Skip to content
Friday, May 9, 2025
  • Home
  • Privacy Policy
  • Contact us
  • Sitemap
  • youtube
  • twitter
  • telegram
  • Up-grades initiative
  • Haryana Board Exam Material 2023-24
  • CBSE Project file Decoration Ideas 2023-24
  • Haryana Board Result 2023
  • BSEH Class 12 Economics Most Important Questions Haryana Board

Economics Online Class

All in one website for Economics Notes and videos

  • Syllabus
  • 11th Economics Notes
    • Statistics Notes in Hindi
  • 12th Economics Notes
    • Micro Economics Notes in Hindi
    • Macro Economics Notes inHindi
  • Online Tests
    • Class 12 Micro Economics Online Tests
    • Class 12 Macro Economics Online tests
    • Class 11 Economics Online Tests
  • Live Class
  • Edusat Videos
    • Class 12 Economics all EduSat Videos
    • Class 11 Economics all Edusat videos
  • Exam Corner
    • SAT Exam Practice Set
  • News
X
You are here
Home > 12thEconomicsNotes >

What is Macro Economics

  • 12thEconomicsNotes
  • Macro Economics
  • study material
by Eco_Admin - 03/11/202103/11/20210

Class 12 Economics Notes in Hindi : Chapter-1 What is Macro Economics?

कक्षा 12 अर्थशास्त्र अध्याय 1–समष्टि अर्थशास्त्र क्या है ?

What is Macro Economics?

समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ (Meaning of MacroEconomics)

सन 1933 में सबसे पहले ओस्लो विश्वविद्यालय (नार्वे) के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रेगनर फ्रिश (Ragnar Frisch) ने अर्थशास्त्र के अध्ययन को दो भागों में बांटा था-

Ragnar Frisch
रेगनर फ्रिश (source: Wikipedia)

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)

इसमें व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्याओं जैसे एक उपभोक्ता की समस्या अथवा एक फर्म की कीमत निर्धारण समस्या का अध्ययन किया जाता है। इसे कीमत सिद्धांत भी कहा जाता है।  

2. समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)

विश्व में सामूहिक स्तर पर आर्थिक समस्याओं जैसे सारी अर्थव्यवस्था के कुल उपभोग, कुल, रोजगार राष्ट्रीय आय आदि का अध्ययन किया जाता है। इसे आय तथा रोजगार सिद्धांत भी कहा जाता है।

परंपरावादी क्लासिकी अर्थशास्त्रियों जैसे एडम स्मिथ, माल्थस तथा रिकार्डो ने आर्थिक समस्याओं का अध्ययन सामूहिक दृष्टि से करने का प्रयत्न किया था। इस कारण से ये  अर्थशास्त्री समष्टि अर्थशास्त्र के प्रेरक थे। परंतु नव-परंपरावादी क्लासिकी अर्थशास्त्रियों जैसे मार्शल, पीगू आदि ने व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन को अधिक महत्व दिया था।

सन 1930 की महामंदी से पहले अधिकतर अर्थशास्त्री व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन को ही महत्व देते रहे। परंतु सन 1936 में जे. एम. केन्ज (J.M. Keynes) की पुस्तक ‘The general theory of Employment, Interest and Money) के प्रकाशन के बाद अर्थशास्त्रियों में समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का महत्व बढ़ गया।

आधुनिक काल में कई अर्थशास्त्रियों जैसे हिक्स, हैन्सन, गार्डनर आदि ने समष्टि अर्थशास्त्र के विकास में बहुत सहयोग दिया। अंग्रेजी भाषा का Macro शब्द ग्रीन भाषा के Makros से लिया गया है जिसका अर्थ है बड़ा।  समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं का सारी अर्थशास्त्र सारी अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है।

संक्षेप में समष्टि अर्थशास्त्र को अर्थशास्त्र की उस शाखा के रूप में परिभाषित किया जाता है जो कि समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक प्रश्नों या आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करती है। जैसे बेरोजगारी की समस्या, मुद्रास्फीति की समस्या, मंदी की समस्या इत्यादि।  यह समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थक चरों पर प्रकाश डालती है। जैसे सकल मांग, सकल पूर्ति, सामान्य कीमत स्तर, राष्ट्रीय आय इत्यादि।  ये सभी चर समष्टि आर्थिक चर  (Macro Economics Variables) कहलाते हैं।

