Class 12 Micro Economics Chapter 5-Elasticity of Demand 12thEconomicsNotes MicroEconomics by Eco_Admin - 03/05/202015/05/20210 Class 12 Micro Economics Chapter 5-Elasticity of Demand Elasticity of Demand In this post of Economics Online Class, we will learn about Elasticity of Demand We continuously providing your all Economics Notes about Micro Economics, Macro Economics and Syllabus information for CBSE Class 12th and Haryana Board Class 12th. These Economics Notes in Hindi language. माँग की लोच Elasticity of Demand माँग की लोच पढने से पहले हम लोग लोच शब्द को सीखेंगे | लोच (Elasticity) शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Elastic से लिया गया है| जिस तरह से एक इलास्टिक को खींचकर बड़ा कर सकते हैं और छोड़ने पर वह छोटा हो जाता है, उसी तरह लोच शब्द में हम यह जानते हैं कि किसी विशेष तत्व में कितनी लचक या फैलाव है अर्थात वह विशेष परिस्थितियों में कितना फैल सकता और सिकुड़ सकता है | माँग की लोच की धारणा Concept of Elasticity of Demand माँग की लोच, माँग को प्रभावित करने वाले संख्यात्मक तत्वों में वृद्धि या कमी के फलस्वरुप माँग की मात्रा में होने वाली कमी या वृद्धि के विस्तार की मात्रा को मापती है। पिछले अध्याय में हमने पढ़ा था कि किसी वस्तु की माँग विशेष रूप से उस वस्तु की कीमत, उपभोक्ता के आय तथा संबंधित वस्तुओं की कीमत पर निर्भर करती है। और माँग की लोच से ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की कीमत अथवा उपभोक्ता आय अथवा संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से उस वस्तु की माँग की मात्रा में कितना परिवर्तन होता है| डूले के अनुसार, “एक वस्तु की कीमत, उपभोक्ता की आय तथा संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन होने से उस वस्तु की माँग की मात्रा में होने वाले परिवर्तन को माँग की लोच कहा जायेगा।” जब वस्तु की माँग की गई मात्रा के परिवर्तन को वस्तु की कीमत में परिवर्तन द्वारा मापा जाता है तो उसे माँग की कीमत लोच कहते हैं। जब मांगी गई मात्रा के परिवर्तन को उपभोक्ता की आय में हुए परिवर्तन के आधार पर मापा जाता है तो उसे माँग की आय लोच कहा जाता है। और इसी तरह जब एक वस्तु की माँग की मात्रा के परिवर्तन को उससे संबंधित दूसरी वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन के संदर्भ में मापा जाता तो इसे माँग की आड़ी या तिरछी लोच कहा जाता है। अतएव माँग की लोच मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है– 1)माँग की कीमत लोच 2)माँग की आय लोच और 3)माँग की आड़ी लोच। (नोट : कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में केवल माँग की कीमत लोच का अध्ययन शामिल है।) माँग की कीमत लोच Price elasticity of Demand माँग की कीमत लोच, कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है। माँग की कीमत लोच से हमें ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की कीमत बढ़ने से माँग में कितने प्रतिशत की कमी होगी तथा कीमत कम होने से माँग में कितने प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है कि माँग की लोच द्वारा परिवर्तन की मात्रा ज्ञात होती है जबकि माँग के नियम द्वारा परिवर्तन की दिशा ज्ञात होती है। माँग की कीमत लोच = (-) माँगी गयी मात्रा में % परिवर्तन/ कीमत में % परिवर्तन मार्शल के शब्दों में, “माँग की कीमत लोच कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।” बोल्डिंग के अनुसार, “माँग की कीमत लोच किसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन की प्रतिक्रिया स्वरूप मांगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन का माप है।” माँग की कीमत लोच की कोटियाँ/श्रेणियाँ Degrees of Price Elasticity of Demand अर्थशास्त्र में माँग की लोच की मात्राओं का अध्ययन 5 कोटी या श्रेणियों में किया जाता है यह निम्नलिखित है– 1- पूर्णतया लोचदार माँग Perfectly Elastic Demand किसी वस्तु के पूर्णतया लोचदार माँग अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें प्रचलित कीमतों पर माँग अनंत होती है | इस स्थिति में कीमत के थोड़ा सा बढ़ने पर भी माँग शून्य हो जाती है। (Perfectly Elastic Demand) रेखा चित्र में पूर्णतया लोचदार माँग प्रकट की गई है। DD माँग वक्र पूर्णतया लोचदार माँग को प्रकट कर रहा है जो कि OX अक्ष के समानांतर होता है। इस अवस्था में माँग की लोच अनंत होती है अर्थात Ed=∞ पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की अवस्था में एक फर्म की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है। 2-पूर्णतया बेरोजगार माँग Perfectly Inelastic Demand किसी वस्तु की माँग उस समय पूर्णतया बेलोचदार होती है जब कीमत में परिवर्तन होने पर माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता। रेखाचित्र में पूर्णतया बेलोचदार माँग प्रकट की गई है। Perfectly inelastic Demand इस अवस्था में DD माँग वक्र OY अक्ष के समानांतर होता है। इससे प्रकट होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹2 है तो माँग 4 इकाईयाँ हैं| यदि कीमत बढ़ कर ₹4 या ₹6 हो जाती है तो भी कीमत में होने वाले परिवर्तनों का माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता | इस अवस्था में माँग की लोच शून्य होती है। अर्थात Ed=0 3-इकाई लोचदार माँग Unitary Elastic Demand इकाई लोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप माँग में इतना परिवर्तन होता है कि वस्तु पर किया जाने वाला कुल व्यय स्थिर रहता है। अन्य शब्दों में इकाई लोचदार माँग उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कीमत में जितने प्रतिशत परिवर्तन होता है, माँग में भी उतना ही प्रतिशत परिवर्तन हो जाए। उदाहरण के लिए यदि कीमत में 10% कमी आती है तो माँग में भी 10% की वृद्धि हो जाए तो यह इकाई लोचदार माँग दर्शाता है। Unitary Elastic Demand रेखा चित्र में DD माँग वक्र इकाई माँग लोच प्रकट कर कर रहा है| इस स्थिति में माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। प्रारंभ में OP कीमत पर और Q1 मात्रा की माँग की जाती है। कीमत के कम होकर OP1 हो जाने पर मांगी गई मात्रा बढ़कर OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है| इस स्थिति में जितना कीमत में परिवर्तन हुआ है, उतना ही मांगी गई मात्रा में परिवर्तन हुआ है अतः यह माँग इकाई लोचदार माँग है। अर्थात Ed=1 4-इकाई से अधिक लोचदार माँग Greater than Unitary Elastic Demand इकाई से अधिक लोचदार माँग है स्थिति है जिसमें कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में इतना परिवर्तन होता है कि कीमत के कम होने पर उस वस्तु पर किया जाने वाला कुल खर्च बढ़ जाता है तथा कीमत बढ़ने पर कुल खर्च कम हो जाता है। अन्य शब्दों में इकाई से अधिक लोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें कीमत में जितने प्रतिशत परिवर्तन होता है, माँग में उससे ज्यादा प्रतिशत परिवर्तन हो। उदाहरण के लिए यदि कीमतें 10% कम हो जाए और माँग में 15% की वृद्धि हो जाए तो यह इकाई से अधिक लोचदार माँग को दर्शाता है। More than unitary elastic demand 5-इकाई से कम लोचदार माँग Less than Unitary Elastic Demand इकाई से कम लोचदार माँग वह स्थिति है जिसमें वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तुओं की माँग में इतना परिवर्तन होता है कि कीमत में कम होने पर किया जाने वाला कुल खर्च कम हो जाता है तथा कीमत में वृद्धि होने पर कुल खर्च बढ़ जाता है। अन्य शब्दों में इकाई से कम लोचदार माँग है वह स्थिति है जिसमें कीमत में जितने प्रतिशत परिवर्तन होता है, माँग में उससे कम प्रतिशत परिवर्तन हो। उदाहरण के लिए यदि कीमत 10% कम हो जाने पर माँग में 8% वृद्धि हो तो यह इकाई से कम लोचदार माँग दर्शाता है। Less than unitary Elastic Demand माँग की कीमत लोच का माप Measurement of Price elasticity of Demand माँग की कीमत लोच के मापने से हमें यह ज्ञात होता है कि किसी वस्तु की माँग इकाई लोचदार माँग है या इकाई से अधिक लोचदार माँग है अथवा इकाई से कम लोचदार माँग है| माँग की लोच को मापने की निम्न तीन विधियां हैं। 1) कुल व्यय विधि 2) आनुपातिक या प्रतिशत विधि 3) ज्यामितीय विधि या ग्राफ़िक विधि या बिंदु विधि 1) कुल व्यय विधि Total Expenditure Method माँग की लोच मापने की कुल व्यय विधि का प्रतिपादन डॉक्टर मार्शल ने किया था। इस विधि के अनुसार माँग की लोच को मापने के लिए यह मालूम किया जाना आवश्यक है कि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से उस पर किए गए किए जाने वाले कुल व्यय में कितना परिवर्तनकिस दिशा में होता है। इस विधि के अनुसार माँग की कीमत लोच की निम्न श्रेणियाँ है- a) यदि किसी वस्तु की कीमत के कम या अधिक होने पर उस पर किए जाने वाले पुल व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। b) जब किसी वस्तु की कीमत कम होने से कुल व्यय बढ़ जाए तथा कीमत बढ़ने पर कुल व्यय कम हो जाए अर्थात कीमत और कुल व्यय में ऋणात्मक (-) संबंध हो तो उस वस्तु की माँग की लोच इकाई से अधिक लोचदार होती हैं। c) जब किसी वस्तु की कीमत कम होने से कुल व्यय कम हो जाता है तथा कीमत बढ़ने से कुल व्यय बढ़ जाता है अर्थात कीमत और कुल व्यय में धनात्मक (+) संबंध हो तो उस वस्तु की माँग की लोच इकाई से कम अर्थात बेलोचदार होती है। इसे हम निम्न तालिका द्वारा दर्शा सकते हैं। कुल व्यय विधि स्थिति वस्तु की कीमत माँगी गयी मात्रा कुल व्यय कुल व्यय पर प्रभाव माँग पर लोच A 2 1 4 8 8 8 कुल व्यय समान रहता है इकाई के बराबर B 2 1 4 10 8 10 कुल व्यय बढ़ता है इकाई से अधिक C 2 1 3 4 6 4 कुल व्यय घटता है इकाई से कम माँग की इकाई लोच तालिका की स्थिति A से हमें ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹2 है तब उस वस्तु पर कुल खर्च ₹8 किया जाता है| कीमत के कम होकर ₹1 होने पर भी कुल व्यय समान ही रहता है। कीमत में किसी भी परिवर्तन का कुल व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता इसलिए यह इकाई माँग की आय लोच दर्शाता है। इकाई से अधिक लोच तालिका की स्थिति B से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹2 है तो कुल व्यय ₹8 तथा कीमत कम होकर ₹1 होने पर कुल व्यय बढ़कर ₹10 हो जाता है| अतएव कीमत और कुल व्यय में ऋणात्मक दिशा में परिवर्तन होने के कारण यह इकाई से अधिक लोच है| इकाई से कम लोच तालिका की स्थिति C से ज्ञात होता है कि जब वस्तु की कीमत ₹2 है तो कुल व्यय ₹6 है| यदि वस्तु की कीमत कम होकर ₹1 हो जाती है तो कुल व्यय कम होकर ₹4 हो जाता है। इस प्रकार कीमत में होने वाले परिवर्तन का कुल व्यय पर प्रभाव उसी दिशा में होता है। इसलिए यहां इकाई से कम लोचदार माँग के स्थिति है। माँग की लोच को मापने की कुल व्यय विधि को निम्न रेखाचित्र की मदद द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। Total Expenditure Method रेखा चित्र में OY अक्ष पर कीमत और OX पर कुल व्यय को प्रकट किया गया है। TE वक्र