You are here
Home > class 12 >

Class 12 Macro Economics Chapter 10-Investment Multiplier and its working

investment multiplier

Class 12 Macro Economics Chapter 10-Investment Multiplier and its working notes in Hindi.

कक्षा 12 समष्टि अर्थशास्त्र अध्याय 10 – निवेश गुणक और उसका कार्यकरण

Class 12 Macro Economics Chapter 10-Investment Multiplier and its working notes in Hindi

निवेश गुणक की धारणा (Concept of Investment Multiplier)

गुणक की धारणा केंज की आय, उत्पादन तथा रोजगार सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण धारणा है। इस धारणा का संबंध निवेश में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरुप आय में होने वाले परिवर्तन से है। यह एक आर्थिक तथ्य है कि जब निवेश में वृद्धि होती है तो आय में, निवेश की वृद्धि की तुलना में कई गुना अधिक वृद्धि होती है। जितने गुना वृद्धि अधिक होती है उसे ही गुणक कहते हैं।

केंज का गुणक का सिद्धांत निवेश तथा आय में संबंध स्थापित करता है। इसलिए इसे निवेश-गुणक कहते हैं। गुणक, निवेश में होने वाले परिवर्तन के कारण आय में होने वाले परिवर्तन का अनुपात होता है। उदाहरण के लिए यदि ₹5 करोड़ का निवेश करने से आय में अंतिम वृद्धि 20 करोड की हो तो 20/5 =4 गुणक कहलाएगा।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि गुणक वह अंक है जिसके साथ निवेश की राशि गुना करके उस निवेश के फलस्वरुप होने वाली आय की वृद्धि का अनुमान लगाया जा सकता है।

निवेश गुणक की परिभाषा Defination of Investment Multiplier

केंज के अनुसार, “निवेश गुणक से ज्ञात होता है कि जब समग्र निवेश में वृद्धि की जाएगी तो आय में जो वृद्धि होगी वह निवेश में होने वाली वृद्धि से K गुना अधिक होगी।

डील्लर्ड के अनुसार, “निवेश में की गई वृद्धि के परिणामस्वरूप आय में होने वाली वृद्धि के अनुपात को निवेश गुणक कहा जाता है।”

गुणक को निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-

                        K = ΔY/ΔI

(यहाँ K=गुणक, = आय में परिवर्तन, = निवेश में परिवर्तन

निवेश गुणांक और सीमांत उपभोग प्रवृति में संबंध Relation between multiplier and Marginal Propensity to Consume-

कुरीहारा के अनुसार, “गुणक का मूल्य वास्तव में सीमांत उपभोग प्रवृत्ति द्वारा निर्धारित होता है।”

उपभोग की सीमांत प्रवृत्ति जितनी ज्यादा होगी, गुणक उतना ही अधिक होगा। इसके विपरीत सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कम होने पर गुणक भी कम हो जाएगा। इसका कारण यह होता है कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से एक व्यक्ति का व्यय दूसरे व्यक्ति की आय होती है। जब निवेश में वृद्धि की जाती है तो लोगों की आय में वृद्धि होती है। वह इस बढ़ी हुई आएगा कुछ भाग उपभोग पर खर्च कर देते हैं तथा कुछ भाग बचा लेते हैं। लोग अपनी आय का कितना भाग उपभोग पर खर्च करेंगे यह सीमांत उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। उपभोग पर किए जाने वाले व्यय के फलस्वरुप कुछ अन्य लोगों की आय में वृद्धि होगी। वह भी इस बढ़ी हुई आय में से कुछ भाग उपभोग पर खर्च करेंगे। इसके फलस्वरूप अन्य लोगों की आय में वृद्धि होगी। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक उपभोग व्यय शून्य नहीं हो जाता। इस प्रकार निवेश में वृद्धि होने से आय में अंतिम रूप से प्रारंभिक निवेश की तुलना में कई अधिक गुना वृद्धि होती है। इसलिए यह कहा जाता है कि गुणक और सीमांत उपभोग प्रवृत्ति का प्रत्यक्ष संबंध होता है।

निवेश गुणक Investment Multiplier

                  K =  ΔY/ΔI

                  K = 1/1-MPC  (या)  = 1/MPS

गुणक का कार्यकरण Working of Multiplier –

गुणक के कार्यकरण को निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है। इस उदाहरण में निवेश में वृद्धि ₹100करोड़ तथा MPC=0.5 माना गया है।  

अवधिनिवेश में वृद्धि    आय में परिवर्तनउपभोग में वृद्धि/प्रेरित निवेशबचत या रिसाव
01001005050
1502525
22512.512.5
312.56.256.25
46.253.123.12
53.121.561.56
61.56.89.89
7.89.39.39
8.39.20.20
9.20.10.10
 योग₹ 200
(K= 1/1-MPC =1/1-0.5 =2
अर्थात आय में अंतिम रूप से 2 गुणा वृद्धि होगी)
₹ 100  ₹ 100

(1) उपरोक्त तालिका से ज्ञात होता है कि आरंभ में ₹100 करोड़ का निवेश किया गया। इसके फलस्वरूप आय में ₹ 100 करोड़ का परिवर्तन हुआ। हमारी मान्यता है कि MPC = 1/2 अर्थात 0.5 है। इसलिए आय में ₹100 करोड़ वृद्धि होने के फलस्वरूप उपभोग में ₹50 करोड़ की वृद्धि होगी और शेष ₹50 करोड़ बचत के रूप में रख लिए जाएंगे।

