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Class 11 Economics Chapter 4-Organisation of Data

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by Eco_Admin - 10/07/202131/07/20210

Class 11 Economics Chapter 4-Organisation of Data notes in Hindi

अध्याय 4- आकड़ों का व्यवस्थीकरण

Orgnanisation of Data

एक अनुसंधानकर्ता जब किसी समस्या से संबंधित आंकड़े एकत्रित करता है तो आरंभ में वह इस रूप में नहीं होते कि उनसे कोई निष्कर्ष निकाला जा सके। वह एक बहुत बड़े समूह के समान होते हैं जिसमें आवश्यक तथा अनावश्यक सभी प्रकार के आंकड़े सम्मिलित होते हैं। अतएव एकत्रित आंकड़ों से निष्कर्ष निकालने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उनका वह व्यवस्थितिकरण कर लिया जाए।

“आंकड़ों के व्यवस्थितिकरण से हमारा अभिप्राय उन सभी क्रियाओं से हैं जिनके द्वारा आंकड़ों को सरल व व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करके समझने योग्य बनाया जाता है।”

आंकड़ों के व्यवस्थितिकरण का एक महत्वपूर्ण उपाय उनकी विशेषताओं के आधार पर उन्हें विभिन्न वर्गों में बांटना है इस प्रक्रिया को आंकड़ों का वर्गीकरण (Classification of Data) कहा जाता है। इसमें शुद्ध आंकड़ों का रूपांतरण सांख्यिकिय श्रेणियों में इस प्रकार किया जाता है कि इससे कुछ अर्थपूर्ण परिणाम निकाले जा सके।

वर्गीकरण क्या है?

What is Classification?

आंकड़ों का लाभ उठाने व निष्कर्ष निकालने के लिए जरूरी है कि आंकड़ों को उनकी विशेषताओं के अनुसार विभिन्न भागों या वर्गों में बांटा जाए। आंकड़ों के इस प्रकार किए गए प्रत्येक विभाजन को वर्ग कहा जाता है तथा इस प्रक्रिया को जिसके द्वारा आंकड़ों को उनकी समानता अथवा असमानता के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है, वर्गीकरण कहलाता है। अन्य शब्दों में “वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समान तथा असमान आंकड़ों को विभिन्न वर्गों में कर्म के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है।”

कॉर्नर के अनुसार, “वर्गीकरण, आंकड़ों को (यथार्थ रूप में या भावात्मक रूप से) समानता तथा सादृश्यता के आधार पर वर्गों या विभागों में क्रमानुसार रखने की क्रिया है और इनसे व्यक्तिगत इकाइयों की भिन्नताओं में पाए जाने वाले गुणों की एकता को व्यक्त किया जाता है।”

Name of Chapter : Class 11 Economics Chapter 3-Organisation of Data notes in Hindi

वर्गीकरण के उद्देश्य

Objectives of Classification

वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. आंकड़ों को सरल व संक्षिप्त बनाना-

वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य आंकड़ों को सरल तथा संक्षिप्त रूप में प्रकट करना है।

2. उपयोगिता-

वर्गीकरण का उद्देश्य आंकड़ों की समरूपता को प्रकट करके उनकी उपयोगिता में वृद्धि करना है

3. विभेदकारी-

वर्गीकरण विभेद कार्य होता है अर्थात इसके द्वारा आंकड़ों के विशिष्ट अंतर स्पष्ट हो जाते हैं

4. तुलना योग्य बनाना-

इसका उद्देश्य आंकड़ों को तुलना में अनुमान के योग्य बनाना है

5. वैज्ञानिक आधार प्रदान करना-

वर्गीकरण का उद्देश्य आंकड़ों को व्यवस्थित रूप में वैज्ञानिक आधार प्रदान करना है इसके फल स्वरुप उनकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है।

6. आकर्षक और प्रभावशाली बनाना-

वर्गीकरण के सहायता से आंकड़े आकर्षक तथा प्रभावशाली बन जाते हैं।

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एक अच्छे वर्गीकरण की मुख्य विशेषताएं

Characteristics of a Good Classification

  1. व्यापकता (Comprehensiveness)

किसी समस्या से संबंधित आंकड़ों का वर्गीकरण इतना व्यापक होना चाहिए कि उस समस्या के संबंध में एकत्रित किए गए सभी आंकड़े किसी न किसी वर्ग में अवश्य आ जाए। कोई भी इकाई या सूचना वर्गीकरण से बाहर नहीं रहनी चाहिए।

