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Class 12 Macro Economics Chapter 7-Banking-Commercial Banks and The Central Bank

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Class 12 Macro Economics Chapter 7-Banking-Commercial Banks and The Central Bank Notes in Hindi

Class 12 Macro Economics Chapter 7-Banking-Commercial Banks and The Central Bank Notes in Hindi
Class 12 Macro Economics Chapter 7-Banking-Commercial Banks and The Central Bank Notes in Hindi

अध्याय 7 : वाणिज्यिक बैंक तथा केन्द्रीय बैंक  (Banking : Commercial Banks and The Central Bank)

वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks)

वाणिज्यिक बैंक वह वित्तीय संस्था है जो लोगों के रुपए अपने पास जमा के रूप में स्वीकार करते हैं तथा उन्हें बचत अथवा निवेश के लिए ऋण देती है।

परिभाषा

भारतीय बैंकिंग कंपनी एक्ट के अनुसार, “बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है जो बैंकिंग का कार्य करती है बैंकिंग से अभिप्राय उधार देना अथवा निवेश के उद्देश्य से जमा रूप में जनता से मुद्रा स्वीकार करना तथा इनका भुगतान मांगने पर चेक ड्राफ्ट आदेश या किसी अन्य प्रकार के भुगतान करना है।”

वाणिज्यिक बैंक के कार्य (functions of Commercial Banks)

वाणिज्यिक बैंक के कार्यों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. मुख्य कार्य
  2. गुण कार्य
  3. सामाजिक कार्य

A. वाणिज्यिक बैंक के मुख्य कार्य (Primary Functions of Commercial Banks)

1- जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits)

एक बैंक जनता के धन को जमा करता है। जनता अपनी सुविधा और शक्ति के अनुसार निम्न प्रकार के खातों में रुपया जमा कर सकते हैं-

i) निश्चितकालीन या सावधि जमा खाता- (Fixed Deposits or Time Deposits)

इस खाते में एक निश्चित अवधि के लिए रुपया जमा किया जाता है। जमाकर्ता को जमा की रकम की रसीद (Fixed Deposit Receipts) दे दी जाती है। इसमें जमाकर्ता का नाम, जमा की राशि, ब्याज की दर तथा जमा की अवधि लिखी होती है। यह रसीद हस्तांतरणीय (Transferable) नहीं होती। यदि जमाकर्ता को अपनी रकम की आवश्यकता, अवधि पूर्ण होने से पहले पड़ जाती है तो कुछ कटौती या ब्याज (Discount or Interest) काट कर बैंक उसे रकम लौटा देता है। इस खाते में जमा पर बैंक सर्वाधिक ब्याज देता है। जमा की अवधि जितनी लम्बी होती है, ब्याज की दर भी उतनी अधिक होती है। इसका कारण यह है कि बैंक इस रकम का लम्बे समय तक प्रयोग कर सकते हैं। इस खाते में जमा रकम को बैंक की सावधि देनदारी (Time Liability) कहा जाता है।

ii) चालू जमा खाता-(Current or Demand Deposit Account)

इस खाते में जमाकर्ता जितनी बार चाहे रुपया जमा कर सकता है और कभी भी आवश्यकतानुसार निकाल सकता है। इस खाते में साधारणतया व्यापारी वर्ग रुपया जमा करवाता है। साधारणतः बैंक इस प्रकार की जमा पर ब्याज नहीं देता। यदि जमा की रकम एक न्यूनतम आवश्यक राशि से कम होती है तो जमाकर्ता से बैंक कुछ सेवा व्यय (Service Charge) वसूल कर सकता है। इस खाते से रुपया प्रायः चेक बुक द्वारा निकलवाया जाता है। इस खाते में जमा राशि को बैंक की माँग देनदारी (Demand Liability) कहा जाता है। अमेरिका में इस खाते को चेक खाता (Checking Account) कहा जाता है।

iii) बचत जमा खाता (Saving Deposit Account)

यह खाता छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए होता है। इस खाते से एक निश्चित मात्रा तक ही रुपया निकलवाया जा सकता है। निश्चित मात्रा से अधिक रुपया निकलने में बैंक को पहले सूचित करना पड़ता है। इस खाते पर बैंक ब्याज भी देता है जो कि निश्चितकालीन जमा खाते की तुलना में  कम होता है।

iv) होमसेफ बचत खाता (Home Safe Saving Account)

बैंकों ने इस खाते का प्रचलन अभी हाल में ही किया है। इसमें जमाकर्ता के घर पर बैंक एक गुल्लक (Small Safe) प्रदान करता है जिसकी चाबी बैंक के पास रहती है। इस गुल्लक में थोड़ी-थोड़ी बचत डालता रहता है तथा कुछ समय के बाद बैंक में जाकर उसमें जमा राशि को अपने खाते में जमा करा देता है। बहुत सारे बैंक इस प्रकार बचाई गई रकम को जमाकर्ता के घर से अपने एजेंट भेजकर  मंगवा लेते हैं तथा गुल्लक की राशि को जमाकर्ता के खाते में जमा कर लेते हैं। इस प्रकार के खाते पर बचत जमा तुलना में कम ब्याज दिया जाता है।

v) आवर्ती जमा खाता (Recurring Deposit Account)

इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता एक निश्चित 12, 24, 36 या 60 महीनों के लिए प्रतिमास निश्चित रकम जमा करते हैं। यह रकम कुछ विशेष परिस्थितियों के साधारणतया निर्धारित समय से पहले नहीं निकाली जा सकती। जमाकर्ता की जमाराशि पर मिलने वाले ब्याज की राशि भी खाते में जमा होती जाती है। इस खाते में सावधि खाते की तरह ही अन्य सभी खातों की तुलना में अधिक ब्याज प्राप्त होता  है।

2- ऋण देना (Advancing of Loans)

