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Class 12 Micro Economics Chapter 4-Theory of Demand

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  • Micro Economics
by Eco_Admin - 28/04/202015/05/20210

Theory of Demand

Today’s Topic :

Class 12 Micro Economics Chapter 4-Theory of Demand, Law of Demand, Exception of Law of Demand

माँग का सिद्धांत Theory of Demand
माँग की धारणा

Concept of Demand

 
आम बोलचाल की भाषा में इच्छा, आवश्यकता तथा माँग शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है। परंतु अर्थशास्त्र में माँग शब्द का प्रयोग विशेष समय किया जाता है और इन तीनों शब्दों के विभिन्न अर्थ होते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए आपकी रंगीन टीवी लेने की इच्छा है, परंतु आपके पास पर्याप्त धन नहीं है तो आर्थिक दृष्टि से इसे केवल इच्छा ही कहा जाएगा माँग नहीं। यदि पर्याप्त धन होते हुए भी आप उस धन को टीवी खरीदने पर खर्च नहीं करना चाहते तो यह इच्छा केवल आवश्यकता कहलाएगी माँग नहीं। यह इच्छा उसी स्थिति में माँग का रूप धारण करेगी जिस स्थिति में अर्थात उस समय और एक निश्चित कीमत पर आप रंगीन टीवी खरीदने के लिए तैयार हो जाएंगे।
 
अन्य बातें समान रखने पर, किसी वस्तु की एक निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता उसकी जितनी मात्रा खरीदने की इच्छुक तथा योग्य होता है उसे मांगी गई मात्रा कहा जाता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि माँग किसी वस्तु को खरीदने की इच्छा, उसे संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त धन तथा धन खर्च करने की तत्परता को कहते हैं। 

एक वस्तु की माँग के तीन तत्व होते हैं- 

  • i) वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा 
  • ii) उस इच्छा को पूरा करने के लिए धन अर्थात योग्यता तथा 
  • iii) धन खर्च करने के लिए तत्परता।

यदि इनमें से कोई भी तत्व नहीं है वह माँग नहीं कहलाएगी।

परिभाषा
फर्गूसन के शब्दों में, “माँग किसी वस्तु की वे मात्राएं हैं जिन्हें एक उपभोक्ता अन्य बातें समान रहने पर प्रत्येक संभव कीमत पर एक निश्चित समय में खरीदने के लिए इच्छुक तथा योग्य है।”
 
अन्य बातें समान रहने का अर्थ

Meaning of other things being equal

अर्थशास्त्र में इस शब्दावली का बहुत प्रयोग होता है। इसका अर्थ है कि जिस विषय का हम अध्ययन कर रहे हैं, उससे जुड़े हुए अन्य तत्वों में कोई परिवर्तन न हो। उदाहरण के लिए जब हम माँग का अध्ययन करते हैं तो अन्य बातें समान रहने पर शब्द का अर्थ होता है कि उपभोक्ता की पसंद, मौसम, अन्य वस्तुओं की कीमत आदि तत्वों में कोई परिवर्तन नहीं हो। इसे लेटिन भाषा में Ceteris paribus कहा जाता है।
 
माँग अनुसूची

Demand Schedule

माँग अनुसूची या तालिका वह तालिका है जो अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों तथा उन पर खरीदी गई मात्रा को प्रकट करती हैं।
सैमुअल्सन के अनुसार, “वह तालिका जिसमें कीमत तथा खरीदी गई मात्रा के संबंध को प्रकट किया गया है, माँग अनुसूची कहलाती है।”
माँग अनुसूची दो प्रकार के होती हैं-
i) व्यक्तिगत माँग अनुसूची
ii) बाजार माँग अनुसूची।
 
i) व्यक्तिगत माँग अनुसूची

Individual Demand Schedule

व्यक्तिगत माँग अनुसूची, किसी निश्चित समय पर एक व्यक्ति द्वारा किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर मांगी गई मात्राओं को प्रकट करती है। अर्थात एक व्यक्ति द्वारा निश्चित समय में विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की माँग को प्रदर्शित करने वाले तालिका को माँग तालिका या माँग अनुसूची कहते हैं।
                    उपभोक्ता A की व्यक्तिगत माँग अनुसूची
आइसक्रीम की कीमत (₹)
माँगी गयी मात्रा
1
4
2
3
3
2
4
1
 
