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Class 12 Micro Economics Chapter 7-Law of Production-Returns to Scale

Law of Production-Returns to Scale

Class 12 Micro Economics Chapter 7-Law of Production-Returns to Scale
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Class XII Economics Notes in Hindi

Returns to Scale, economics online class
Returns to Scale

पैमाने के प्रतिफल

Returns to Scale

दीर्घकाल में उत्पादन के सभी कारक परिवर्तनशील होते हैं। कोई भी कारक स्थिर नहीं होता। दीर्घकाल में सभी कारकों को एक अनुपात में बढ़ाकर किसी वस्तु के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। यदि उत्पादन के सभी कारकों को एक ही अनुपात में बढ़ाया जाए तो प्रतिफल (Production) में जो परिवर्तन होगा, उसे उत्पादन के पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।
प्रोफेसर वाटसन के अनुसार, पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों में समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरुप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। यह एक दीर्घकालीन धारणा है।
पैमाने के प्रतिफल तीन प्रकार के हो सकते हैं-
1) पैमाने के बढ़ते प्रतिफल
2) पैमाने के समान प्रतिफल
3) पैमाने के घटते प्रतिफल
1) पैमाने के बढ़ते प्रतिफल

Increasing Returns to Scale

पैमाने के बढ़ते प्रतिफल उत्पादन की उस स्थिति को प्रकट करते हैं जिसमें यदि सभी कारकों का एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाए तो उत्पादन में उससे अधिक अनुपात में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए यदि उत्पादन के सभी कारकों जैसे श्रम, पूंजी आदि की मात्रा में 10% वृद्धि करने से उत्पादन में15% वृद्धि हो तो इसे पैमाने के बढ़ते  प्रतिफल कहा जाएगा।
Increasing Returns to Scale, economics online class
Increasing Returns to Scale 
रेखाचित्र में OQ वक्र पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को प्रकट कर रहा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उत्पादन के कारकों में 10% की वृद्धि करने से उत्पादन में 15% की वृद्धि हो रही है। इसी तरह कारकों में 15% की वृद्धि करने पर उत्पादन में 22.5% की वृद्धि हो रही है। अतः यह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की स्थिति है।
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के लागू होने के कारण-
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल के लागू होने का मुख्य कारण यह है कि जब उत्पादन के पैमाने को बढ़ाया जाता है तो फर्म को कई प्रकार किफायतें या बचतें प्राप्त होती हैं। पैमाने की किफायत या बचत से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें उत्पादन के पैमाने को बढ़ाने के फलस्वरुप प्रति इकाई लागत कम हो जाती है या प्रति इकाई उत्पादन बढ़ जाता है। पैमाने की किफायतें दो प्रकार की होती हैं-
a) पैमाने की आंतरिक किफायतें
b) पैमाने की बाहरी किफायतें
a) आंतरिक किफायतें या बचतें

Internal Economies/Savings

आंतरिक किफायत या बचत, वे किफायत हैं जिन्हें कोई फर्म अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप प्राप्त करती हैं। अर्थात आंतरिक किफायतें वे किफायतें हैं जो उद्योग की उस फर्म को ही प्राप्त होती हैं जो अपने पैमाने को बढ़ाकर उत्पादन के स्तर को बढ़ाने का प्रयत्न करती हैं। इन किफायतें को आंतरिक किफायतें इसलिए कहते हैं क्योंकि यह किफायती उद्योग की सिर्फ उन फर्मों को प्राप्त होती हैं जो उत्पादन के पैमाने में वृद्धि करती है। यह उस उद्योग की सभी फर्मों को प्राप्त नहीं होती।
यह किफायतें निम्न प्रकार की हो सकती है-
i) तकनीकी बचतें- जब फर्म अपने उत्पादन के पैमाने को बढ़ा लेती है तो उसके लिए आधुनिक मशीनों तथा उत्पादन की बढ़िया तकनीक का प्रयोग संभव हो जाता है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की लागत कम होती है।
ii) श्रम संबंधी के किफायतें- फर्म द्वारा श्रम-विभाजन करना संभव हो जाता है। इसके फलस्वरूप प्रमुख उत्पादन में वृद्धि होने कारण उत्पादन लागत कम होती है।
iii) प्रबंधकीय किफायतें- फर्म द्वारा कुशल तथा योग्य प्रबंधकों की नियुक्ति संभव हो जाती है। इसमें कुशलता में वृद्धि होने के कारण उत्पादन लागत कम हो जाती है।
iv)वित्तीय किफायतें- फर्म का आकार बढ़ जाने के कारण उसके साख में वृद्धि होती है। फर्म को ब्याज की कम दर पर उचित मात्रा में धन प्राप्त होने लगता है।
v) क्रय विक्रय संबंधी किफायतें- फर्म का आकार बढ़ जाने के कारण वह बड़ी मात्रा में कच्चा माल सस्ती कीमतों पर खरीद सकती है। फर्में अपने माल की बिक्री पर कम कमीशन पर कर पाती हैं।
vi) जोखिम संबंधी किफायतें- फर्म का आकार बढ़ जाने के कारण उसके जोखिम उठाने की क्षमता बढ़ जाती है। इसके फलस्वरूप अधिक लाभ प्राप्त करने वाले कार्य करने में समर्थ हो जाती है।
b) बाहरी किफायतें या बचतें