बैंक का दूसरा मुख्य कार्य लोगों को उधार देना है। बैंक के पास जो रुपया जमा के रूप में आता है, उसमें से एक निश्चित राशि नगद कोष में रखकर बाकि रूपया बैंक द्वारा उधार दे दिया जाता है। प्राय: बैंक ऋण के बदले में उचित जमानत की मांग करते हैं। ऋण की रकम प्राय: जमानत के मूल्य से कम होती है। बैंक निम्न प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं-

i) नगद साख (Cash Credit)

इसके अंतर्गत ऋणी को एक निश्चित जमानत के आधार पर एक निश्चित राशि निकलवाने का अधिकार दे दिया जाता है। इस सीमा के अन्दर ही ऋणी आवश्यकतानुसार रुपया निकलवाता रहता है तथा जमा भी करता रहता है। इस अवस्था में बैंक केवल वास्तव में निकलवाई गई राशि पर ही ब्याज लेता है। इस संबंध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ऋणी द्वारा निकलवाई जाने वाली ऋण की रकम का बैंक द्वारा निर्धारण ऋणी के स्टॉक विवरण तथा उसकी उत्पादन क्रिया की मात्रा के आधार पर किया जाता है।

ii) ओवरड्राफ्ट (Overdraft)

बैंक में चालू जमा रखने वाले ग्राहक बैंक से एक समझौते के अनुसार अपनी जमा से अधिक रकम निकलवाने की अनुमति ले लेते हैं। निकाली गई रकम को ओवर-ड्राफ्ट कहते हैं। यह सुविधा अलपकाल के लिए विश्वसनीय ग्राहकों को ही मिलती है। मान लीजिए एक व्यक्ति के ₹10,000 जमा है और उसको बैंक ₹12,000 तक के चेक काटने का अधिकार दे देता है तो ₹2,000 ओवर ड्राफ्ट कहलाएगा।

iii) मांग ऋण (Demand Loans)

ये ॠण एक निश्चित रकम के रूप में दिए जाते है। इन्हें वापिस करने की कोई निश्चित परिपक्वता अवधि नहीं होती। इन ऋणों पर ऋण की स्वीकृति के तुरंत बाद ही ब्याज लगना आरंभ हो जाता है, चाहे ऋणी चेक द्वारा उस खाते में से कुल ऋण का केवल एक भाग निकाले। ये ऋण व्यक्तिगत जमानत पर या वित्तीय परिसंपत्ति या टिकाऊ वस्तुओं की जमानत पर दिए जाते हैं।

iv) अल्पावधि ऋण (Short-term Loans)

अल्पकालीन ऋणों में सामान्यतः (i) व्यक्तिगत ऋण तथा (ii) कार्यकारी पूंजी ॠण सम्मिलित किए जाते हैं। इस प्रकार के ऋणों की सारी राशि पर ब्याज लगना उसी दिन से आरंभ हो जाता है जिस दिन से ये ऋणी व्यक्ति के खाते में लिखा जाता है। सामान्यत इस प्रकार के ऋण जमानत पर दिये जाते हैं। अतः ये सुरक्षित ऋण होते हैं।

3- साख निर्माण (Credit Creation)

आजकल बैंकों का एक मुख्य कार्य साख का निर्माण करना है। बैंक अपनी प्रारंभिक जमा से अधिक रुपया लोगों को उधार देकर का निर्माण करते हैं।

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बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं में अंतर-

एक वित्तीय संस्था को बैंकिंग संस्था नहीं कहा जाएगा यदि इसके द्वारा दो प्राथमिक कार्य नहीं किए जाते। 

1) चेक द्वारा निकाले जाने वाली जमाव को स्वीकार करना तथा 2) ऋण देना।

किसी भी वित्तीय संस्था को बैंक का है लाने के लिए उपरोक्त दो कार्य करना आवश्यक है।

LIC एक वित्तीय संस्था है। परंतु से बैंक नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह ऋण तो देती है परंतु लोगों की चेक द्वारा निकाले जाने वाली जमाव को स्वीकार नहीं करती।

डाकखाने भी बैंक नहीं है यद्यपि वे लोगों से जमा स्वीकार करते हैं लेकिन वह ऋण नहीं देते।

अतः इस प्रकार की संस्थाओं को गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं (Non Banking Financial Institutions) कहा जाता है।

B. वाणिज्यिक बैंक के गौण कार्य (Secondary functions of Commercial Banks)

1) एजेंट के रूप में कार्य (Agency Functions)

बैंक अपने ग्राहकों के लिए विभिन्न तरीके से एजेंट के कार्य करते हैं

  1. विभिन्न मदों का एकत्रीकरण और भुगतान (Collection and Payment of Various Items-ग्राहकों की ओर से चेक, किराया, ब्याज इत्यादि एकत्र करता है और इसी प्रकार उनकी ओर से करों ने इत्यादि की अदायगी करता है।
  2. प्रतिभूतियों की खरीद बिक्री (Purchase and Sale of Securities): बैंक अपने ग्राहकों के लिए विभिन्न प्रकार के शेयर्स तथा स्टॉक की जानकारी प्राप्त करके उनकी ओर से प्रतिभूतियों को खरीदने, बेचने तथा उनको सुरक्षित भी करता है।
  3. ट्रस्टी तथा प्रबंधक (Trustee and Executor): बैंक अपने ग्राहकों के आदेश पर उनकी संपत्ति के ट्रस्टी तथा प्रबंधक का कार्य भी करते हैं।
  4. रुपया भेजना (Remitting of Money): एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपया भेजना भी बैंकों का एक है। यह काम बैंक ड्राफ्ट द्वारा किया जाता है।
  5. विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय (Purchase and Sale of Foreign Exchange): बैंक विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देते हैं। यह कार्य अधिकतर विदेशी विनिमय बैंकों द्वारा किया जाता है।
  6. संदर्भ पत्र- (Letter of References): बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना देश-विदेश के व्यापारियों तथा देश विदेश के व्यापारियों की आर्थिक स्थिति की सूचना अपने ग्राहकों को देते हैं।
  7. नये शेयरों के अविक्रित अंशों के खरीदने का आश्वासन (Underwriting): बिना बिके हुए नये शेयरों को खरीदने का बैंक आश्वासन देते हैं। बैंक निजी आधार पर चुने हुए निवेशकों के बीच प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था भी करते हैं।