2. स्पष्टता  (Clarity)

वर्गीकरण करते समय यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन सी इकाई किस वर्ग में रखी जाएगी। विभिन्न वर्ग भी इस प्रकार निर्धारित किए जाने चाहिए कि उनमें सरलता तथा स्पष्टता हो।

3. सजातीयता (Homogeneity)

प्रत्येक वर्ग के सभी इकाइयां समान गुणों वाली होनी चाहिए। उदाहरण के लिए शिक्षित वर्ग में वे इकाइयाँ  रखी जानी चाहिए जो शिक्षित हो।

4. अनुकूलता (Suitability)

वर्गों का निर्माण अनुसंधान के उद्देश्य के अनुकूल होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि हम आय तथा व्यय  से संबंधित सूचना प्राप्त करना चाहते हैं तो व्यक्तियों का वजन के अनुसार वर्गीकरण करना गलत होगा।

5. स्थिरता (Stability)

एक प्रकार की अनुसंधान के वर्गीकरण का आधार एक जैसा होना चाहिए। प्रत्येक जाँच/अनुसंधान के साथ आधार नहीं बदलना चाहिए।

6. लोचदार (Elastic)

एक अच्छा वर्गीकरण लोचदार होना चाहिए। उसमें उद्देश्य की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न वर्गों में परिवर्तन करने की संभावना होनी चाहिए।

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वर्गीकरण का आधार

Basis of Classification (Organisation of Data)

संख्यात्मक आंकड़े या संख्यिकीय सूचना के वर्गीकरण के विभिन्न आधार निम्नलिखित है-

  1. भौगोलिक (Geographical)
  2. समयानुसार (Chronological)
  3. गुणात्मक (Qualitive)
    1. साधारण (simple)
    1. बहुगुण (Manifold)
  4. मात्रात्मक या संख्यात्मक (Quantitative or Numerical)
  1. भौगोलिक वर्गीकरण (Geographical or Spatial Classification)

इस प्रकार के वर्गीकरण में आंकड़ों को स्थिति या भौगोलिक भिन्नता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। उदाहरण के लिए विभिन्न राज्य में राज्यों में फसलों का उत्पादन।

2. समयानुसार वर्गीकरण (Chronological Classification)

जब आंकड़ों का वर्गीकरण समय के आधार पर किया जाता है तो इसे समयानुसार वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरण के लिए पिछले 5 वर्षों में भारत में चीनी का उत्पादन।

3. गुणात्मक वर्गीकरण (Qualitative Classification)

जब तथ्यों या आँकड़ों का विशेषताओं या गुणों के आधार पर जैसे धर्म, व्यवसाय, जनसंख्या के बौद्धिक स्तर आदि के अनुसार वर्गीकरण किया जाता है तो इसे गुणात्मक वर्गीकरण कहा जाता है। इस प्रकार का वर्गीकरण दो प्रकार का होता है-

             A) साधारण वर्गीकरण- इसे द्वन्द्वभाजन वर्गीकरण भी कहते हैं। क्योंकि इसमें आँकड़ों को किसी विशेष गुण के होने या न होने के आधार पर बाँटा जाता है। जैसे स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित आदि।

             B)  बहुगुणी वर्गीकरण- इस प्रकार के वर्गीकरण में एक से अधिक गुणों के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है। इसके फलस्वरूप दो से अधिक वर्ग बनते हैं। उदाहरण के मजदूरों पहले को स्त्री-पुरुष में वर्गीकरण करने के बाद उनका पुनः शिक्षित-अशिक्षित के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

4. मात्रात्मक या संख्यात्मक (Quantitative or Numerical Classification)

इस प्रकार के वर्गीकरण में तथ्यों को संख्यात्मक रूप से वर्गों या समूह में वर्गीकृत किया जाता है। अन्य शब्दों में प्रत्येक वर्ग के आंकड़े मात्रात्मक अभिव्यक्ति में समर्थ होते हैं अथवा संख्यात्मक अंकों के रूप में व्यक्त किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए भार को किलोग्राम में और लंबाई को सेंटीमीटर में व्यक्त किया जा सकता है। वर्गीकरण के अंतर्गत तथ्यों के संख्या संबंधी लक्षणों के आधार पर वर्ग बनाए जाते हैं। सबसे छोटी तथा सबसे बड़ी संख्याओं को ध्यान में रखते हुए सभी आंकड़ों को विभिन्न वर्गों में बांट लिया जाता है।