परिभाषा

शेपीरो के अनुसार, “समष्टि अर्थशास्त्र सारी अर्थव्यवस्था के कार्यकरण से संबंधित है।”

एम. एच. स्पेंसर के अनुसार, “समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध समस्त अर्थव्यवस्था अथवा उसके बड़े-बड़े हिस्सों से है। इसके अंतर्गत ऐसी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जैसे बेरोजगारी का स्तर, मुद्रास्फीति की दर, राष्ट्र का कुल उत्पादन आदि, जिनका संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए महत्व होता है।”

*********************************

समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र Scope of Micro Economics

समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में निम्न विषयों का अध्ययन किया जाता है

  1. राष्ट्रीय आय का सिद्धांत

समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय की धारणा, उसके विभिन्न तत्वों, माप की विधियों तथा सामाजिक लेखांकनों का अध्ययन किया जाता है।

2. रोजगार का सिद्धांत

समष्टि अर्थशास्त्र में रोजगार तथा बेरोजगारी की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें रोजगार निर्धारण के विभिन्न तत्वों जैसे प्रभावपूर्ण मांग, कुल पूर्ति, कुल उपभोग, कुल निवेश, कुल बचत, गुणक आदि का अध्ययन किया जाता है।

3. मुद्रा का सिद्धांत

रोजगार के स्तर पर मुद्रा की मांग तथा पूर्ति में होने वाले परिवर्तनों का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतएव समष्टि अर्थशास्त्र में मुद्रा के कार्यों तथा उससे संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है। बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

4. सामान्य कीमत स्तर का सिद्धांत

समष्टि अर्थशास्त्र में सामान्य कीमत स्तर के निर्धारण तथा उस में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में मुद्रास्फीति अर्थात कीमतों में होने वाली सामान्य वृद्धि तथा मुद्राविस्फीति अर्थात कीमतों में होने वाली सामान्य कमी से संबंधित समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।

5. आर्थिक विकास का सिद्धांत

समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक विकास अर्थात प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में होने वाली वृद्धि से संबंधित समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक विकास का अध्ययन किया जाता है। सरकार की राजस्व तथा मौद्रिक नीतियों का भी अध्ययन किया जाता है।

6. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धांत

समष्टि अर्थशास्त्र में विभिन्न देशों के बीच होने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार का भी अध्ययन किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सिद्धांत, टैरिफ, संरक्षण आदि समस्याओं के अध्ययन का समष्टि अर्थशास्त्र में बहुत महत्व है।

*********************************

समष्टि अर्थशास्त्र तथा व्यष्टि अर्थशास्त्र में अंतर Difference between Micro Economics and Macro Economics

व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित मुख्य अंतर पाए जाते हैं

  1. अध्ययन का क्षेत्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्ति, एक गृहस्थ, एक फर्म या एक उद्योग के स्तर पर दुर्लभता और चुनाव संबंधी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात यह अध्ययन करता है कि साधनों का उचित बंटवारा कैसे हो। जबकि समष्टि अर्थशास्त्र संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर दुर्लभता और चुनाव की समस्याओं का अध्ययन करता है अर्थात यह अध्ययन करता है कि साधनों को पूर्ण रोजगार कैसे प्राप्त हो।

विशेष नोट

यह कहना गलत है कि व्यष्टि अर्थशास्त्र में कोई सामूहिकता नहीं होती। उदाहरण के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र में बाजार माँग का अध्ययन किया जाता है जो कि बाजार में किसी एक वस्तु के सभी क्रेताओं की माँग का समूह होता है। इसके विपरीत समष्टि अर्थशास्त्र में समस्त अर्थव्यवस्था में माँग का अध्ययन सकल माँग के रूप में किया जाता है जो कि समस्त अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं की माँग का समूह होता है। इसलिए इन दोनों में केवल सामूहिकता की मात्रा में अंतर होता है।