2) समान्य उपयोगिता की सेवाएँ (General Utility Services)

व्यापारिक बैंक कुछ इस प्रकार के अन्य कार्य भी करते हैं जिनसे समाज के लोगों को काफी लाभ होता है। ये कार्य निम्नलिखित है-

  1. लॉकर की सुविधा (Locker Facilities): बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर की सुविधा भी प्रदान करता है, अपने सोने-चांदी के जेवर तथा अन्य आवश्यक कागजात सुरक्षित रख सकते हैं। इसका वार्षिक किराया बहुत कम होता है।
  2. यात्री चेक तथा साख प्रमाण पत्र (Traveller’s Cheques and Letters of Credit): बैंक अपने ग्राहकों को यात्रा पर जाते समय नकद राशि साथ न ले जाकर सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से यात्री चेक तथा साख प्रमाण व सुविधा प्रदान करता है। इसके फलस्वरूप यात्री निश्चिन्त होकर यात्रा कर सकते हैं।
  3. वाणिज्यिक सूचनाएँ एवं आँकड़े (Business Information and Statistics): बैंक आर्थिक स्थिति से परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएं एवं आँकड़ें एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों पर सलाह देते हैं।
  4. वस्तुओं के वाहन में सहायता (Help in Transportation of Goods): बड़े-बड़े व्यापारी अपने ग्राहकों को माल कर उसकी बिल्टी बैंक में भेज देते हैं। खरीददार बैंक में रुपये जमा करवाकर उस बिल्टी को छुड़वा लेते हैं और रेलवे स्टेशन तथा ट्रांसपोर्टर से माल ले लेते हैं। इस प्रकार बैंक वस्तुओं को उत्पादन केंद्रों से उपभोग केंद्रों तक पहुंचाने में सहायता देते हैं।

C) वाणिज्यिक बैंक के सामाजिक कार्य या बैंकों का आर्थिक विकास में योगदान (Social functions of commercial Banks)

आधुनिक समय में व्यापारिक बैंक देश के आर्थिक विकास तथा सामाजिक कल्याण के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य भी करते हैं-

  1. पूंजी निर्माण (Capital Formation)- व्यापारिक बैंक लोगों की निष्क्रिय जमा (ldle Saving) को एकत्रित करते हैं तथा उन्हें उत्पादक कार्यों में निवेश करते हैं। इसके फलस्वरूप वे पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने में सहायता देते हैं। पूँजी निर्माण के फलस्वरूप आर्थिक विकास की दर तीव्र होती है।
  2. नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन (Inducement to Innovations)- बैंक उद्यमियों को साख प्रदान करके नव प्रवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। इसके फलस्वरूप नई वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  3. निवेश सहायक ब्याज दर ढाँचा (Investment-friendly Interest-rate)– बैंक अपनी ब्याज दर इस प्रकार निर्धारित करते हैं जिससे उद्यमियों एवं व्यवसायियों को निवेश करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है। इसके फलस्वरूप उत्पादन और व्यापार में वृद्धि होती है। इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  4. ग्रामीण क्षेत्र के विकास में योगदान (Contribution in the Development of Rural Sector)- व्यापारिक बैंक, ग्रामीण क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वे किसानों को उन्नत कृषि, भूमि सुधार, यंत्र आदि खरीदने के लिये रियायती ब्याज की दर (Concessional Rate of Interest) पर उचित मात्रा में ऋण देते हैं। इसके फलस्वरूप किसान कृषि उत्पादन बढ़ाने में सफल होते हैं। बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी शाखाएँ खोलकर वहाँ से निष्क्रिय बचत एकत्रित करते हैं तथा उसका उत्पादक कार्यों में प्रयोग करते हैं। बैंकों के इस कार्य का देश के आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
  5. बाजार मांग में वृद्धि (Increasing Market Demand)- अल्पविकसित देशों में लोगों की आय कम होती है। उनका जीवन स्तर नीचा होता है। वे उपभोक्ता वस्तुओं की माँग कम करते हैं। बैंक अपने ग्राहकों को टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ जैसे टी.वी., कार इत्यादि खरीदने के लिए साख (ऋण) उपलब्ध करवाते हैं, फलस्वरूप टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की माँग बढ़ती है। माँग बढ़ने से उत्पादन में वृद्धि  की जाती है। नये उद्योग स्थापित किये जाते हैं। परिणामस्वरूप रोज़गार, आय एवं जीवन स्तर में वृद्धि होती है। अतएव बैंक, उपभोक्ता को साख उपलब्ध कराकर माँग वृद्धि में सहायक होते है।  जिसके फलस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है तथा आर्थिक विकास को गति तीव्र होती है।
  6. मौद्रिक नीति को लागू करना (Implementation of Monetary Policy)- प्रत्येक अल्पविकसित देश की सरकार एवं केन्द्रीय बैंक को अपनी मौद्रिक नीति की लागू करने के लिए एक व्यवस्थित बैंकिंग प्रणाली की आवश्यकता होती है। देश की मौद्रिक नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने में व्यापारिक बैंकों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वे केन्द्रीय बैंक के निर्देश के अनुसार साख का विस्तार एवं संकुचन करते हैं। इसके फलस्वरूप मौद्रिक नीति प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने में सहायक होते हैं।
  7. रोजगार के अवसर (Employment Opportunities)- बेरोज़गार युवा वर्ग व्यापारिक बैंकों से उचित ब्याज की दर पर पर्याप्त मात्रा में साख प्राप्त करके स्वरोजगार (Self-employment) की व्यवस्था कर सकते हैं। स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने के फलस्वरूप रोजगार तथा उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। इसका देश के आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