बाजार माँग अनुसूची या तालिका

Market Demand Schedule

बाजार माँग अनुसूची किसी वस्तु की उन विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है जिन्हें बाजार के सभी उपभोक्ता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न संभव कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होते हैं।
बाजार माँग अनुसूची
आइसक्रीम की कीमत (₹)
उपभोक्ता A की माँग
उपभोक्ता B की माँग
बाजार माँग
(A+B की माँग)
1
4
5
4+5=9
2
3
4
3+4=7
3
2
3
2+3=5
4
1
2
1+2=3
 
माँग वक्र

Demand Curve

माँग अनुसूची के रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण को माँग वक्र कहते हैं। माँग वक्र किसी दिए हुए समय में माँग के अन्य तत्वों के अपरिवर्तित रहने की दशा में किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों तथा माँगी गयी मात्राओं के बीच के संबंध को प्रकट करता है।
 
प्रोफेसर लेफ़्टविच के अनुसार, “माँग वक्र वस्तु की उन अधिकतम मात्राओं को प्रकट करती है, जिन्हें उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में विभिन्न कीमतों पर खरीदेंगे।”
 
माँग अनुसूची की तरह माँग वक्र भी दो प्रकार का होता है- i) व्यक्तिगत माँग वक्र और ii) बाजार माँग वक्र
 
i) व्यक्तिगत माँग वक्र

Individual Demand Curve

 
व्यक्तिगत माँग वक्र वह माँग वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक व्यक्ति द्वारा मांगी गई विभिन्न मात्राओं को प्रकट करता है।
 
Individual Demand Curve, economics online class
             Individual Demand Curve
 

ii) बाजार माँग वक्र

Market Demand Curve

बाजार माँग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं द्वारा मांगी गई मात्राओं को प्रकट करता है।
 
                              Market Demand Curve
 
माँग फलन या माँग के निर्धारक तत्व

Demand Function OR Determinants of Demand

 
माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों में संबंध प्रकट करता है। इससे प्रकट होता है कि किसी वस्तु की माँग उस वस्तु की कीमत, उपभोक्ता की आय या अन्य तत्वों से किस प्रकार संबंधित है |
Dx=f(Px, Pr, Y, T, E)
(Dx=X वस्तु की माँग, Px=X वस्तु की कीमत, Pr=सम्बन्धित वस्तु की कीमत, Y=उपभोक्ता की आय, T=रूचि और प्राथमिकताये, E=भविष्य की सम्भावनायें)
 
किसी वस्तु की माँग को निर्धारित करने वाले प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
 
1-एक वस्तु की अपनी कीमत
किसी भी वस्तु की माँग की मात्रा उस वस्तु की अपनी कीमत पर निर्भर होती है। अन्य बातें समान रहने पर, वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन होने से भी माँग परिवर्तन होगा। सामान्यतः वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर उस वस्तु की माँग घटती है तथा इसके विपरीत उस वस्तु के अपनी कीमत घटने से उस वस्तु की माँग बढ़ जाती है। किसी वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी माँग के संबंध को माँग का नियम कहा जाता है।
 
2-संबंधित वस्तुओं की कीमत
एक वस्तु की माँग पर उससे संबंधित वस्तुओं की कीमत में होने वाले परिवर्तन का भी प्रभाव पड़ता है। संबंधित वस्तुएं दो प्रकार की होती हैं।
i)        प्रतिस्थापन वस्तुएं (Substitute Goods) प्रतिस्थापन वस्तुएं वस्तुएं हैं जिनका एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। जैसे चाय तथा कॉफी, पेप्सी तथा कोकाकोला। इन वस्तुओं में से यदि एक वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो दूसरी की माँग बढ़ जाएगी | पहली वस्तु की कीमत कम होने पर दूसरी वस्तु की माँग कम हो जाती है। उदाहरण के लिए यदि पेप्सी की कीमत बढ़ जाती है तो लोग उसके स्थान पर कोकाकोला की माँग अधिक करने लगते हैं।
ii)       पूरक वस्तुएं (Complementary Goods) पूरक वस्तुएं वस्तुएं हैं जिनका एक वस्तु के बिना दूसरी वस्तु का प्रयोग नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए पेन और शाही तथा कार और पेट्रोल। पूरक वस्तुओं में एक कीमत में वृद्धि होने से दूसरे की माँग कम हो जाती है। इसके विपरीत यदि एक के कीमत कम हो जाए तो दूसरी वस्तु की माँग बढ़ जाती है।
 