उदाहरण के लिए

व्यष्टि अर्थशास्त्र निम्न समस्याओं का अध्ययन करता है-

-उपभोक्ता का व्यवहार एवं संतुलन

-उत्पादक का व्यवहार एवं संतुलन

इसके विपरीत समष्टि अर्थशास्त्र निम्न समस्याओं का अध्ययन करता है-

-अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी

-सामान्य कीमत स्तर में वृद्धि की समस्या (मुद्रास्फीति)

2) सामूहिकता की मात्रा

व्यष्टि अर्थशास्त्र में समष्टि अर्थशास्त्र की तुलना में आर्थिक चरों की सामूहिकता की  मात्रा सीमित होती है।

उदाहरण के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र में एक उद्योग के संतुलन का अध्ययन किया जाता है। उद्योग किसी विशेष वस्तुओं का उत्पादन करने वाली सभी फ़र्मों का समूह होता है।

समष्टि अर्थशास्त्र में समस्त अर्थव्यवस्था के संतुलन का अध्ययन किया जाता है।  समस्त अर्थव्यवस्था में सभी फ़र्में एवं उद्योग शामिल होते हैं।

3- विभिन्न मान्यताएं

व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की मान्यताएं अलग-अलग होती है। कुछ चर व्यष्टि अर्थशास्त्र में स्थिर माने जाते हैं जबकि समष्टि अर्थशास्त्र में उन्हें परिवर्तनशील माना जाता है। इसके विपरीत कुछ चर जो समष्टि अर्थशास्त्र में स्थिर माने जाते हैं उन्हें व्यष्टि अर्थशास्त्र में परिवर्तनशील माना जाता है।

उदाहरण के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र में यह मान लिया जाता है कि कुल उत्पादन तथा रोजगार स्थिर है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र शास्त्र में इन्हें परिवर्तनशील माना जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र की यह मान्यता है कि उत्पादन एवं आय का वितरण स्थिर है जबकि व्यष्टि अर्थशास्त्र में इसे परिवर्तनशील माना जाता है।

4- केंद्रीय समस्या

व्यष्टि अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या कीमत निर्धारण है। इसके विपरीत समष्टि अर्थशास्त्र की  मुख्य समस्या उत्पादन एवं रोजगार निर्धारण है।

5- व्यष्टि-समष्टि विरोधाभास

व्यष्टि तौर पर जो तथ्य तर्कपूर्ण एवं ठीक होते हैं, वे समष्टि स्तर पर तर्कपूर्ण एवं ठीक नहीं होते। उदाहरण के लिए

  • यदि एक व्यक्ति बचत करता है तो इसके फलस्वरूप भविष्य में उसकी समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • यदि किसी अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्तियों बचत करेंगे अर्थात कम व्यय करेंगे तो वस्तुओं व सेवाओं की मांग कम हो जाएगी। इसके फलस्वरूप निवेश कम हो जाएगा तथा उत्पादन और रोजगार का स्तर भी कम हो जाएगा। अर्थव्यवस्था भविष्य में समृद्ध होने के स्थान पर निर्धन हो जाएगी।

6- सरकारी हस्तक्षेप

व्यष्टि अर्थशास्त्र में सरकारी हस्तक्षेप एवं सार्वजनिक संस्थाओं का हस्तक्षेप कम होता है। इसके विपरीत समष्टि अर्थशास्त्र में सरकारी हस्तक्षेप तथा सार्वजनिक संस्थाओं का हस्तक्षेप अधिक होता है।

उदाहरण के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र में सरकार निम्न हस्तक्षेप नहीं करती-

  • उपभोक्ता की आर्थिक क्रियाएं
  • पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत निर्धारण

समष्टि अर्थशास्त्र में सरकार निम्न हस्तक्षेप करती हैं-

  • उपभोक्ताओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, जलापूर्ति आदि की व्यवस्था
  • सभी उत्पादकों के लिए सड़क, बिजली, सुरक्षा आदि की व्यवस्था

व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर को निम्न तालिका से समझा सकते हैं–