संक्षेप में, बैंक केवल रुपया जमा करने तथा उधार देने की संस्था मात्र नहीं रह गई है बल्कि यह आर्थिक विकास में और सामाजिक कल्याण का एक महत्वपूर्ण साधन वन गई है।

वाणिज्यिक बैंक का वर्गीकरण (Classification of Commercial Banks)

भारत में वाणिज्यिक बैंकों का वर्गीकरण दो भागों में किया जाता है-

अ) अनुसूचित बैंक :

                  a) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक : SBI, PNB (12)

                  b) निजी क्षेत्र के बैंक : HDFC Bank, Axis Bank (22)

                  c) विदेशी बैंक : Citi Bank (44)

ब) गैर अनुसूचित बैंक

नोट : अनुसूचित बैंकों को RBI की द्वितीय अनुसूची में शामिल किया जाता है।

      अनुसूचित बैंक, गैर अनुसूचित बैंक की तुलना में बड़े बैंक होते है।

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वाणिज्यिक बैंक द्वारा साख का निर्माण-(Credit Creation by the Commercial Banks)

वाणिज्यिक बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वे साख सुजन करके मुद्रा पूर्ति में योगदान देते वाणिज्यिक बैंक माँग जमा के रूप में साख का सृजन करते हैं। वाणिज्यिक बैंकों की मांग जमाएँ उनके नकद कोषों (Cash Reserves) से कई गुना अधिक होती है। यह मान लें कि उनके नकद कोषों की राशि 1,000 है तथा माँग जमा ₹10,000 अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति वाणिज्यिक बैंकों के नकद कोषो से दस गुना अधिक हो जाएगी। इस प्रकार नकद कोष ₹1000 के आधार पर वाणिज्यिक बैंकों ने मुद्रा की पूर्ति में ₹ 10,000 का योगदान किया। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि बैंकों के पास जो नकद कोष होता है वह कैसे ₹10,000 मूल्य की जमा के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यह कैसे होता है इसका वर्णन निम्न  है-

i) बैकों को अपने ऐतिहासिक अनुभव के आधार पर यह ज्ञात होता है कि सभी जमाकर्ता, एक ही समय, अपनी सारी जमा राशि को निकलवाने के लिए नहीं आएंगे।

ii) यदि बैंक का अनुभव यह कहता है कि. सामान्यतः जमाकर्ता अपनी जमा राशियों का लगभग 10 प्रतिशत ही निकलवाते हैं तो बैंक को उनकी मांग पूरी करने के लिए कुल जमा का केवल 10 प्रतिशत हो अपने पास नकद कोष के रूप में रखना होगा। इसे नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR) कहते हैं।

iii) यदि CRR = 10 प्रतिशत, तब ₹1,000 के कुल नकद कोषों के आधार पर बैंक ₹10,000 मूल्य के ऋण निम्नलिखित सूत्र के अनुसार दे सकता है-

      माँग जमाएँ = 1/CRR x नकद कोष (Cash Deposits)

इस प्रकार वाणिज्यिक बैंक CRR (Cash Reserve Ratio) और अपने अनुभव के आधार पर अपनी जमा राशि से कई गुणा ऋण प्रदान कर सकते हैं। यही प्रक्रिया साख निर्माण या साख-सृजन कहलाती है। बैंक द्वारा साख निर्माण का अनुमान साख गुणांक द्वारा लगाया जाता है-

            साख गुणांक =  1/CRR

यदि CRR या नगद आरक्षित अनुपात 10% हो तो बैंक अपनी जमा राशि के अनुसार उपरोक्त सूत्र से 10 गुणा साख निर्माण कर सकता है।

यहाँ नोट करना महत्वपूर्ण है कि ऋण राशि कभी भी नकदी के रूप में नहीं दी जाती इस राशि को बैंक उधार लेने वालों के खाते में माँग जमा के रूप में प्रदर्शित करते हैं। इसके अनुसार जब ₹10,000 का ऋण दिया जाता है तब बैंकों की माँग जमाएँ ₹10,000 बढ़ जाती हैं। उपरोक्त समीकरण में माँग जमाएँ वास्तव में ऋण को सूचित करती हैं।

अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि CRR = 10% की मान्यता के अनुसार, यदि बैंकों के नकद कोष में ₹ 1,000 की वृद्धि होती है तो अर्थव्यवस्था में साख की पूर्ति (अथवा मुद्रा की पूर्ति) ₹10,000 (=100 x 10) होगी। हम पहले पढ़ चुके हैं कि बैंकों का नकद कोष मुद्रा पूर्ति का एक भाग नहीं है। इसका सरल कारण यह है कि मुद्रा पूर्ति करने वाले अधिकारियों के पास रहने वाली नकद मुद्रा पूर्ति का एक भाग नहीं है। माँग जमाएँ मुद्रा पूर्ति का एक भाग है। इसका सरल कारण यह है कि ये जमाएँ चैक द्वारा निकाली जा सकती है तथा इन जमाओं के धारक बैंक जारी करके इन जमाओं का उपयोग कर सकते हैं।

साख गुणक (Credit Multipller)

उक्त उदाहरण में जब बैंकों के पास नकद कोष ₹1000 था यह माँग जमा के रूप में ₹ 10.000 मूल्य के साथ सूजन करता