3-उपभोक्ता की आय
उपभोक्ता की आय में परिवर्तन भी विभिन्न वस्तुओं की माँग को प्रभावित करते हैं। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर सामान्य वस्तु की माँग बढ़ जाती है और आय घटने पर इनकी माँग घट जाती है। इसके विपरीत घटिया या निम्न कोटि की वस्तुओं जैसे मोटे अनाज के संबंध में उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इन निम्न कोटि वस्तु की माँग कम हो जाती है और उपभोक्ता की आय घटने पर इनकी माँग घट जाती है।
 
4-रूचि तथा प्राथमिकताएं
अर्थशास्त्र में इन शब्दों का प्रयोग काफी विस्तृत अर्थों में किया जाता है। इनके अंतर्गत फैशन, आदत, रीति–रिवाज आदि सब शामिल किए जाते हैं। उपभोक्ता के रूचि एवं प्राथमिकता पर विज्ञापन, फैशन में परिवर्तन, मौसम, नए अविष्कार आदि का प्रभाव पड़ता है। अन्य बातें समान रहने पर, उपभोक्ताओं की जिन वस्तुओं के लिए रुचि व प्राथमिकता बढ़ जाती है, उनकी माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत यदि उपभोक्ता की किसी रूचि के लिए व प्राथमिकता खत्म हो जाती है तो उसकी माँग कम हो जाएगी।
 
5-भविष्य की संभावनाएं
यदि उपभोक्ता को यह संभावना लगे कि भविष्य में कीमतें बढ़ेंगी तो वह वर्तमान में वस्तु के प्रचलित कीमत पर उसके अधिक मात्रा खरीदेगा इसके विपरीत यदि उपभोक्ता यह लगता है कि भविष्य में वस्तुओं की कीमत घटेगी तो वर्तमान में वस्तुओं की माँग करेगा।
 
माँग का नियम

Law of Demand

अन्य बातें समान रहने पर, किसी वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है तथा अपनी कीमत कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है यही माँग का नियम है। अन्य शब्दों में माँग का नियम हमें बताता है कि यदि किसी वस्तु के अन्य निर्धारक तत्व परिवर्तित रहे तो किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा तथा उसकी कीमत में विपरीत संबंध होता है। अन्य निर्धारक तत्वों में उपभोक्ता की आय, संबंधित वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता के रूचि आदि को सम्मिलित किया जाता है।
 
मार्शल के अनुसार, “माँग का नियम यह बताता है कि कीमत में कमी के कारण वस्तु की माँग बढ़ जाती है तथा कीमत में वृद्धि के कारण वस्तु की माँग कम हो जाती है।”
 
माँग के नियम की व्याख्या माँग अनुसूची या तालिका की सहायता से की जा सकती है-
 
                               माँग अनुसूची
कीमत (P)
माँगी गयी मात्रा (Q)
10
100
9
150
8
200
 
माँग तालिका से ज्ञात होता है कि X वस्तु की कीमत होने पर उसकी माँग बढ़ जाती है| जब X वस्तु की कीमत ₹10 से कम होकर ₹9 हो जाती है तो माँग 100 इकाई से बढ़कर 150 इकाई हो जाती हैं।
 
इसे हम माँग वक्र की सहायता से भी स्पष्ट कर सकते हैं।
 
         Demand Curve
रेखाचित्र में OX अक्ष पर मात्रा तथा OY पर कीमत दर्शाई गई है। DD माँग वक्र है। जब X वस्तु की कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तो उसके माँग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। वास्तव में माँग वक्र का ऊपर से नीचे की ओर ढलान माँग के नियम को प्रकट करता है।
 