अंतर का आधारव्यष्टि अर्थशास्त्रसमष्टि अर्थशास्त्र
अध्ययन का क्षेत्रव्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक संबंधों की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जैसे एक उपभोक्ता, एक फर्म  तथा एक परिवारसमष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक संबंधों अथवा  आर्थिक समस्याओं एवं मुद्दों का अध्ययन किया जाता है
सामूहिकता की  मात्राव्यष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्तिगत फर्म अथवा उद्योग में उत्पादन तथा कीमत के निर्धारण से संबंधित है।समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध संपूर्ण अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन तथा सामान्य कीमत स्तर के निर्धारण से है
विभिन्न मान्यताएंव्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन में यह धारणा है कि समष्टि चर स्थिर  रहते हैं।समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन की यह धारणा होती है कि व्यष्टि चर  स्थिर रहते हैं।
केंद्रीय समस्याव्यष्टि अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या कीमत निर्धारण है।समस्ती अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या उत्पादन एवं रोजगार निर्धारण है।
व्यष्टि समष्टि विरोधाभासव्यष्टि स्तर पर जो तथ्य  तर्कपूर्ण एवं ठीक होते हैं, वह आवश्यक नहीं है कि समष्टि स्तर पर भी ठीक हों।समष्टि अर्थशास्त्र में समष्टि स्तर पर जो तथ्य तर्कपूर्ण एवं ठीक होते हैं वह व्यष्टि स्तर पर तर्कपूर्ण एवं ठीक नहीं होते।
सरकारी हस्तक्षेपव्यष्टि अर्थशास्त्र में सरकारी हस्तक्षेप मूल विषय नहीं है।समष्टि अर्थशास्त्र में सरकारी हस्तक्षेप मूल विषय है।

*********************************

व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता

व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र अध्ययन के दो स्वतंत्र क्षेत्र नहीं है वरन वे परस्पर निर्भर क्षेत्र हैं।

व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भर है–

व्यष्टि अर्थशास्त्र, समष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भर है क्योंकि संपूर्ण अर्थव्यवस्था विभिन्न व्यक्तिगत इकाईयों का जोड़ है, इसलिए समस्त अर्थव्यवस्था के कार्यों को समझने के लिए व्यक्तिगत आर्थिक नीतियों के व्यवहार को समझना आवश्यक है।

उदाहरण के लिए एक विशेष उद्योग में ब्याज की दर समस्त अर्थव्यवस्था में प्रचलित ब्याज की दर द्वारा प्रभावित होती है। इसी प्रकार एक उद्योग में निवेश समस्त अर्थव्यवस्था में निवेश और आय के स्तर पर निर्भर करता है।

समष्टि अर्थशास्त्र व्यष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भर करता है–

निम्न उदाहरणों से ज्ञात होता है कि समष्टि अर्थशास्त्रकिस प्रकार से व्यष्टि अर्थशास्त्र के चारों पर निर्भर करते हैं-

  • अर्थव्यवस्था में सकल माँग व्यष्टि स्तर पर की गई कुल मांग का जोड़ है। अन्य शब्दों में यह अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं सेवाओं की कुल मांग का जोड़ है-

                    AD=∑di

(AD=सकल माँग, d=माँग, i=विभिन्न वस्तुयें और सेवायें)

  • राष्ट्रीय आय व्यष्टि स्तर पर साधन आय का जोड़ है अथवा यह किसी देश के सभी सामान्य निवासियों की साधन आय का जोड़ है-

NY=∑Yn

(NY=राष्ट्रीय आय, Y=आय, n=देश के समान्य निवासी)

*********************************

समष्टि अर्थशास्त्र के चार प्रमुख क्षेत्र-(Components of Macro Economics)

1- उत्पादक क्षेत्र Producer Sector

उत्पादक क्षेत्रों वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है। यह क्षेत्र गृहस्थ या परिवार क्षेत्र से उत्पादन के कारकों (भूमि,श्रम,पूँजी और उद्यम) को खरीदता/भाड़े पर लेता है और वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है तथा गृहस्थ क्षेत्र को बेचता है।

2- गृहस्थ क्षेत्र (Household Sector)

गृहस्थ क्षेत्र वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करता है। यह क्षेत्र उत्पादन के कारकों का स्वामी होता है। यह क्षेत्र इन कारकों को उत्पादन क्षेत्र को प्रदान करके वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में अपना योगदान देता है तथा कारक सेवाओं के बदले में प्राप्त आय से वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है।