साख गुणक = माँग जमाएँ/नगद कोष

          = 10000/1000

          =10

अतः साख गुणक =  1/CRR

केंद्रीय बैंक

The Central Bank

केंद्रीय बैंक देश का सर्वोच्च (Apex) बैंक होता है जो देश की संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करता है। केंद्रीय बैंक के मुख्य कार्य अल्पविकसित देशों के संदर्भ में आर्थिक विकास के कार्य को संभव बनाना, सभी प्रकार के नोट छापना, सरकार के बैंक के रूप में कार्य करना तथा देश में मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करना है। उदाहरण के लिए भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI), इंग्लैंड में बैंक ऑफ इंग्लैंड और अमेरिका में फेडरल रिजर्व सिस्टम केंद्रीय बैंक है। संसार का सबसे पहला केंद्रीय बैंक 1668 में स्वीडन में स्थापित हुआ था। परंतु वास्तव में केंद्रीय बैंक का आरंभ सन 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना के बाद हुआ है।

सैमुअल्सन के अनुसार, “केंद्रीय बैंक का एक कार्य है। यह अर्थव्यवस्था, मुद्रा की पूर्ति तथा साख को नियंत्रित करने का कार्य करता है।”

डी कॉक के अनुसार, “केंद्रीय बैंक वह बैंक है जो देश की मौद्रिक तथा बैंकिंग प्रणाली के शिखर पर होता है।”

संक्षेप में केंद्रीय बैंक एक ऐसी संस्था है जो कि देश की मौद्रिक व बैंकिंग व्यवस्था का संचालन और नियंत्रण करती है।

केंद्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अंतर

(Difference between Commercial Banks and The Central Bank)

एक देश का केंद्रीय बैंक निम्न बातों में व्यापारिक बैंकों से भिन्न होता है-

  1. केंद्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा करना होता है जबकि वाणिज्यिक बैंकों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
  2. केंद्रीय बैंक जनता के साथ सीधा लेन-देन नहीं करता जबकि वाणिज्य बैंकों का जनता के साथ सीधा लेनदेन होता है।
  3. केंद्रीय बैंक एक सरकारी संस्था होती है जबकि व्यापारिक बैंकों का स्वामित्व गैर-सरकारी तथा सरकारी हो सकता है।
  4. केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों से प्रतियोगिता नहीं करता, बल्कि वह बैंकों के बैंक व अंतिम ऋण दाता के रूप में व्यापारिक बैंकों की सहायता करता है।
  5. केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का पूर्ण एकाधिकार होता है, जबकि व्यापारिक बैंक नोट जारी नहीं कर सकते।
  6. केंद्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली का नियंत्रण करता है अर्थात व्यापारिक बैंक केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में कार्य करते हैं।
  7. केंद्रीय बैंक देश के विदेशी विनिमय का संरक्षक होता है। व्यापारिक बैंक विदेशी विनिमय संबंधी कार्यों के लिए केंद्रीय बैंक की स्वीकृति पर निर्भर करते हैं।
  8. केंद्रीय बैंक देश की सरकार का बैंक (Banker of Government) होता है। सरकार के सारे बैंकिंग कार्य केंद्रीय बैंक द्वारा संपन्न किए जाते हैं। व्यापारिक बैंक सरकारी कार्यों के लिए केंद्रीय बैंक के प्रतिनिधि के रूप में काम कर सकते हैं।
  9.  केंद्रीय बैंक अन्य व्यापारिक बैंकों का बैंक (Banker’s Bank) भी होता है। व्यापारिक बैंकों को अपने कुल जमा का कुछ प्रतिशत भाग केंद्रीय बैंक के पास नगद कोष के रूप में रखना पड़ता है।
  10.  केंद्रीय बैंक साख नियंत्रण का कार्य करता है तथा बैंकों के समायोजन गृह का काम करता है।  अन्य बैंक यह काम केंद्रीय बैंक के प्रतिनिधि के रूप में कर सकते हैं।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि केंद्रीय बैंक और वाणिज्यिक बैंक एक दूसरे के प्रतियोगी नहीं अपितु पूरक के रूप में कार्य करते हैं और देश की मौद्रिक नीति का क्रियान्वयन करते हैं।

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केंद्रीय बैंक के कार्य (Functions of Central Bank)

एक देश का केंद्रीय बैंक निम्न मुख्य कार्य करता है-

1) नोट जारी करना (Issuing of Notes)

वर्तमान समय में संसार के प्रत्येक देश में नोट छापने का एकाधिकार केवल केन्द्रीय बैंक को ही प्राप्त होता है केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए नोट सारे देश मे (Unlimited Legal Tender) के रूप में घोषित होते हैं। डी. कॉक (De Kock) के अनुसार जारी करने का विशेषाधिकार केंद्रीय बैंक के उद्गम और विकास के साथ जुड़ा हुआ में 20वीं शताब्दी के प्रारंभ होने तक साधारणतः केन्द्रीय बैंकों को निर्गमन बैंक (Bank of Issue) कहा जाता था।

देश के केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का एकाधिकार क्यों दिया जाता है?

(Why Central Bank of the Country enjoys Monopoly Right of Note Issuing)

केन्द्रीय बैंकों को ये एकाधिकार निम्नलिखित लाभों के कारणों से प्राप्त हुआ था:

(i) केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का एकाधिकार प्राप्त होने से मौद्रिक प्रणाली में समरूपता (Uniformity) आती है।

(ii) इससे देश की मुद्रा में जनता का विश्वास सुदृढ़ हो जाता है क्योंकि बैंक को सरकार का संरक्षण प्राप्त होता है।

(iii) देश में मुद्रा की पूर्ति पर एक केंद्रीय नियंत्रण संभव हो जाता है।

(iv) नोट जारी करने के एकाधिकार द्वारा कागजी मुद्रा को आवश्यकता के अनुसार घटा-बढ़ा कर मुद्रा में लोच बनाई रखी जा सकती है।