माँग के नियम की मान्यताएं

Assumptions of Law of Demand

माँग का नियम तभी लागू होता है जब अन्य बातें समान हो। इससे अभिप्राय है कि माँग को प्रभावित करने वाले कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्वों को स्थिर मान लिया जाता है। इन्हें माँग के नियम की मान्यताएं कहा जाता है। यह नियम केवल साधारण वस्तुओं पर लागू होता है। गिफ्फन वस्तुओं (Giffen Goods) पर लागू नहीं होता |
 
माँग के नियम की मुख्य मान्यतायें निम्नलिखित है-
1-उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
2-उपभोक्ता की रूचि हो तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
3-संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
4-वस्तु की कीमत के भविष्य में परिवर्तन की संभावना नहीं होनी चाहिए।
 

माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक क्यों होता है?

अथवा
जब कीमत कम होती है तो किसी वस्तु को अधिक क्यों खरीदा जाता है?

Why Does Demand Curve Slope Downwards?

 
माँग वक्र के ऋणात्मक ढलान या ऊपर से नीचे की ओर झुके होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
 
1-घटती सीमांत उपयोगिता का नियम इस नियम के अनुसार जैसे जैसे किसी वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है तो उसकी सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है। उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि तब प्राप्त होती है जब किसी वस्तु की उपयोगिता कीमत उसकी सीमांत उपयोगिता के बराबर होती है। प्रत्येक वस्तु की मात्रा अधिक खरीदने से उसकी सीमांत उपयोगिता कम होती जाती है। इसलिए उपभोक्ता उस वस्तु की अधिक मात्रा तभी खरीदेगा जब उस वस्तु की उपयोगिता कीमत कम होकर सीमांत उपयोगिता के बराबर हो जाए।
 
2-आय प्रभाव एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से उपभोक्ता के वास्तविक आय में हुए परिवर्तन होने के कारण वस्तु के माँगी गयी मात्रा में होने वाले परिवर्तन को आय प्रभाव कहा जाता है। वास्तविक आय को वस्तुओं और सेवाओं के रूप में मापा जाता है। कीमत कम होने पर वास्तविक आय बढ़ जाती है। इस बढ़ी हुई वास्तविक आय का प्रयोग उपभोक्ता वस्तु के अधिक मात्रा खरीदने में प्रयोग करता है। अतएव वास्तविक आय बढ़ने से वस्तु की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत कीमत बढ़ने पर वास्तविक आय कम होने के कारण वस्तुओं की माँग भी कम हो जाती है।
 
3-प्रतिस्थापन प्रभाव प्रतिस्थापन प्रभाव से अभिप्राय है जब एक वस्तु अपने स्थानापन्न वस्तु की तुलना में सस्ती हो जाती है तो उसका दूसरी वस्तु के लिए प्रतिस्थापन किया जाता है। उदाहरण के लिए पेप्सी और कोकाकोला में यदि पेप्सी की कीमत कम हो जाए तो उपभोक्ता कोकाकोला के स्थान पर पेप्सी की अधिक माँग करेंगे इसे ही प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है।
 
4-उपभोक्ता समूह का आकार किसी वस्तु की कीमत कम हो जाती है, तब कई नए उपभोक्ता जो पहले उस वस्तु को नहीं खरीद रहे थे उसे खरीदना शुरू कर देते हैं। इसके फलस्वरूप वस्तुओं की माँग बढ़ जाएगी। इसके विपरीत वस्तु की कीमत बढ़ने पर कई उपभोक्ता उसे खरीदना बंद या कम कर देते हैं। इसके फलस्वरूप कीमत बढ़ने पर उस वस्तु की माँग कम हो जाएगी।
 
5-विभिन्न उपयोग अधिकतर वस्तुओं के विभिन्न उपयोग होते हैं। उदाहरण के लिए चने का उपयोग मनुष्य के खाने तथा घोड़ों के खाने में किया जा सकता है| यदि चने की कीमत अधिक होगी तो उसका प्रयोग महत्वपूर्ण कार्य अर्थात मनुष्य के खाने के लिए ही किया जाएगा। इस प्रकार चने की माँग कम रहती है। इसके विपरीत यदि चने की कीमत कम हो जाए तो उसका प्रयोग मनुष्य तथा घोड़ो दोनों को खाने के लिए किया जाएगा तो चलेंगे कीमत कम होने पर उसकी माँग बढ़ जाएगी।
 