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चर की अवधारणा

Concept of Variable

किसी तथ्य की वह विशेषता या प्रक्रिया जिसे संख्याओं के रूप में मापा जा सकता है, चर कहलाती है। चर से अभिप्राय उस मात्रा से है जिसमें परिवर्तन होते रहते हैं तथा जिन्हें किसी इकाई द्वारा मापा जा सकता है।

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि हम 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों का वजन मापते हैं तो विद्यार्थियों का वजन चर  कहलाएगा क्योंकि हर एक विद्यार्थी का वजन भिन्न-भिन्न होगा।

चर दो प्रकार के होते हैं-

  • विविक्त या खंडित चर
  • सतत या अखंडित चर

1- विविक्त या खंडित चर

Discrete Variable

विविक्त चर वे चर हैं जिनके मूल्य एकाएक या पूर्णांकों के रूप में बढ़ जाते हैं अर्थात जो एक निश्चित मात्रा में होते हैं तथा भिन्नात्माक नहीं होते। इसके एक मूल्य से दूसरे मूल्य में कुछ अंतर होता है, इसलिए इन्हें विविक्त कहा जाता है।

उदाहरण के लिए कक्षा ग्यारहवीं में विद्यार्थियों की संख्या 1,5,18,25 हो सकती है। परंतु यह कभी भी 1.25, 5.70, 20.78 भिन्न के रूप में नहीं हो सकती।

अन्य शब्दों में, विविक्त चर पूरे अंक के रूप में बढ़ते हैं जैसे 1 से 2 या 2 से 3 यह कभी भी 1.2, 3.5 निरंतर नहीं बढ़ते, यह एकाएक बढ़ जाते हैं।

2- सतत या अखंडित चर

Continuous Variable

सतत चर वे चर है जो निरंतर बढ़ते हैं या भिन्नात्मक (दशमलव में) होते हैं। इनका निश्चित सीमाओं के अंतर्गत कोई भी मूल्य हो सकता है।  इनके मूल्य से दूसरे मूल्य के बीच कोई निश्चित अंतर नहीं होता। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों की ऊंचाई पांच फ़ुट 1 इंच, 5 फुट 4 इंच इत्यादि हो सकती है।

सरल शब्दों में, विविक्त चर के मूल्य पूर्णांकों के रूप में 1,2,3 होते हैं जबकि सतत चर के मूल्य भिन्नों के रूप में या दशमलव के रूप में हो सकते हैं।

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शुद्ध आंकड़े Raw Data

शुद्ध आंकड़े, वे आंकड़े होते हैं जिन्हें एक अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान के दौरान संकलित करता है। यह अव्यवस्थित रूप में होते हैं। एक अनुसंधानकर्ता को इन्हें प्रयोग करने से पहले इन्हें व्यवस्थित करना पड़ता है।

उदाहरण के लिए कक्षा ग्यारहवीं के 20 विद्यार्थियों द्वारा अर्थशास्त्र के विषय में प्राप्त अंकों को हम निम्न प्रकार से दर्शा सकते हैं-

30,25,15,30,25,20,10,15,15,20

40,20,10,30,25,20,15,30,20,15

उपरोक्त आंकड़े शुद्ध आंकड़े कहलाएंगे। सांख्यिकी के लिए वे आंकड़े उपयुक्त होते हैं जिनमें समानता पाई जाती है। इन्हें सजातीय आंकड़े कहा जाता है।

आंकड़ों की एक मद जैसे- किसी वस्तु की कीमत, किसी व्यक्ति की आय इत्यादि को अवलोकन, मूल्य, माप, मद, विस्तार आदि कहा जाता है। इन आंकड़ों के द्वारा कोई भी निष्कर्ष निकालने से पहले एक अनुसंधानकर्ता के लिए इनका व्यवस्थितिकरण करना आवश्यक है। इनका व्यवस्थितिकरण करने के लिए अनुसंधानकर्ता, श्रृंखलाओं के रूप में इनका वर्गीकरण करता है।