(v) नोट जारी करना एक लाभदायक व्यवसाय है। नोट जारी करने का कार्य केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में होने के कारण इससे प्राप्त लाभ को सरकारी कोष में जमा कराया जा सकता है।

2) सरकार का बैंक (Banker to the Government)-

केंद्रीय बैंक सभी देशों में सरकार के बैंकर, एजेन्ट एवं वित्तीय परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हैं। सरकारी बैंकर के रूप में यह सरकारी विभागों के खाते रखता है तथा सरकारी कोषों की व्यवस्था करता है। यह सरकार के लिए उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए करते हैं। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को बिना ब्याज के ऋण दिया जाता है तथा केंद्रीय बैंक सरकारी कोष का भी स्थानांतरण (Transfer) करता है। यह सरकार के लिए प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों आदि का भी क्रय विक्रय करता है। देश का सर्वोच्च बैंक होने के नाते यह सरकार के आर्थिक, वित्तीय एव मौद्रिक विषयों पर समय-समय पर सलाह देता रहता है। डी. कॉक (De Kock) के शब्दों में, “सरकारी बैंकर के रूप में केंद्रीय बैंक केवल इसलिए कार्य नहीं करता कि वह सरकार के लिए सुविधाजनक एवं मितव्ययी है, बल्कि इसलिए भी कार्य करता है क्योंकि सार्वजनिक वित से इसका गहरा संबंध होता है।”

3) बैंकों का बैंक (Banker’s Bank)

केंद्रीय बैंक देश के अन्य बैंको के लिए बैंकर का कार्य करता है। केंद्रीय बैंक का अन्य बैंकों के साथ लगभग वही संबंध होता है जो एक साधारण बैंक का अपने ग्राहकों से होता है। केन्द्रीय बैंक अन्य बैंकों के नगद कोष (Cash Reserves) का कुछ भाग अपने पास जमा के रूप में रखता है, ताकि ग्राहकों की माँग होने पर वह उनके धन की अदायगी कर सके। व्यापारिक बैंक इस प्रकार नगद कोष को दो प्रकार से रखते हैं। प्रथम अपने पास नकद कोष के रूप में दूसरे केन्द्रीय बैंक के पास जमा के रूप में रखते हैं। ये बैंक केंद्रीय बैंक के पास रखे गए कोष को भी नगद कोष मानते हैं।

4) बैंकों का निरीक्षण (Supervision of the Banks):

बैंकों का बैंक होने के कारण, केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों का निरीक्षण भी करता है। इसके लिए उसे ये कार्य करने होते हैं. (i) व्यापारिक बैंकों को लाइसेंस जारी करना। (ii) देश के विभिन्न भागो तथा विदेशों में व्यापारिक बैंकों की शाखाए खुलवा कर उनका विस्तार करना। (iii) व्यापारिक बैंकों का विलियन (Merger)  तथा (iv) बैंकों का परिसमापन (Liquidation)।

5) अंतिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort):

देश के अन्य बैंकों के लिए केंद्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता के भी कार्य करता है। इसका अर्थ यह है कि जब किसी व्यापारिक बैंक को कहीं से भी ऋण प्राप्त नहीं होता है तब वह केन्द्रीय बैंक से ऋण की माँग करता है और केंद्रीय बैंक उचित प्रतिभूतियों के आधार पर उसे ऋण दे देता है। इस प्रकार अंतिम ऋणदाता के रूप में देश की बैंकिंग व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करता है।

6) देश के विदेशी मुद्रा कोष का संरक्षक (Custodian of the Nation’s Reserves of Foreign Exchange):

केंद्रीय बैंक अंतर्राष्ट्रीय कोष के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। देश की मुद्रा इकाई के बाहरी मूल्य की केंद्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसको सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं के कोष संचित रखता है। इनके अतिरिक्त केंद्रीय बैंक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास तथा विनिमय दर की स्थिरता के लिए भी विदेशी कोषों को उचित मात्रा में बनाए रखता है।

7) समाशोधन गृह का कार्य (Clearing House Function):

केंद्रीय बैंक समाशोधन गृह का कार्य भी करता है। इसका अर्थ है कि केंद्रीय बैंक दूसरे बैंकों का हिसाब किताब भी रखता है। हर एक बैंक का केंद्रीय बैंक में खाता होता है। अतएव इन बैंकों के पास एक दूसरे के चेक आते हैं, उनका भुगतान केंद्रीय बैंक द्वारा होता है। इसको एक उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता है। मान लीजिए A बैंक के पास B बैंक के नाम का लिखा ₹10,000 का चेक आता है और B के पास A के नाम का ₹15,000 का चेक आता है। दोनों दावों के निपटारे या समाशोधन का सबसे सरल तरीका यह है कि A बैंक B बैंक को केंद्रीय बैंक का ₹ 5,000 का चेक दे दे। इस हस्तांतरण के फलस्वरूप A बैंक के खाते में से ₹ 5,000 कम कर दिए जाएँगे तथा बैंक के खाते में ₹5,000 जमा हो जाएंगे। इस प्रकार नकद लेन-देन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके अतिरिक्त समाशोधन गृह का एक अन्य लाभ यह भी है कि इसके कारण व्यापारिक बैंक बहुत कम मात्रा में नकद कोष रख कर काफ़ी बड़ी मात्रा में साख का निर्माण कर सकते हैं क्योंकि समाशोधन गृह के कारण नकदी की माँग बहुत कम हो जाती है।

8) साख मुद्रा का नियंत्रण (Control of Credit):