(2) अर्थव्यवस्था में किया गया एक व्यक्ति का व्यय दूसरे व्यक्ति की आय होती है। इसलिए उपभोग पर खर्च किए गए ₹ 50 करोड़ के कारण दूसरी अवधि में आय में ₹50 करोड़ की वृद्धि होगी। इसके फलस्वरूप उपभोग में ₹25 करोड़ की वृद्धि होगी तथा बचत में ₹25 करोड़ की वृद्धि होगी।

(3) उपभोग में ₹25 करोड़ की वृद्धि होने के कारण आय में ₹25 करोड़ की वृद्धि होगी। इसके फलस्वरूप उपभोग में ₹12.5 करोड़ की वृद्धि होगी। इस प्रकार विभिन्न अवधियों में, (तालिका के अनुसार) उपभोग में वृद्धि होने के कारण आय में वृद्धि होती जाएगी। अंत में आय बढ़कर ₹ 200 करोड़ हो जाएगी। इससे सिद्ध होता है कि गुणक (K) = ΔY/ΔΙ = 200/100 या 2 होगा।

विशेष नोट- यदि सारी अतिरिक्त आय उपभोग पर खर्च कर दी जाए तब गुणक का मूल्य क्या होगा? ऐसी स्थिति में ΔC=ΔY (अथवा उपभोग में परिवर्तन = आय में परिवर्तन)

     अतः  MPC = ΔC/ΔY = 1 तब K (या गुणक होगा K= 1/1-MPC = 1/1-1  = 1/0 = ∞

गुणक के मूल्य की प्रवृत्ति अनंत की और होगी।

(Class 12 Macro Economics Chapter 10-Investment Multiplier and its working notes in Hindi)

गुणक प्रक्रिया Multiplier Process

गुणक की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है-

गुणक की अनुकूल प्रक्रिया Forward action of the Multiplier-

गुणक की अनुकूल प्रक्रिया से प्रकट होता है कि निवेश में होने वाली वृद्धि के फलस्वरुप आय में कई गुना अधिक वृद्धि होगी। इसे गुणक की अनुकूल प्रक्रिया कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि गुणक=2 है तो निवेश में 100 करोड़ की वृद्धि करने से आय में 200 करोड़ की वृद्धि होगी।

गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया Backward action of Multiplier –

गुणक की प्रतिकूल प्रक्रिया से यह प्रकट होता है कि निवेश में प्रारंभिक कमी होने के फलस्वरुप आय में कई गुना अधिक कमी होगी। इसे गुणांक की प्रतिकूल प्रक्रिया कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि गुणक=2 है तो निवेश में ₹50 करोड़ की कमी करने से आय में 100 करोड़ की कमी होगी।

प्रोफेसर सैमुअल्सन ने कहा है कि “गुणक एक दोधारी तलवार है। यह आपके हित में कार्य करेगी और अहित में भी। नए निवेश को यह और भी बढ़ाएगी। इसी प्रकार निवेश में होने वाली कमी को यह और भी कम कर देगी।”

investment multiplier

रेखाचित्र की व्याख्या

गुणक की धारणा की दोनों प्रक्रियाओं को उपरोक्त चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। इस चित्र में OX-अक्ष पर आय तथा OY-अक्ष पर निवेश प्रकट किया गया है। AS वक्र समग्र पूर्ति वक्र है। मान लीजिए आरंभ में समग्र मांग वक्र AD है। यह मांग वक्र समग्र पूर्ति को बिन्दु M पर काट रहा है। अतएव आय का संतुलित स्तर OA होगा। यदि निवेश में वृद्धि होने के कारण मांग वक्र ऊपर की ओर उठकर AD, हो जाती है तो संतुलित आय भी बढ़कर OB हो जाएगी। चित्र से ज्ञात होता है कि निवेश में होने वाली वृद्धि (II2) की तुलना में आय में होने वाली वृद्धि (AB) दुगुनी है। इसका कारण यह है कि गुणक 2 है। बिंदु A से B तक गुणक की अनुकूल या (Forward Action) प्रकट हो रही है।

इसके विपरीत, यदि निवेश में कमी की जाती है तो समग्र माँग वक्र नीचे की ओर खसककर AD, हो जाएगा। यह समग्र मांग वक्र समग्र पूर्ति वक्र की E बिंदु पर काटेगा इससे ज्ञात होता है कि इस अवस्था में संतुलित आय OC होगी। चित्र से ज्ञात होता है कि निवेश में की जाने वाली कमी (I) की तुलना में आय में दुगुनी कमी (AC) हुई है क्योंकि गुणक 2 है। बिंदु A से C की ओर गुणक की विपरीत प्रक्रिया (Backward Action) प्रकट हो रही है। अतएव गुणक दोधारी तलवार है। इसके फलस्वरूप निवेश में होने वाली वृद्धि के कारण जहाँ आय में कई गुना अधिक वृद्धि होती है उसी प्रकार निवेश में कमी होने के कारण आय में कई गुना अधिक कमी होती है।

यदि उपरोक्त के संबंध में आपको कोई शंका या सुझाव है. तो कृपया हमें कमेन्ट कीजिए या runisir@gmail.com पर मेल कीजिए।   

You may also like to visit  : Click here for Micro Economics notes

you may Feel free also to visit  : Click here for Macro Economics notes

also feel free to Visit : Click here to join our live classes for English and Economics on Youtube          

Leave a Reply

Top