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श्रृंखलाएं Series

शुद्ध आंकड़ों का वर्गीकरण श्रृंखलाओं के रूप में किया जाता है। श्रृंखलाओं से अभिप्राय उन आंकड़ों से हैं जिन्हें किसी क्रम या विशेषता के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। मदों को भिन्न-भिन्न वर्गों में एक विशेष क्रम के अनुसार व्यवस्थित करना श्रृंखला कहलाता है।

उदाहरण के लिए कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों द्वारा अर्थशास्त्र के के पेपर में प्राप्त अंकों को विद्यार्थियों के रोल नंबर के अनुसार या घटते क्रम या बढ़ते क्रम में अंकों के अनुसार प्रस्तुत किया जाए तो इसे श्रृंखला कहा जाएगा।

होरेस सैक्रिस्ट के अनुसार, “सांख्यिकी में श्रृंखला उन आंकड़ों या आंकड़ों के गुणों को कहते हैं जो किसी तर्कपूर्ण क्रम के अनुसार व्यवस्थित किए जाते हैं।”

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सांख्यिकीय श्रृंखलाओं के प्रकार

Types of Statistical Series

सांख्यिकीय  श्रृंखलाएं निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं-

  1. व्यक्तिगत श्रृंखला Individual Series
  2. आवृत्ति वितरण श्रृंखला Frequency Series Distribution  

आवृति श्रृंखला का निम्नलिखित दो भागों में वर्गीकरण किया जाता है

  1. विविक्त श्रृंखला या आवर्ती व्यूह Discrete Series or Frequency Array
    1. आवृत्ति वितरण या वर्गान्तर श्रृंखला Frequency Distribution or Class Interval Series

1- व्यक्तिगत श्रृंखला Individual Series

व्यक्तिगत श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें प्रत्येक इकाई का अलग-अलग माप प्रकट किया जाता है। उदाहरण के लिए 11वीं कक्षा के 20 विद्यार्थियों द्वारा अर्थशास्त्र विषय में प्राप्त अंकों को अलग-अलग रूप से प्रस्तुत किया जाए तो इसे व्यक्तिगत श्रृंखला कहा जाएगा। इस श्रृंखला में मदों को का कोई वर्ग नहीं होता है। इस श्रृंखला को दो प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है-

a) क्रमानुसार

व्यक्तिगत श्रृंखला को प्रस्तुत करने की एक विधि तो यह है कि मदों को किसी क्रम के अनुसार प्रकट किया जाए।  उदाहरण के लिए विद्यार्थियों के अंकों को उनके रोल नंबर के अनुसार, हॉस्टल में रहने वाले विद्यार्थियों को उनके कमरों के नंबरों के अनुसार प्रकट किया जा सकता है।

इसे निम्न तालिका द्वारा प्रकट किया जा सकता है-

रोल न. अंक   रोल न. अंक
1 30   11 40
2 25   12 20
3 15   13 10
4 30   14 30
5 25   15 25
6 20   16 20
7 10   17 15
8 45   18 30
9 15   19 20
10 20   20 15

b) आंकड़ों का आरोही या अवरोही क्रम

व्यक्तिगत श्रृंखला को प्रस्तुत करने की दूसरी विधि यह है कि श्रृंखला के प्रत्येक इकाई के माप को उनके बढ़ते हुए क्रम या घटते हुए क्रम के अनुसार प्रस्तुत किया जाए। शुद्ध आंकड़ों के क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण (बढ़ते या घटते क्रम) को व्यूह (Array) भी कहा जाता है। अतएव व्यूह से यह अभिप्राय है कि आंकड़ों को बढ़ते हुए अर्थात आरोही या घटते हुए अर्थात अवरोही क्रम से प्रस्तुत किया जाता है।

इसे निम्न तालिका द्वारा प्रकट किया जा सकता है-

बढ़ते क्रम या आरोही क्रम में आँकड़े-

10,10,15,15,15,15,20,20,20,20,20,25,25,25,30,30,30,30,40,45

घटते क्रम या अवरोही क्रम में आँकड़े-

45,40,30,30,30,30,25,25,25,20,20,20,20,20,15,15,15,15,10,10

 