3- सरकारी क्षेत्र (Government Sector)

यह क्षेत्र कराधान एवं आर्थिक सहायता आदि से संबंधित कार्य करता है। सरकारी क्षेत्र गृहस्थ  क्षेत्र से प्रत्यक्ष कर और उत्पादक क्षेत्र से अप्रत्यक्ष कर तथा निगम कर के रूप में आय  प्राप्त करता है। यह क्षेत्र गृहस्थ क्षेत्र को वृद्धावस्था पेंशन, वजीफे आदि के रूप में तथा उत्पादक क्षेत्र को आर्थिक सहायता देता है।

4- शेष विश्व क्षेत्र (Rest Of the World Sector)

यह क्षेत्र निर्यात और आयात करता है। एक देश द्वारा दूसरे देश को वस्तुएं तथा सेवाएं बेचना निर्यात कहलाता है जबकि आयात में एक देश द्वारा दूसरे देश से वस्तुएं खरीदी जाती है।

*********************************

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय उस अर्थव्यवस्था से है जिसमें आर्थिक क्रियाओं को बाजार शक्तियों की स्वतंत्र अन्तर्क्रिया पर छोड़ दिया जाता हैं। उत्पादक उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए स्वतंत्र होता है जिनकी माँग अधिकतम होती है, ताकि वे अपना लाभ अधिकतम कर सकें। इसी तरह उपभोक्ता भी अपनी रुचि और पसंद के अनुरूप वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने में स्वतंत्र होता है, ताकि वे अपनी संतुष्टि को अधिकतम कर सके। क्या और कितना उत्पादन करना है तथा क्या और कितना उपभोग करना है इस संबंध में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।

पूँजीवाद के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

1- निजी संपत्ति (Private Property)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में लोगों को निजी संपत्ति रखने तथा उसे इच्छानुसार प्रयोग करने का पूर्ण अधिकार होता है। उत्पादन के सभी साधनों जैसे मशीनें, औजार, भूमि, खान आदि निजी स्वामित्व के अधीन होते हैं। पूँजीपतियों को किसी भी सीमा तक पूँजी रखने तथा उसे बढ़ाने की स्वतंत्रता होती है। उन्हें किसी भी प्रकार की संपत्ति खरीदने तथा बेचने की स्वतंत्रता होती है। पूँजीवाद के अंतर्गत कुछ संपत्ति ऐसी होती है जिन पर सरकार अथवा सारे समाज का अधिकार होता है जैसे सड़कें, रेलवे, पार्क, विश्वविद्यालय, अस्पताल, पुस्तकालय आदि।

2- कीमत संयंत्र (Price Mechanism)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में कीमत का निर्धारण कीमत संयंत्र द्वारा किया जाता है। कीमत संयंत्र से अभिप्राय यह है कि कीमत बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा तय होती है। कीमत संयंत्र द्वारा उत्पादकों को यह निर्णय लेने में सहायता मिलती है कि उन्हें किन-किन वस्तुओं और सेवाओं का कितनी-कितनी मात्रा में किस-किस समय और कहां-कहां उत्पादन किया जाए। कीमत संयंत्र द्वारा ही अर्थव्यवस्था में मांग और पूर्ति के संचालन एवं समन्वय लाया जाता है। समस्त आर्थिक क्रियायेँ-उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण, निवेश तथा बचत कीमत संयंत्र के निर्देश पर चलती हैं।

3- उद्यम की स्वतंत्रता (Freedom of Enterprise)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होती है कि वह अपने उत्पादन के साधनों को इच्छानुसार जिस काम धंधे में चाहे लगा सकता है, जहां वह चाहे, जिस प्रकार और आकार का उद्योग चालू कर सकता है। संक्षेप में कहें तो क्या उत्पादन करना है, कहां उत्पादन करना है, कितना उत्पादन करना है, के संबंध में उद्यमी स्वतंत्रतापूर्वक निर्णय ले सकता है। उद्यमी अपनी योग्यता, कार्यक्षमता, शिक्षा, साधन और अभ्यास के अनुसार जो व्यापार व रोजगार चाहे सुन सकता है।