कुल व्यय वक्र है| TE वक्र के बीच का BC भाग इकाई कीमत लोच को प्रकट करता है। अर्थात कीमत के OM से बढ़कर OP हो जाने पर भी कुल व्यय की मात्रा स्थिर रहती है। अतः यह इकाई के बराबर लोच को दर्शाता है। इसी तरह EC वक्र, इकाई से कम लोचदार माँग को दर्शाता है। कीमत के OM से घटकर OP होने पर कुल व्यय भी घट जाता है अतः यह इकाई से कम लोचदार माँग है। TE कुल व्यय वक्र का TB भाग इकाई से अधिक लोच को दर्शाता है। कीमत के ON से बढ़कर OR होने पर कुल व्यय कम हो जाता है अतः यह माँग के इकाई से अधिक लोच को दर्शाता है। 2- आनुपातिक या प्रतिशत विधि Proportionate or Percentage Method माँग की लोच को मापने की दूसरी विधि प्रतिशत विधि अथवा आनुपातिक विधि का वर्णन सबसे पहले डॉक्टर मार्शल ने किया था। इस प्रणाली के अनुसार माँग की लोच का अनुमान लगाने के लिए माँग में होने वाले आनुपातिक प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में होने वाले अनुपाती के प्रतिशत परिवर्तन से भाग कर दिया जाता है। इस विधि द्वारा माँग की लोच का माप निम्न सूत्र से की सहायता से ज्ञात होता है– Proportionate/Percentage Method यहाँ Ed = माँग की कीमत लोच, ∆Q=माँगी गयी मात्रा में परिवर्तन (Q1-Q), ∆P=कीमत में परिवर्तन (P1-P) P=प्रारम्भिक कीमत Q=प्रारम्भिक माँग ∆ (इस चिह्न को डेल्टा कहा जाता है) विशेष नोट : अनुपातिक या प्रतिशत विधि में सूत्र से पहले (–) का निशान या ऋणात्मक चिह्न का प्रयोग क्यों किया जाता है? इसका कारण यह है कि कीमत तथा माँग की मात्रा में विपरीत संबंध होने के कारण माँग की लोच हमेशा ऋणात्मक होती है | इस ऋणात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए सूत्र में (-) का निशान या ऋणात्मक चिह्न लगाया जाता है। इसके साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए कि परीक्षा में यदि संख्यात्मक प्रश्नों में माँग की लोच के गुणांक के पहले ऋणात्मक चिह्न लगाया है तो इस स्थिति में सूत्र में ऋणात्मक चिह्न नहीं लगाया जाएगा। इसे निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। जब आइसक्रीम की कीमत ₹4 से कम होकर ₹2 प्रति आइसक्रीम हो जाती है तो उसकी माँग 1 आइसक्रीम से बढ़कर 4 आइसक्रीम हो जाती है। प्रतिशत विधि द्वारा माँग की कीमत लोच ज्ञात करो। हल : यहाँ दिया गया है – प्रारम्भिक कीमत(P)=4 नई कीमत (P1)=2 कीमत में परिवर्तन (∆P)=P1-P =(2-4)=-2 प्रारम्भिक माँग(Q)=1 नई माँग(Q1)=4 माँगी गयी मात्रा में परिवर्तन (∆Q)=Q1-Q =4-1=3 सूत्र के अनुसार Ed = (-)P/Q x ∆Q/∆P Ed = (-)4/1 x 3/-2 =6 (इकाई से अधिक) 3-ज्यामितीय विधि या ग्राफिक विधि या बिंदु विधि Geometric Method or Graphic Method or Point Method इस विधि का प्रयोग किसी माँग वक्र के किसी विशेष बिंदु पर माँग की लोच ज्ञात करने के लिए किया जाता है। Geometric or Graphic or Point method रेखा चित्र में DD माँग वक्र है| इस माँग वक्र के किसी भी बिंदु की माँग की लोच मालूम करने के लिए उस बिंदु से रेखा के नीचे के हिस्से को उस बिंदु से ऊपर के हिस्से से भाग कर दिया जाता है। माँग की लोच (P बिंदु पर) = बिंदु से निचला भाग/बिंदु से ऊपर का भाग माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले तत्व Factors affecting the Price Elasticity of Demand माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं। 1-वस्तु के प्रकृति– साधारणतया यह देखा गया है कि अनिवार्य वस्तुओं जैसे नमक, माचिस, पुस्तकें इनकी माँग कम लोचदार होती है। विलासिता के वस्तुओं जैसे एयर कंडीशनर, कीमती फर्नीचर आदि की माँग अधिक लोचदार होती है। आरामदायक वस्तुओं जैसे कूलर, पंखे की माँग इकाई के बराबर होती है। संयुक्त माँग वाली वस्तुओं या पूरक वस्तुओं जैसे कार और पेट्रोल, पेन और स्याही इत्यादि की माँग साधारणतया बेलोचदार होती है। उदाहरण के लिए पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर भी पेट्रोल की माँग में अधिक कमी नहीं होगी, यदि कारों की माँग में कमी नहीं हुई है। 