External Economies/Savings

बाहरी किफायत या बचत वे किफायत है जो किसी उद्योग या उद्योगों के समूह के उत्पादन में वृद्धि होने का कारण सभी फर्मों तथा उद्योगों को प्राप्त होती है। यह फर्मों को अपने आकार में वृद्धि करने कारण प्राप्त नहीं होती बल्कि ये किफायतें फर्म को उस स्थिति में प्राप्त होती है जब दूसरी फर्में अपना विस्तार करती हैं।
मुख्य बाहरी किफायतें निम्न हैं-
i) केंद्रीयकरण की किफायतें- केंद्रीयकरण से अभिप्राय एक ही स्थान पर एक ही प्रकार की कई फर्मों की स्थापना से है। केंद्रीयकरण के कारण फर्मों को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होने लगते हैं। जैसे यातायात तथा संचार के साधनों का विकास, प्रशिक्षित श्रमिकों, बैंकों, सहायक उद्यमों आदि की उपलब्धि। इसके फलस्वरूप सभी फर्मों के उत्पादन की लागत में कमी आती है।
ii) सूचना संबंधी किफायतें- जब किसी उद्योग की कई फर्में एक ही नगर में स्थापित हो जाती है तब तकनीकी पत्रिकाएं आदि वहाँ से प्रकाशित होने लगती है। जिनसे उस उद्योग से संबंधित नए-नए अविष्कार तथा अन्य सूचनाएं जैसे विभिन्न मंडियों में भाव, नए बाजारों की स्थापना आदि पर बहुत कम खर्च पर सभी फर्मों को प्राप्त हो जाती है।
iii) विकेंद्रीयकरण की किफायतें- किसी उद्योग का विकास हो जाने पर उसके कार्यों को कई छोटेछोटे भागों में बांटा जा सकता है। उदाहरण के लिए ऊन की रंगाई और बुनाई आदि का काम अलगअलग फर्मों द्वारा किया जाता है। अर्थात एक ही कारखाना रंगाई का भी और बुनाई का भी काम नहीं करता। इससे उत्पादन की लागत घटती है क्योंकि एक कारखाना केवल एक ही कार्य में दक्ष होता है। इससे उद्योग में लगी सभी प्रमुख को लाभ पहुंचता है।
यहां यह ध्यान रखने योग्य बात है कि पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की व्याख्या करने के लिए बाहरी किफायतें का विशेष महत्व नहीं होता। इसमें केवल आंतरिक किफायतें/बचतों का अध्ययन किया जाता है।
2) पैमाने के समान प्रतिफल

Constant returns to Scale

पैमाने के समान प्रतिफल उत्पादन के उस स्थिति को प्रकट करते हैं जिसमें उत्पादन के सभी कारकों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है, उत्पादन में उसी अनुपात में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए यदि श्रम और पूंजी की मात्रा में 10% वृद्धि करने के फलस्वरूप उत्पादन में भी 10% की वृद्धि होती है तो इसे पैमाने के समान प्रतिफल कहा जाएगा।
 
Constant Returns to Scale, economics online class
Constant Returns to Scale

रेखाचित्र में OQ वक्र समान प्रतिफल को प्रकट कर रहा है। रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि सभी कारकों में 10% की वृद्धि करने से उत्पादन में 10% की वृद्धि, 20% वृद्धि करने पर उत्पादन में भी 20% की वृद्धि हो रही है। इससे स्पष्ट होता है कि कारकों में जितने प्रतिशत की वृद्धि की जाती है, उत्पादन में भी उतने ही प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। पैमाने के समान प्रतिफल की दशा में OQ वक्र 45 डिग्री का कोण बनाता है।