माँग के नियम के अपवाद

Exceptions of Law of Demand

माँग के नियम के कुछ अपवाद भी हैं। इसका अर्थ यह है कि कुछ वस्तुओं की कीमत अधिक होने पर उनकी माँग बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर उनकी माँग कम हो जाती है। सबसे पहले इस तथ्य का सर रोबर्ट गिफ्फन ने विश्लेषण किया था इसलिए इसे गिफ्फन का विरोधाभास (Giffen’s Paradox) भी कहा जाता है।
माँग के नियम के मुख्य अपवाद निम्नलिखित है।
 
1-प्रतिष्ठासूचक वस्तुएं
इस अपवाद की व्याख्या सबसे पहले वेबलन नामक अर्थशास्त्री ने की थी| उनके अनुसार जो वस्तु प्रतिष्ठा की सूचक होती है, उनकी माँग तभी अधिक होती है जब उनकी कीमत अधिक हो | हीरे–जवाहरात, कीमती कालीन आदि की माँग उसी समय अधिक होगी जब उनकी कीमत अधिक होती है। इसका कारण यह है कि इन हीरे–जवाहरात, कीमती कालीन इत्यादि को समाज में अधिक प्रतिष्ठा का सूचक माना जाता है। इसलिए उनकी कीमत अधिक होने पर भी माँग अधिक होती है।
 
2-अज्ञानता 
कई बार उपभोक्ता अज्ञानता व भ्रम के कारण किसी वस्तु की कम कीमत पर उसे कम महत्वपूर्ण समझते हैं और कम मात्रा खरीदते हैं। परंतु कीमत अधिक होने पर वे उस वस्तु अधिक महत्वपूर्ण मानने लगते हैं और उसके अधिक माँग करते हैं।
 
3-गिफ्फन वस्तुएं
गिफ्फन वस्तुएं, वे वस्तुएं हैं जिनका कीमत प्रभाव धनात्मक होता है तथा आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। अर्थात गिफ्फन वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनकी कीमत बढ़ने पर माँग बढ़ती है तथा कीमत कम होने पर माँग कम होती है। (कीमत प्रभाव धनात्मक) तथा उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इनकी माँग कम होती है तथा आय कम हो जाने पर इनकी माँग बढ़ जाती है। (आय प्रभाव ऋणात्मक)
सर रोबर्ट गिफ्फन ने सर्वप्रथम इस बात की ओर ध्यान दिया था इसलिए इन वस्तुओं को गिफ्फन वस्तुयें कहा जाता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी गिफ्फन वस्तुएं निम्न कोटि की वस्तुएं होती हैं, परंतु सभी निम्न कोटि की वस्तुएं गिफ्फन वस्तुएं नहीं होती।
 
माँगी गई मात्रा में परिवर्तन और माँग में परिवर्तन

Change in Quantity Demanded and Change in Demand

किसी वस्तु की अपनी कीमत में कमी और वृद्धि के फलस्वरूप उस वस्तु की मांगी गई मात्रा में होने वाली कमी या वृद्धि को मांगी गई मात्रा में परिवर्तन कहते हैं। इसके विपरीत माँग परिवर्तन से अभिप्राय है कि एक वस्तु की मांगी गई मात्रा में उस वृद्धि या कमी से है जब उस वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य निर्धारक तत्वों में परिवर्तन होता है।
 
1-मांगी गई मात्रा में परिवर्तन
यह 2 प्रकार से होता है-
माँग का विस्तार या संकुचन
किसी वस्तु की अपनी कीमत में होने वाले परिवर्तन से उसकी मांगी की मात्रा में जो परिवर्तन होता है उसे माँग का विस्तार कहते हैं या संकुचन कहते हैं।
 

i)        माँग का विस्तार (Extension of Demand)

अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु के अपनी कीमत में कमी होने के फलस्वरूप उसकी माँग अधिक हो जाती है तो इसे माँग का विस्तार कहा जाता है। इसे हम निम्न द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
 
 
माँग का विस्तार
वस्तु की कीमत (₹)
माँग की मात्रा (Q)
व्याख्या
5
1
कीमत में कमी
माँग का विस्तार
1
5
 

ii)       माँग का संकुचन (Contraction of Demand)

अन्य बातें समान रहने पर, जब किसी वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के फलस्वरूप उसकी माँग कम हो जाती है तो इसे माँग का संकुचन कहते हैं। इसे हम निम्न द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
माँग का संकुचन
वस्तु की कीमत (₹)
माँग की मात्रा (Q)
व्याख्या
1
5
कीमत में वृद्धि
माँग का संकुचन
5
1
 
2- माँग में परिवर्तन
यह 2 प्रकार से होता है-
माँग में वृद्धि या कमी
जब किसी वस्तु की माँग में उसकी अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य तत्वों में परिवर्तन के कारण परिवर्तन आ जाता है तो उसे माँग में वृद्धि या कमी कहते हैं।
 

i)        माँग में वृद्धि (Increase in Demand)

प्रचलित या वर्तमान कीमत पर जब किसी वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है तो यह माँग में वृद्धि कहलाती है। इसे निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
                                         माँग में वृद्धि
वस्तु की कीमत (₹)
माँग की मात्रा (Q)
10
20
10
30
 
माँग में वृद्धि के कारण–
a)  जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो जाए |
b)  जब प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती हैं।
c)   जब पूरक वस्तु की कीमत में कमी होती हैं।
d)  जब फैशन या ऋतु में परिवर्तन के कारण वस्तु के लिए उपभोक्ता की रूचि में वृद्धि होती है।
e)  जब क्रेताओं की संख्या में वृद्धि होती है।
f)   भविष्य में कीमत बढ़ने की संभावना हो।
 

ii)       माँग में कमी (Decrease in Demand)

प्रचलित या वर्तमान कीमत पर जब किसी वस्तु की कम मात्रा मांगी जाती है तो यह माँग में कमी कहलाती है। इसे निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
  माँग में वृद्धि
वस्तु की कीमत (₹)
माँग की मात्रा (Q)
10
30
10
20
 
माँग में कमी के कारण
a)  जब उपभोक्ता की आय में कमी होती है।
b)  प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी होती है।
c)   जब पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है।
d)  जब फैशन या जलवायु में परिवर्तन के कारण वस्तु के लिए उपभोक्ता की रूचि में कमी आती है।
e)  जब क्रेताओं की संख्या में कमी हो जाए।
f)   जब निकट भविष्य में कीमत कम होने की संभावना हो।
 
मांगी गई मात्रा में परिवर्तन तथा माँग परिवर्तन को हमने तरीके से भी स्पष्ट कर सकते हैं।
 
A) माँग का संकुचन तथा माँग की कमी में अंतर
माँग का संकुचन
माँग में कमी
1- यह केवल वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन होने के कारण होता है।
1- यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य निर्धारक तत्व में परिवर्तन के कारण होती है।
2- यह वस्तु की अपनी कीमत में वृद्धि होने के कारण होता है।
2- उपभोक्ता की आय में कमी, प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत में कमी, पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि में कमी आदि के कारण होती है।
 
 
B) माँग का विस्तार तथा माँग की वृद्धि में अंतर
माँग के विस्तार
माँग में वृद्धि
1- यह केवल वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन होने के कारण होता है।
1- यह वस्तु की अपनी कीमत के अतिरिक्त अन्य निर्धारक तत्व में परिवर्तन के कारण होती है।
2- यह वस्तु की अपनी कीमत में कमी होने के कारण होता है।
2- उपभोक्ता की आय में वृद्धि, प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि, पूरक वस्तुओं की कीमत में कमी तथा उपभोक्ता की वस्तु के लिए रुचि में वृद्धि आदि के कारण होती है।
 
 
 

यदि आपको उपरोक्त में कोई शंका या सवाल है तो आप हमें कमेंट कर सकते है |

~Admin
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