2-स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि– जिन वस्तुओं के स्थानापन्न जैसे चाय–कॉफी या पेप्सी–कोका कोला उचित कीमत पर उपलब्ध है तो उनकी माँग अधिक लोचदार होगी| इसका कारण यह है कि यदि किसी वस्तु की कीमत उसके स्थानापन्न की तुलना में कम हो जाती हैं तो लोग उस वस्तु की अधिक मात्रा खरीदेंगे| जिन वस्तुओं के स्थानापन्न नहीं होते उनकी माँग अपेक्षाकृत बेलोचदार होती है। 3-विभिन्न उपयोगों वाली वस्तुएं– जिन वस्तुओं के विभिन्न उपयोग होते हैं उनकी माँग अधिक लोचदार होती है। अर्थात कीमत में परिवर्तन का उनकी माँग में परिवर्तन पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। उदाहरण के लिए दूध का प्रयोग मिठाई बनाने, बच्चे को पिलाने, चाय या कॉफी बनाने के लिए प्रयोग किया जा किया जा सकता है। यदि दूध की कीमतें बढ़ जाती हैं तो इसे केवल आवश्यक कार्यों के लिए प्रयोग किया जाएगा। 4-उपभोग का स्थगन– जिन वस्तुओं के उपभोग को भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है उनके माँग लोचदार होती हैं। उदाहरण के लिए यदि मकान बनाने की माँग को भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है तो मकान बनाने की सामग्री जैसे ईंट, सीमेंट आदि की माँग लोचदार होगी। इसके विपरीत जिन वस्तुओं की माँग को भविष्य के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता। उनके माँग कम लोचदार होगी उदाहरण के लिए पाठ्य पुस्तकें। 5-उपभोक्ता की आय- जिन लोगों की आय बहुत अधिक या बहुत कम होती है, उनके द्वारा मांगी जाने वाली वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है। इसका कारण यह है कि कीमत के घटने और बढ़ने का इन लोगों द्वारा की जाने वाली माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके विपरीत मध्यम वर्ग के लोगों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं की माँग लोचदार होती है। 6-उपभोक्ता की आदत– उपभोक्ता को जिन वस्तुओं की आदत पड़ जाती है जैसे पान–सिगरेट, चाय इनकी माँग बेलोचदार होती है। इसका कारण यह है कि इन वस्तुओं की कीमत बढ़ने पर भी एक उपभोक्ता अपनी आदत के करना इनकी माँग को कम नहीं कर पाता है। 7-किसी वस्तु पर खर्च की जाने वाली आय का अनुपात– एक उपभोक्ता जिन वस्तुओं पर अपनी आय का बहुत थोड़ा भाग खर्च करता है जैसे अखबार, टूथपेस्ट आदि इनकी माँग बेलोचदार होती है। इसके विपरीत एक उपभोक्ता जिन वस्तुओं पर अपनी आय का अधिक भाग वह करता है जैसे टीवी, एसी इनकी माँग लोचदार होती है। 8-कीमत स्तर- माँग की लोच संबंधित वस्तु के कीमत पर पर भी निर्भर करती है। वस्तु की कीमत के उच्च स्तर पर माँग की लोच अधिक होगी और कीमत के नीचे स्तर पर माँग की लोच कम होती है। 9-समय अवधि– अल्पकाल में किसी भी वस्तु की माँग बेलोचदार होती है और दीर्घकाल में अपेक्षाकृत अधिक लोचदार होती है। इसका कारण यह है कि दीर्घकाल में एक उपभोक्ता अपनी आदत इत्यादि में परिवर्तन कर सकता है, अपनी आय को बढ़ा सकता है। इसलिए दीर्घकाल में किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि के प्रतिरूप उसकी माँग में अधिक कमी अर्थात माँग लोचदार होगी। (यूनिट 2 समाप्त) यदि आपको उपरोक्त में कोई शंका या सवाल है तो आप हमें कमेंट कर सकते है | ~Admin Team Economics online class working hard to provide you all Economics notes. 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