2- आवृत्ति वितरण श्रृंखला Frequency distribution Series

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है आवृत्ति वितरण के आधार पर श्रृंखलाएं दो प्रकार की होती है-

i) विविक्त या खंडित श्रृंखला या आवर्ती व्यूह

ii) अखंडित श्रृंखला या सामूहिक आवृत्ति वितरण

इन्हें समझने के लिए निम्न धारणाओं को समझना आवश्यक है-

  • आवृति
  • वर्ग आवृति
  • मिलान रेखाएं

1- आवृति (Frequency)

किसी सांख्यिकी समूह में एक मद जितनी बार आती है अर्थात जितनी बार उसकी पुनरावृत्ति होती है उसे उस मद की आवृत्ति कहा जाता है।

उदाहरण के लिए कक्षा ग्यारहवीं के 20 विद्यार्थियों द्वारा अर्थशास्त्र के विषय में प्राप्त अंकों को हम निम्न प्रकार से दर्शा सकते हैं- 10,10,15,15,15,15,20,20,20,20,20,25,25,25,30,30,30,30,40,45

उपरोक्त उदाहरण में 20 अंक दो विद्यार्थियों से प्राप्त किए हैं। अतः 20 अंक की आवृति 2 है।

2- वर्ग आवृति (Class Frequency)

किसी भी वर्ग में आने वाली मदों या चरों की संख्या को वर्ग आवृति कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि 10-15 वर्ग में चार विद्यार्थी हो तो 4 को वर्ग आवृति कहा जाएगा।

3- मिलान रेखाएं (Tally Bars)

प्रत्येक वर्ग की आवर्ती को एक रेखा (|) के रूप में प्रकट किया जाता है। इन्हें मिलान रेखा कहते हैं। प्रत्येक मूल्य या प्रत्येक वर्ग में आने वाली एक इकाई के लिए एक रेखा खींची खींची जाती है। प्रत्येक चार रेखाओं के समूह के बाद  पांचवी रेखा उनको काटती हुई खींची जाती है। इसके फलस्वरूप आवृतियों की गणना सरल हो जाती है। इस विधि को अनुमेलन विधि (Four and cross method) कहा जाता है। अंत में इन रेखाओं को गिन कर वर्ग के सामने लिख दिया जाता है।

i) विविक्त या खंडित श्रृंखला या आवर्ती व्यूह

विविक्त या खंडित श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें आंकड़ों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि प्रत्येक मद का एक निश्चित माप प्रकट हो जाता है।

ऊपर व्यक्तिगत श्रंखला के उदाहरण में दिए गए आंकड़ों को विविक्त या खंडित श्रृंखला के रूप में निम्न तालिका के अनुसार प्रकट किया जा सकता है-

अंक आवृति
10 2
15 4
20 5
25 3
30 4
40 1
45 1

ii) सतत या अविच्छिन्न श्रृंखला या आवृत्ति वितरण

सतत श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें इकाइयों का एक निश्चित माप संभव नहीं होता। इसलिए उन्हें कुछ सीमाओं द्वारा प्रकट किया जाता है। इन सीमाओं को वर्गान्तर (Class Intervals) कहा जाता है। श्रृंखला में इकाइयों को वर्गान्तरों में लिखा जाता है। प्रत्येक वर्गान्तर के सामने उसकी आवृत्ति लिखी जाती है। ऊपर दिए गए व्यक्तिगत श्रृंखला के उदाहरण कोसतत श्रृंखला के रूप में निम्न तालिका के अनुसार प्रकट किया जा सकता है-

वर्ग आवृति
0-10 2
10-20 4
20-30 8
30-40 4
40-50 2

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कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएं (Organisation of Data)

सतत या अखंडित श्रृंखलाओं के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण धारणाओं का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।

1- वर्ग (Class)

संख्याओं के किसी निश्चित समूहों को जिसमें मदें शामिल होती हैं, वर्ग कहा जाता है जैसे 5-10, 10-15 आदि।

2- वर्ग सीमाएं (Class Limits)

प्रत्येक वर्ग की आवृतियाँ दो संख्याओं के बीच में होती हैं, यह दोनों संख्याएं वर्ग की सीमाएं कहलाती हैं। वर्ग सीमाएं दो प्रकार की होती हैं-

i) निम्न या निचली सीमा (Lower Limit)- वर्ग की न्यूनतम या पहली वाली संख्या को निचली सीमा कहा जाता है।  

ii) ऊपरी सीमा (Upper Limit)- वर्ग की बड़ी संख्या या अंतिम संख्या को उच्च सीमा या ऊपरी सीमा कहा जाता है। उदाहरण के लिए वर्ग 5-10 में 5 निचली सीमा तथा 10 ऊपरी सीमा है। इन्हें L1 और L2 के नाम से भी जाना जाता है।