पैमाने के समान प्रतिफल लागू होने के कारण
पैमाने की किफायतें अनंत काल तक प्राप्त नहीं होती। जैसे-जैसे उत्पादन के पैमाने को बढ़ाया जाता है, एक अवस्था ऐसी आ जाती हैं। जब पैमाने की किफायतें तथा पैमाने की हानियां एकदूसरे के बराबर हो जाती हैं। इसके फलस्वरूप पैमाने के समान प्रतिफल प्राप्त होने लगते हैं। अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पादन के पैमाने का विस्तार होने के साथ-साथ तकनीकी किफायतें फर्म को मिलती रहती हैं परंतु फर्म का आकार जाने के कारण प्रबंधकीय बाधाएं इत्यादि भी बढ़ जाती है जिनके फलस्वरूप पैमाने की हानियां आरंभ हो जाती हैं। इन दोनों के एक दूसरे को संतुलित करने के कारण पैमाने के समान प्रतिफल का नियम लागू हो जाता है।
3) पैमाने के घटते या ह्रासमान प्रतिफल

Diminishing Returns to Scale

पैमाने के घटते प्रतिफल उत्पादन की स्थिति को प्रकट करते हैं जिसमें उत्पादन के सभी कारकों को जिस अनुपात में बढ़ाया जाता है, उत्पादन में उससे कम अनुपात में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए यदि उत्पादन के सभी कारकों को 15% बढ़ाया जाए और उत्पादन में केवल 10% की वृद्धि हो तो इसे पैमाने के घटते प्रतिफल की स्थिति कहा जाएगा।
Diminishing Returns to Scale, economics online class
Diminishing Returns to Scale
रेखाचित्र में OQ वक्र पैमाने के घटते प्रतिफल को प्रकट कर रही है। रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि यदि उत्पादन के कारकों को 15% बढ़ाया गया है तो उत्पादन में केवल 10% की वृद्धि हो रही है। इसी तरह कारको को 25% बढ़ाने पर उत्पादन में केवल 17% की वृद्धि हो रही है। इससे प्रकट होता है कि पैमाने के प्रतिफल कम हो रहे हैं।
पैमाने के घटते प्रतिफल के लागू होने के कारण
पैमाने के घटते प्रतिफल अवश्य लागू होते हैं। उत्पादन का पैमाना जैसे-जैसे बढ़ता जाता है। पैमाने की हानियां पैमाने की किफायतों के प्रभाव को खत्म कर देती हैं। इसलिए परंपरावादी अर्थशास्त्रियों का यह मत था कि उत्पादन का पैमाना एक सीमा से अधिक बढ़ाने पर किफायतों के स्थान पर हानियां होने लगती हैं। इसके फलस्वरूप पैमाने के प्रतिफल घटने लगते हैं। परंतु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार कुछ योग्य उद्यमी प्रबंधकीय हानियों को तकनीकी किफायतों अधिक नहीं होने देते। इस प्रकार वे पैमाने के घटते प्रतिफल की स्थिति से बचे रहते हैं तथा पैमाने केसमान प्रतिफल प्राप्त करते रहते हैं।
पैमाने की हानियां
पैमाने की हानियों से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें उत्पादन का पैमाना पढ़ने से औसत लागत बढ़ती है। यह हानियां दो प्रकार की हो सकती हैं
a) आंतरिक हानियाँ-ये हानियाँ किसी विशेष फर्म द्वारा एक सीमा के बाद अपना उत्पादन बढ़ाने के कारण उत्पन्न होती हैं। जब एक फर्म का आकार बढ़ता है तो प्रबंध, प्रशासन तथा समन्वय से संबंधित कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। इसके फलस्वरूप प्रति इकाई लागत बढ़ जाती है।
b) बाहरी हानियाँ-यह हानियाँ एक उद्योग द्वारा अपने उत्पादन को बढ़ाने के कारण उत्पन्न होती हैं। इन हानियों को उद्योग की सभी फर्मों को उठाना पड़ता है। यह हानियाँ ट्रैफिक जाम, दूषित पर्यावरण, माँग बढ़ने से कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि आदि के कारण उत्पन्न होती है।
विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कारक के प्रतिफल का अध्ययन अल्पकाल में तथा पैमाने के प्रतिफल का अध्ययन दीर्घकाल में किया जाता है।

इस विषय से सम्बन्धित और जानकारी के लिए निम्न विडियो देखे-

 

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