवेश ज्ञात हो जाता है। अन्य शब्दों में, सकल निवेश में से स्थिर संपत्तियों के मूल्य ह्रास को घटाने से शुद्ध निवेश प्राप्त हो जाता है।

शुद्ध निवेश = सकल निवेश – मूल्यह्रास (घिसी-पिटी परिसंपत्तियों के पुनः स्थापन पर किया गया व्यय)

सकल निवेश = शुद्ध निवेश + मूल्यह्रास

केवल शुद्ध निवेश के कारण ही पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि होती है। मूल्यह्रास से केवल घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन किया जाता है इससे पूँजी के विद्यमान स्टॉक को बनाए रखने में सहायता प्राप्त होती है।

शुद्ध निवेश का महत्व Significance of Net Investment

शुद्ध निवेश से अभिप्राय पूँजी के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि से है। इससे उत्पादकों की उत्पादन क्षमता बढ़ती है।  इससे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि होती है। तदनुसार उत्पादन का स्तर बढ़ता है। यह समृद्धि तथा विकास का सूचक होता है शुद्ध निवेश जितना अधिक होता है, उतनी ही अधिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि होती है। अतः हम कह सकते हैं कि भारत जैसे देशों में शुद्ध पूँजी निर्माण से श्रम की बेरोजगारी कम होती है। प्रति  श्रमिक उत्पादन में वृद्धि की प्रवृत्ति पाई जाती है। इससे विकास की गति तीव्र होती है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

मूल्यह्रास की धारणा Concept of Depreciation

जब स्थिर संपत्तियों जैसे प्लांट तथा मशीनरी का इस्तेमाल किया जाता है तो i) सामान्य टूट-फूट तथा ii) आकस्मिक हानि के कारण उनके मूल्य में कमी हो जाती है। उनका मूल्य तब भी एक घट जाता है जब प्रौद्योगिकी तथा माँग में परिवर्तन के कारण उनका अप्रचलन हो जाता है।

i) सामान्य टूट-फूट ii) आकस्मिक हानि की सामान्य दर तथा iii) प्रत्याशित अप्रचलन के कारण स्थिर  संपत्तियों के उपयोग से मूल्य में होने वाली हानि को मूल्यह्रास (Depreciation) कहा जाता है। मूल्यह्रास को स्थिर पूँजी का उपभोग (Consumption of Fixed Capital) भी कहा जाता है। इसका अर्थ उत्पादन की प्रक्रिया में स्थिर पूँजी के मूल्य का उपभोग या ह्रास है।

मूल्यह्रास के कारण, कुछ समय के पश्चात स्थिर परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन आवश्यक हो जाता है। स्थिर परिसंपत्तियों के पुनः स्थापन हेतू फंड या कोषों का प्रावधान करना आवश्यक हो जाता है। सामान्यतः इस कोष का अनुमान वार्षिक आधार पर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक मशीन की लागत ₹1000000 है और इसके उपयोग की प्रत्याशित जीवन अवधि 10 वर्ष है तो कोष का वार्षिक प्रावधान 1000000/10= ₹100000 होता है। इसे मूल्यह्रास आरक्षित कोष (Depreciation Reserve Fund) कहा जाता है।

प्रत्याशित अप्रचलन Expected Obsolescence

प्रत्याशित अप्रचलन की अवधारणा को समझना आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रत्याशित अथवा पूर्व ज्ञान अप्रचलन तथा अप्रत्याशित अथवा अनपेक्षित अप्रचलन में अंतर को समझा जाए।  प्रत्याशित अप्रचलन के दो घटक होते हैं-

i) प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का अप्रचलन हो जाता है, तब उनके मूल्य में हानि होती है। उदाहरण के लिए वर्तमान में एलईडी प्रौद्योगिकी की खोज के कारण रंगीन टीवी बनाने वाला प्लांट अप्रचलित हो जाता है।

ii) माँग में परिवर्तन के कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का प्रचलन हो जाता है, तब भी उनके मूल्य में हानि होती है। उदाहरण के लिए जब चमड़े के जूतों की मांग बढ़ने लग जाए तो रबड़ के जूते बनाने वाला प्लांट  अप्रचलित हो जाता है।

अप्रत्याशित अप्रचलन Unexpected Obsolescence

इसके दो कारण निम्न प्रकार से होते हैं’-

i) प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप बाढ़ तथा आग

ii) आर्थिक मंदी के कारण परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य में गिरावट

स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में हानि जो कि अप्रत्याशित प्रचलन के कारण होती है उसे पूँजीगत हानि (Capital Loss) कहा जाता है. यह हानि मूल्यह्रास अथवा मूल्यह्रास आरक्षित कोष का भाग नहीं होती है।