3- वर्ग विस्तार (Magnitude of Class Interval)

किसी वर्ग की ऊपरी या उच्च सीमा तथा निम्न या निकली सीमा के अंतर को वर्ग विस्तार कहा जाता है। उदाहरण के लिए वर्ग 10-15 का विस्तार 15–10=5 होगा।

अर्थात वर्ग विस्तार = उच्च सीमा – निम्न सीमा

4- मध्य मूल्य (Mid Value)

किसी वर्ग की उच्च सीमा तथा निम्न सीमा के औसत मूल्य को मध्य-मूल्य कहा जाता है। मध्य मूल्य ज्ञात करने के लिए उच्च सीमा तथा निम्न सीमा के जोड़ को 2 से भाग कर दिया जाता है।

मध्य मूल्य = (उच्च सीमा+निम्न सीमा)/2

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आवृत्ति वितरण/सतत या अखंडित श्रृंखला के विभिन्न प्रकार

1- अपवर्जी या असम्मिलित श्रृंखला (Exclusive Series)

अपवर्जी श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें एक वर्ग की ऊपरी सीमा, दूसरे वर्ग की निचली सीमा होती है। प्रत्येक वर्गान्तर की  की ऊपरी सीमा के मूल्य स्तर वाला मद, उस वर्गान्तर में सम्मिलित न होकर अगले वर्गान्तर की निचली सीमा में सम्मिलित होता है। उदाहरण के लिए 10-15 वाले वर्ग में 10 से 14 तक की मदों की आवृतियाँ शामिल होंगी। यदि किसी मद का मूल्य 15 है तो वह 15-20 वाले वर्ग में सम्मिलित होगा।  इसे निम्न उदाहरण से प्रकट किया जा सकता है-

अंक आवृति
0-10 2
10-20 4
20-30 8
30-40 4
40-50 2

2- समावेशी या सम्मिलित श्रृंखला (Inclusive Series)

समावेशी श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें किसी वर्ग की सभी आवृतियाँ शामिल होती हैं अर्थात किसी वर्ग की ऊपरी सीमा का मूल्य भी उसी वर्ग में शामिल होता है। इस श्रृंखला में 1 वर्ग की ऊपरी सीमा अगले वर्ग की निचली सीमा के बराबर नहीं होती वह उससे कुछ अधिक ही होती है। उदाहरण के लिए 10-15, 15-19

इसे निम्न तालिका द्वारा प्रकट किया जा सकता है-

अंक आवृति
0-9  2
10-19 4
20-29 8
30-39 4
40-49 2

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3- खुले सिरे वाली या निर्वतमुखी श्रृंखला (Open end Series)

खुले सिरे वाली श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें प्रथम वर्ग की निम्न सीमा तथा अंतिम वर्ग की उच्च सीमा नहीं दी हुई होती। इसे निम्न तालिका द्वारा प्रकट किया जा सकता है-

अंक आवृति
10 से कम  2
10-20 4
20-30 8
30-40 4
40 से अधिक  2

4- संचयी आवृत्ति श्रृंखला (Cumulative Frequency Series)

संचयी आवृत्ति श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें आवृतियाँ को वर्ग अनुसार अलग-अलग ने रखकर संचयी रूप से जुड़ते जाते हैं। इन्हें संचयी आवृत्ति श्रृंखला दो प्रकार की होती है-

1- ‘से कम’ संचयी आवृत्ति श्रृंखला

2- ‘से अधिक’ संचयी आवृत्ति श्रृंखला

5- मध्य-मूल्य आवृति श्रृंखला (Mid–Value frequency Series)

मध्य मूल्य वाली श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें वर्गान्तरों के केवल मध्य मूल्य तथा आवृतियाँ आदि हुई होते हैं।

निम्न तालिका द्वारा प्रकट किया जा सकता है-

मध्य मूल्य  आवृति
5 2
15 4
25 8
35 4
45 2

उपरोक्त उदाहरणों में दी गई श्रृंखलाओं के विभिन्न प्रकारों को एक दूसरे में आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है। इन्हें हम आगे आने वाले अध्ययनों में विस्तार से सीखेंगे।

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