वास्तव में केंद्रीय बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य व्यापारिक बैंको की साख संबंधी क्रियाओं का नियंत्रण करना है। साख नियंत्रण से अभिप्राय साख मुद्रा की मात्रा में देश की मौद्रिक आवश्यकताओं के अनुसार कमी या वृद्धि करने से है। साख मुद्रा का आवश्यकता से अधिक प्रसार होने पर मुद्रास्फीति की दशा उत्पन्न हो जाती है और कम होने पर मुद्रा अवस्फीति के दोष पैदा हो जाते हैं। यही कारण है कि केंद्रीय बैंक साख मुद्रा को निश्चित सीमाओं के अंदर रखने का प्रयास करता है। केंद्रीय बैंक द्वारा साख मुद्रा का उचित नियंत्रण करने से देश के सामान्य कीमत स्तर में स्थिरता लाई जा सकती है तथा उत्पादन एवं रोजगार में वृद्धि की जा  सकती है।

9) आँकड़े इकट्ठा करना (Collection of Data):

केंद्रीय बैंक आर्थिक सूचनाओं एवं आँकड़ों को इकट्ठा करता है और उन्हें समय-समय पर प्रकाशित करता है। केंद्रीय बैंक देश में बैंकिंग, मुद्रा तथा विदेशी विनिमय संबंधी जो आँकड़े प्रकाशित करता है उनसे देश की आर्थिक प्रगति की गति का बहुत कुछ ज्ञान हो जाता है। देश में आर्थिक योजनाओं को सफल बनाने के लिए ये सूचनाएँ तथा आँकड़े और भी आवश्यक होते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन इन आँकड़ों की सहायता से बहुत आसानी से किया जा सकता है।

10) अन्य कार्य (Other Functions):

उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त केंद्रीय बैंक कुछ अन्य कार्य भी करता है जो इस प्रकार हैं:

      -कृषि वित्त (Agricultural Credit): कई देशों के केंद्रीय बैंक जैसे भारत का रिजर्व बैंक कृषि के विकास के लिए साख सुविधाओं की व्यवस्था भी करता है।

      -अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा सम्मेलन (International Monetary Conferences): केंद्रीय बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा      सम्मेलन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) या विश्व बैंक (World Bank) तथा अन्य सम्मेलनों में   अपने देश का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा प्रतिनिधित्व करता है।

      -मुद्रा तथा बिल बाजार (Money and Bill Market): केन्द्रीय बैंक मुद्रा तथा बिल बाजार को संगठित   करने का भी कार्य करता है।

      -फटे पुराने नोट वापस लेना (Return of Tron Notes): किसी देश का केन्द्रीय बैंक फटे-पुराने नोटों को वापिस लेकर उनके स्थान पर नए नोट दे देता है।

संक्षेप में, केंद्रीय बैंक कई महत्वपूर्ण कार्य करता है जैसे- नोट जारी करना, बैंकों का बैंक, सरकार का बैंकर, अंतिम ऋणदाता, साख का नियंत्रण आदि।  किसी भी देश के आर्थिक विकास में केन्द्रीय बैंक का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।

Class 12 Macro Economics Chapter 7-Banking-Commercial Banks and The Central Bank Notes in Hindi

केंद्रीय बैंक मुद्रा की पूर्ति अथवा अर्थव्यवस्था में साख के प्रवाह को कैसे नियंत्रित करता है

(How does the Central Bank Control Money Supply or Flow of Credit in the Economy?)

अथवा

केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति के मुख्य उपकरण क्या है? (What are the Principal Instruments of Monetary Policy of the Central Bank?)

अथवा

केंद्रीय बैंक द्वारा साख नियंत्रण के लिए कौन-कौन से उपाय किए जाते हैं

साख नियंत्रण से अभिप्राय देश के केंद्रीय बैंक द्वारा निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए साख के संकुचन तथा साख के विस्तार का नियंत्रण करना है। एक देश के केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति या साख नियंत्रण नीति के मुख्य उपायों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

A) मात्रात्मक उपकरण (Quantitative Instruments)

B) गुणात्मक उपकरण (Qualitative Instruments)

A) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक उपकरण- (Quantitative Instruments of Monetary Policy)

मौद्रिक नीति के मात्रात्मक उपकरणों की सहायता से एक अर्थव्यवस्था की कुल मुद्रा पूर्ति/साख को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके मुख्य उपाय निम्नलिखित है-

1) बैंक दर (Bank Rate):

बैंक दर ब्याज की वह न्यूनतम दर है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक अंतिम ऋणदाता होने के कारण, व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ती है तथा ऋण महँगा होता है। इसके फलस्वरूप साख की माँग कम हो जाती है। इसके विपरीत, बैंक दर कम करने पर व्यापारिक बैंकों द्वारा अपने उधारकर्ताओं से लिए जाने वाले दर कम हो जाती है। अर्थात साख (ऋण) सस्ती हो जाती है। इसके फलस्वरूप साख की मांग बढ़ जाती है। मुद्रा-स्फीति के समय जब साख का संकुचन जरूरी होता है तब केंद्रीय बैंक महंगी साख नीति (Dear Money Policy) अपनाता है। अवस्फीति के समय जब साख का विस्तार करना आवश्यक हो जाता है, तब केन्द्रीय बैंक सस्ती साख नीति (Cheap Money Policy) को अपनाता है अर्थात बैंक दर में कमी कर देता है।

2) खुले बाजार की क्रियाएँ (Open Market Operations OMO):

खुले बाजार की क्रियाओं से अभिप्राय केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों का खुले बाजार में बेचना तथा खरीदना है। प्रतिभूतियों (जैसे राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेट NSC) को बेचने से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मौजूद नकद कोषों को अपनी ओर खींच लेता है। ये नकद कोष उच्च बलयुक्त मुद्रा होती है जिसके आधार पर व्यापारिक बैंक साख का निर्माण करते हैं। अत: खुले बाजार क्रियाओं (OMO) द्वारा यदि नकद कोषों में वृद्धि की जाती है तो साख का प्रवाह कई गुणा अधिक बढ़ जाएगा और नकद कोषों में कमी की जाती है तो साख प्रवाह में कई गुणा अधिक कमी हो जाएगी।