मूल्य ह्रास आरक्षित कोष का महत्व Significance of Depreciation Reserve Fund

मूल्यह्रास आरक्षित कोष का उद्देश्य उत्पादकों की घिसी-पिटी खिल परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन करना है।  यदि इस फंड की स्थापना न की जाए तो घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन नहीं हो सकता है। अन्य बातें समान रहने पर यदि किसी घिसी-पिटी परिसंपत्तियों का पुनः स्थापन नहीं किया जाता तो इसका अर्थ उत्पादकों के पूँजी स्टॉक में कमी होना है। जिसका आगे अर्थ है उनके उत्पादन क्षमता का घटना है। इससे उत्पादन का स्तर गिरता है। इसके साथ-साथ आय तथा रोजगार का स्तर भी गिरेगा। फलस्वरुप अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में पहुंच जाएगी और अर्थव्यवस्था निम्नस्तर संतुलन जाल (Low Level Equilibrium Trap) में फँस जाएगी। यह वह स्थिति होती है जब निम्न आय के कारण मांग घटती है और मांग घटने से उत्पादन घटता है तथा एक बार फिर आय घट जाती है। इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

3- स्टॉक तथा प्रवाह The Concept of Stock and flow

अर्थशास्त्र में पूँजी, आय, मुद्रा, बचत, निवेश, ब्याज आदि विस्तृत प्रयोग होने वाले शब्द हैं। इनमें से कुछ स्टॉक अवधारणा है. तथा अन्य प्रवाह अवधारणा होती हैं। अतः स्टॉक तथा प्रवाह में भेद करने के लिए इनके अर्थ को समझना आवश्यक है।

स्टॉक का अर्थ- Meaning of Stock

स्टॉक समय के एक निश्चित बिंदु पर मापे जाने वाले आर्थिक चर को कहते हैं।  उदाहरण के लिए 1 जनवरी 2022 को आपके बैंक खाते में ₹10000 हो सकते हैं तथा 10 जनवरी 2022 को आपके खाते में ₹25000 हो सकते हैं। इन सभी मात्राओं को स्टॉक कहा जाता है क्योंकि समय के एक विशेष बिंदु पर इन्हें मापा जाता है पूँजी तथा मुद्रा का (मात्रा) परिमाण स्टॉक के उदाहरण है। इसके अतिरिक्त संपत्ति, श्रम-बल, पूँजी,  एक देश में मुद्रा की पूर्ति, बैंक-जमा, टंकी में पानी इत्यादि स्टॉक अवधारणाएं हैं।

प्रवाह का अर्थ- Meaning of Flow

प्रवाह समय की एक निश्चित अवधि में मापे जाने वाले आर्थिक चर को कहते हैं। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति प्रति माह ₹25000 वेतन प्राप्त करता है तो यह एक प्रवाह धारणा है क्योंकि इसमें पूरे महीने का  वेतन शामिल होता है। इन्हें प्रवाह इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें प्रति इकाई समय अवधि में (अर्थात समय के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक) मापा जाता है। जैसे 1 घंटा, 1 दिन, 1 माह या 1 वर्ष इत्यादि। इसी  प्रकार आय, व्यय, उत्पादन, उपभोग, ब्याज, मुद्रा, पूँजी निर्माण, मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन, पूँजी पर ब्याज, छत की टंकी से पानी का रिसाव इत्यादि प्रवाह अवधारणाएं हैं।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

स्टॉक और प्रवाह में अंतर– Difference between Stock and Flow

स्टॉकप्रवाह
स्टॉक का संबंध समय के एक निश्चित बिंदु से होता है।  उदाहरण के लिए 1 जनवरी 2022 को आप की बचत राशि ₹10000 है।प्रवाह का संबंध समय की एक निश्चित अवधि से होता है। उदाहरण के लिए जनवरी 2022 में आपका वेतन ₹25000 है।
स्टॉक का समय काल नहीं होता।प्रवाह का समय काल होता है। जैसे प्रति घंटा, प्रतिमाह, प्रति वर्ष आदि।
स्टॉक प्रवाह को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए पूँजी का स्टॉक जितना अधिक होता है, उतना ही अधिक वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह होता है।प्रवाह स्टॉक को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए मुद्रा की पूर्ति में मासिक वृद्धि से मुद्रा की  मात्रा में वृद्धि होती है।
अर्थशास्त्र में कुछ अवधारणाओं का कोई स्टॉक पहलू नहीं होता जैसे आयात तथा निर्यात।आयात तथा निर्यात को केवल प्रवाह अवधारणाओं के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कुछ आर्थिक स्टॉक चरों का प्रवाह पहलू भी होता है। उदाहरण के लिए समय के एक निश्चित बिंदु पर पूँजी एक स्टॉक है किंतु पूँजी के स्टॉक में वृद्धि अर्थात 1 वर्ष के दौरान पूँजी निर्माण एक प्रवाह अवधारणा है।

(Class 12 Macro Economics Chapter 2-Banking-Some basic concepts of Macroeconomics notes in Hindi)

यदि उपरोक्त के संबंध में आपको कोई शंका या सुझाव है. तो कृपया हमें कमेन्ट कीजिए या runisir@gmail.com पर मेल कीजिए।   

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