4- प्रतियोगिता तथा सहयोग (Competition and Co-operation)

अर्थव्यवस्था में उद्यम की स्वतंत्रता होने के कारण प्राय: प्रत्येक वस्तु के उत्पादकों की बहुत अधिक संख्या होती है। इनमें उन वस्तुओं को बेचने के लिए प्रतियोगिता होती रहती है।  क्रेताओं में भी किसी वस्तु को खरीदने और मजदूरों में भी किसी नौकरी को प्राप्त करने में प्रतिस्पर्धा रहती है। ये श्रमिक ही एक दूसरे से मिलकर तथा मशीनों के सहयोग से काम करते हैं। इस प्रकार प्रतियोगिता और सहयोग दोनों साथ साथ चलते हैं।

5- लाभ प्रेरणा (Profit Motive)

इस अर्थव्यवस्था में लाभ कमाने की इच्छा ही किसी आर्थिक क्रिया करने की सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रेरणा है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में कोई भी कार्य लाभ के बिना नहीं किया जाता।  सभी उद्यमी ऐसे उद्योग-धंधा चलाते हैं जिनमें अधिकतम लाभ मिलने की आशा हो। अतः पूँजीवाद में उत्पादन मुख्य रूप से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

6- उपभोक्ता की प्रभुसत्ता (Sovereignty of the Consumer)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता की प्रभुसत्ता का विशेष स्थान होता है। सारा उत्पादक ढांचा उपभोक्ताओं की इच्छाओं और मांग पर आधारित रहता है। अतः उद्यमी केवल उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन करेंगे जिनकी उपभोक्ता मांग करते हैं अर्थात जिनके लिए उपभोक्ता अधिक कीमत देने के लिए तैयार होते हैं।

7- श्रमिक का वस्तु के रूप में प्रयोग (Labour as a Commodity)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में अन्य वस्तुओं की भाँति श्रम का भी बाजार होता है। यहां पर श्रम  खरीदा और बेचा जाता है। इसका मूल कारण यह होता है कि उत्पादन के साधनों से वंचित जनसंख्या अपने श्रम शक्ति का स्वयं प्रयोग करने में असहाय होती है। इसलिए जीवन-निर्वाह के लिए उसे अपना श्रम बेचना पड़ता है।  

8- सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता (No Government Interference)

पूँजीवाद में सरकार आर्थिक क्रियाओं में कोई हस्तक्षेप नहीं करती। उत्पादक तथा उपभोक्ता अपने अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र होते हैं। सरकार का कार्य देश में कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा बाहरी आक्रमण से देश की रक्षा करना होता है।

9- स्वहित (Self-Interest)

पूँजीवाद की मुख्य प्रेरक शक्ति स्वहित की संतुष्टि है।  स्वहित से अभिप्राय उस इच्छा से हैं जिसके फलस्वरूप श्रमिक तथा व्यापारी अधिक मौद्रिक आय प्राप्त करना चाहते हैं तथा उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है। इस समाज के सभी सदस्यों को विवेकशील माना जाता है।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं (Merits of Capitalist Economy)

1- वस्तुओं और सेवाओं में विविधता (Diversity in Goods and Services)

इस अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा गुण यह है कि उपभोक्ताओं की रूचि के अनुसार यहां विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है।

2- साधनों का उचित उपयोग (Proper use of Resources)

पूँजीवाद में उत्पादन केवल लाभ के दृष्टिकोण से किया जाता है। इसलिए इस अर्थव्यवस्था में साधनों का कुशलतम प्रयोग किया जाता है तथा अपव्यय नहीं होने दिया जाता।

3- काम की प्रेरणा (Inspiration of Work)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को काम करने की बहुत अधिक प्रेरणा प्राप्त होती है। निजी संपत्ति के स्वामित्व तथा उत्तराधिकार के नियमों के कारण लोगों में अधिक आय  प्राप्त करने तथा संचय करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसके फलस्वरूप इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय में काफी वृद्धि होती है।

4- जीवन स्तर में वृद्धि (Rise in Living Standard)