3) नकद निधि (कोष) अनुपात (Cash Reserve Ratio-CRR)

इसका अर्थ बैंक की कुल जमाओं का वह न्यूनतम अनुपात है जो उसे केंद्रीय बैंक के पास नगद जमा रखना पड़ता है। व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर अपनी जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास नकद निधि के रूप में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि न्यूनतम अनुपात 10 प्रतिशत है और किसी बैंक की कुल जमाएँ ₹100 करोड़ है तो इस बैंक को ₹10 करोड़ केंद्रीय बैंक के पास रखने होंगे। यदि केंद्रीय बैंक को साख या नकद प्रवाह का संकुचन करना होगा तो वह न्यूनतम नकद निधि अनुपात को बढ़ा देगा और यदि उसको साख या नकद प्रवाह का विस्तार करना होगा तो वह इसे घटा देगा।

4) वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio-SLR):

प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों के एक निश्चित प्रतिशत को अपने पास नकद रूप में या अन्य तरल परिसंपत्तियों के रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है जिसे वैधानिक तरलता अनुपात कहते है। बाजार में साख के प्रवाह को कम करने के लिए केंद्रीय बैंक तरलता अनुपात को बढ़ा देता है और यदि केंद्रीय बैंक साख का विस्तार करना चाहता है तो वह तरलता अनुपात को घटा देता है।

नोट: नगद निधि अनुपात (CRR) तथा वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यापारिक बैंकों के अपने पास कितनी मात्रा में आधिक्य नकद निधि (Excess Cash Reserves) पड़ी हुई है। यदि व्यापारिक बैंकों के आधिक्य नकद निधि बड़ी मात्रा में मौजूद है तो CRR और SLR दोनों उपाय अर्थहीन हो जाते हैं।

B) मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण- (Qualitative Instruments of Monetary Policy)

मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण वे उपकरण है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए दी जाने वाली तथा विशेष बैंक द्वारा दी जाने वाली साख को नियंत्रित करते हैं। इसे चयनात्मक साख  नियंत्रण (Selective Credit Control) भी कहा जाता है। इसका प्रभाव साख की कुल मात्रा पर नहीं पड़ता है। इसका उद्देश्य साख के विभिन्न क्षेत्रों को नियंत्रित करना है। गुणात्मक साख नियंत्रण के मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं-

1) सीमांत आवश्यकता (Margin Requirement)

सीमांत आवश्यकता से अभिप्राय, बैंक द्वारा किसी वस्तु को जमानत पर दिए गए ऋण तथा जमानत वाली वस्तु के वर्तमान मूल्य के अंतर से है। मान लीजिए किसी व्यक्ति ने ₹100 मूल्य का माल बैंक के पास जमानत के रूप में रखा है और बैंक उसे ₹80 का ऋण देता है। इस स्थिति में सीमांत आवश्यकता 20 प्रतिशत होगी। यदि अर्थव्यवस्था की किसी विशेष व्यापारिक क्रिया के लिए साख के प्रवाह को सीमित करना है तो उस क्रिया के लिए सीमांत आवश्यकता को बढ़ा दिया जाएगा। इसके विपरीत, यदि साख का विस्तार किया जाना है तो सीमात आवश्यकता को कम कर दिया जाता है।

2) साख की राशनिंग (Rationing of Credit):

साख की राशनिंग से अभिप्राय विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के लिए साख की मात्रा का कोटा निर्धारित करना है। ऋण देते समय व्यापारिक बैक कोटे की सीमा से अधिक ॠण नहीं दे सकते। साख की राशनिंग तब की जाती है जब अर्थव्यवस्था में विशेष रूप सट्टे की क्रियाओं के लिए दिए जाने वाले ऋणों पर रोक लगानी होती है।

3) प्रत्यक्ष कार्यवाही (Direct Action):

केंद्रीय बैंक को उन बैंकों के विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्यवाही करनी पड़ती है जो साख नीति का पालन नहीं करते। प्रत्यक्ष कार्यवाही के अंतर्गत ऐसे व्यापारिक बैंकों की देश की बैंकिंग प्रणाली के सकते। प्रत्यक्ष कार्यवाही के अंतर्गत केन्द्रीय बैंक ऐसे व्यापारिक बैंकों की मान्यता को रद्द कर देता है।  

4) नैतिक प्रभाव (Moral Suasion):

कभी-कभी केंद्रीय बैंक सदस्य बैंकों पर नैतिक प्रभाव डालकर उन्हें साख नियंत्रण के लिये अपनाई गई नीति के अनुसार काम करने के लिए सहमत कर लेता है। केंद्रीय बैंक का लगभग सभी व्यापारिक बैंकों पर नैतिक प्रभाव होता है। अतः सामान्यतः ये बैंक केंद्रीय बैंक द्वारा साख के विस्तार या संकुचन करने की सलाह को मान लेते हैं।

विशेष नोट : नैतिक प्रभाव में ‘मनाने’ तथा ‘दबाव’ डालने का मिश्रण पाया जाता है। केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंको को अपनी मौद्रिक नीति का पालन करने के लिए मनाता है। अन्यथा उन पर दबाव डालकर अपनी नीति को मनवाता है। अन्यथा उनके विरुद्ध प्रत्यक्ष कार्यवाही करता है। उनकी मान्यता रद्द कर देता है। मौद्रिक नीति के एक उपकरण होने ‘नैतिक प्रभाव एक मात्रात्मक उपाय भी है और एक गुणात्मक उपाय भी, यद्यपि इसे गुणात्मक उपाय की श्रेणी में रखा जाता है।

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यदि उपरोक्त के संबंध में आपको कोई शंका या सुझाव है तो कृपया हमें कमेन्ट कीजिए या runisir@gmail.com पर मेल कीजिए।   

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