वस्तु और पदार्थों में विविधता होने के कारण, कई वस्तुओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन काफी सस्ता होता है तथा उन्हें कम कीमत पर बेचा जाता है। इससे निर्धन जनता के जीवन स्तर में भी वृद्धि होती है।

5- लोचशीलता (Flexibility)

इस अर्थव्यवस्था का एक गुण यह भी है कि यह लोचशील होती है। यह समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को हर ढांचे में डाल लेती है।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं (Demerits of Capitalist Economy)

1- आय तथा धन का असमान वितरण (Unequal distribution of Income and Wealth)

इस अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा दोष धन और आय के वितरण में असमानता का होना है।  यह असमानता निजी संपत्ति, स्वतंत्र प्रतियोगिता, अत्यधिक लाभ की आकांक्षा आदि के कारण  उत्पन्न होती है। ये तत्व धनी को और धनी, निर्धन को और अधिक निर्धन बनाते जाते हैं।  

2- वर्ग संघर्ष (Class Conflicts)

आय और धन के असमान वितरण के फलस्वरूप इस अर्थव्यवस्था में समाज प्राय: दो वर्गों में बँट जाता है। एक ओर धनी वर्ग तथा पूँजीपति तो विलासिता पूर्ण जीवन बिताते हैं, दूसरी  ओर श्रमिक को भरपेट खाना भी उपलब्ध नहीं होता।

3- श्रमिकों का शोषण (Exploitation of Workers)

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में श्रमिकों का शोषण होता है।

4- अपव्ययपूर्ण प्रतियोगिता (Mis-Spending competition)

अपव्ययपूर्ण प्रतियोगिता इस अर्थव्यवस्था का मुख्य लक्षण है।

5- समन्वय की कमी (Lack of Coordination)

इस अर्थव्यवस्था में सहयोग और संगठन के अभाव के कारण उत्पादकों के कार्यों में किसी भी प्रकार का समन्वय नहीं होता है।

You may also like to visit  : Click here for Micro Economics notes

You may also like to Visit : Click here to join our live classes for English and Economics on Youtube

Share this:

  • Class 12 Macro Economics Notes in Hindi
  • BSEH Class 12 Economics handmade notes in Hindi PDF download
  • Class 12 Macro Economics Online test MCQ
Tagged class 12 Economics Notes macro economics
Eco_Admin
https://economicsonlineclass.com

Post navigation

Previous article
SAT exam practice set
Next article
Solution of Numerical of National Income and related aggregates

Leave a ReplyCancel reply

Important Links

Haryana Edu MIS
Intra Haryana
HRMS Haryana
E-Salary Haryana

Up-grades initiative

Posted on 03/02/202403/02/20240

Haryana Board Exam Material 2023-24

Posted on 02/01/202402/01/20240

CBSE Project file Decoration Ideas 2023-24

Posted on 21/12/202321/12/20230

Categories

  • 11thEconomicsNotes
  • 12thEconomicsNotes
  • announcements
  • BSEH result
  • Class 11
  • class 12
  • Class 12 Answer Key
  • Economics Notes
  • economics online test
  • Edusat
  • Exams
  • Haryana board (BSEH)
  • hbse
  • Macro Economics
  • Macro Economics notes in Hindi
  • macro economics online test
  • Micro Economics
  • Micro Economics notes in English medium
  • micro economics online test mcq
  • MicroEconomics
  • news
  • Online test
  • onlinetest
  • Project File
  • Sample Paper
  • sat exam
  • Solution of Exams
  • Statistics for Economics notes
  • study material
  • syllabus
  • Uncategorized
  • videos

Tags

answer key Class 11 Economics Notes class 12 class 12 Economics Notes class 12 micro economics notes in class 12 Sample paper economics notes economics notes in English economics notes pdf download Economics online test mcq edusat exam material exams Haryana Board sample paper hindi macro economics macro economics notes in Hindi macro economics online test micro economics micro economics notes in English medium micro economics notes in Hindi micro economics online test mcq numeric solutions online test onlinetest project file ideas sat exam solution of board papers solution of exams solution of numerical Statistics for economics study material syllabus
© 2025
Powered by WordPress | Theme: AccessPress Mag
  • Home
  • Privacy Policy
  • Contact us
  • Sitemap
Top
Exit mobile version
%%footer%%